Manomaykosh Ka Parichay and Jap Sadhana (मनोमयकोश का परिचय एवं जप साधना
🌕 PANCHKOSH SADHNA ~ Online Global Class – 18 Jul 2020 (5:00 am to 06:30 am) – प्रज्ञाकुंज सासाराम – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh @ बाबूजी
🙏ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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📔 sᴜʙᴊᴇᴄᴛ. 1. मनोमय कोश का परिचय एवं 2. जप साधना
📡 Broadcasting. आ॰ अमन कुमार/आ॰ अंकुर सक्सेना जी
🌞 1. आ० अंकुर सक्सेना जी (गाजियाबाद, उ० प्र०)
🌸 मनुष्य के व्यक्तित्व/अस्तित्व (चेतना) का केंद्र मन है। 5 ज्ञानेंद्रियाँ और 5 कर्मेंद्रियाँ का संचालक मन – ग्यारहवीं इंद्रिय रूप में जानी जाती हैं। मन का सारे शरीर पर साम्राज्य है।
🌸 मनुष्य के सत्प्रवृति और दुष्प्रवृति के पीछे मन की बहुत बड़ी भूमिका होती है। हमारी विचारधारा के अनुरूप हमारी जीवनशैली होती है। विचार और संकल्प मन के अनुरूप चलते हैं अतः मन को उज्ज्वल बनाने हेतु मनोमय कोश को परिमार्जित करना नितांत आवश्यक है।
🌸 शरीर के जैसे हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी पोषण की आवश्यकता होती है। उचित पोषण ना मिलने से विकृति आ जाती है।
🌸 मनोमयकोश को उज्ज्वल बनाने हेतु ४ साधन – जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना हैं।
🌸 स्वाध्याय (अध्ययन + चिंतन – मनन + ध्यान) की भूमिका मन को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण है।
🌸 जप का को सामान्य अर्थ में हम तथ्य को बारंबार दुहराने के क्रम में ले सकते हैं। जप प्राथमिक उद्देश्य है – एकाग्रता व चित्त शुद्धि।
🌸 मनोमय कोश की स्थिरता एवं एकाग्रता के लिये जप साधना बड़ा ही उपयोगी है।
🌸 जप हेतु शांत स्थान, शुचिता, स्थिर मन, शांत चित्त आदि आवश्यक हैं।
🌸 मनन करने से जो त्राण करता हैं मंत्र कहते हैं। गायत्री मंत्र महामंत्र है। इस मंत्र के अधिष्ठाता – देव सविता हैं। गायत्री महामंत्र की महिमा वेदों, उपनिषदों, ऋषियों, संतों, समकालीन महापुरुषों द्वारा बताई गई हैं। गायत्री साधना कभी भी निष्फल नहीं जाती। @ महामंत्र जितने जगमाहीं कोऊ गायत्री सम नाहीं।
🌸 भैया ने जप से पहले व बाद में मनोभूमि को शुद्ध रखने हेतु प्रार्थना के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
🌞 2. आ॰ अमन कुमार (गुरुग्राम, हरियाणा)
🌸 गुरुदेव की पुस्तक विचार से व्यक्तित्व परिवर्तन का रिफ्रेंश देते हुए आ॰ भैया बताते हैं की मन – विचार व बुद्धि का समन्वय है। मन अपने प्रभाव क्षेत्र के अनुरूप विषयों पर चिंतन – मनन करता रहता है। @ मननात् – मनुष्यः।
🌸 मन स्व प्रकृति के अनुरूप चंचल व वासनामय होता है। मन का स्वभाव है – सुख की चाह।
योग साधना में हम मन की चंचलता को शांत करते हैं अर्थात् उसे चिंतन – मनन हेतु एक दिशा/ निश्चय देते हैं जिसे हम एकाग्रता के रूप में समझ सकते हैं। और संसार के अस्थायी/ क्षणभंगुर सुखों से हटाकर ~ स्थायी, प्राणस्वरूप, दुःख नाशक, सुखस्वरूप, न्यायकारी, नियामक, समदर्शी, ईश्वर, परमेश्वर, विश्वात्मा, सच्चिदानन्द परमात्मा में लगाना है।
🌸 मन – बुद्धि के परिष्कृत होने से मनुष्य कल्पना, तर्क, विवेचना, दूरदर्शिता जैसी चिन्तात्मक विशेषताओं के सहारे औचित्य – अनौचित्य का अन्तर करने में सिद्ध होता है।
🌸 जप का उद्देश्य एकाग्रता व चित्त शुद्धि।
🌸 ध्यान का मूल उद्देश्य अपने वास्तविक स्वरूप को जानना है।
🌸 त्राटक – ध्यान की अगली अवस्था। आंखें बंद करें तो स्वयं के भीतर निराकार ईश्वर और आंखें खोलें तो ईश्वर के पसारे इस संसार में साकार ईश्वरीय सत्ता के दर्शन।
🌸 तन्मात्रा साधना – यत् ब्रह्मांडे तत् पिण्डे। संसार की यथार्थता का ज्ञान।
🌞 Q & A with Shri Lal Bihari Singh
🙏 मन की लंबाई चौड़ाई को आध्यात्मिक क्षेत्र में समझने हेतु – मन का कितना विस्तार हुआ है वह किन आयामों तक की यात्रा कर सकता है अनुभूत करें।
🙏 साधना का चुनाव साधक की स्वतंत्रता है। लक्ष्य/उद्देश्य का वरण हेतु जो सहज/उपयुक्त जान पड़े अभ्यास करें।
🙏 मन प्रत्यक्ष देवता हैं।
🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
🙏 Writer: Vishnu Anand 🕉
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