Naad Sadhna (Ahat Naad)
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 09 May 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: नाद साधना (आहत नाद)
Broadcasting: आ॰ अंकुर जी
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
‘नाद’ के दो प्रकार – १. आहत नाद व २. अनाहत नाद
आहत नाद – जो हम कानों से सुनते हैं; जो दो वस्तुओं के रगड़ या संघर्ष से पैदा होता है उसे ‘आहत नाद’ कहते हैं। इस नाद का लयबद्धता से विशेष सम्बन्ध है। ‘अनाहत नाद’ मोक्ष प्रदायिनी है तो ‘आहत नाद’ को भी भाव सागर से पार लगानेवाला बताया गया है। इसी नाद के द्वारा सूरदास, मीरा आदि संतों ने प्रभु-सानिध्य प्राप्त किया था और फिर अनाहत की उपासना से मुक्ति प्राप्त की …!
अनाहत नाद – जो ‘नाद’ केवल अनुभव से जाना जाता है और जिसके उत्पन्न होने का कोई खास कारण ना हो, यानि जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से उत्पन्न होता है, सृष्टि का मूल हो उसे ‘अनाहत नाद’ कहते हैं। अनाहत नाद की उपासना हमारे ऋषि -मुनि करते थे।
प्रत्येक आवाज (ध्वनि) @ आहत नाद के मूल में वह शांत स्वयंभू अनाहत नाद है। हमें उससे resonance बनाना होता है।
आज की कक्षा का उद्देश्य हर एक ‘ध्वनि’ (प्रिय/ अप्रिय) में शब्द ब्रह्म प्रणव ‘ॐ’ के बोधत्व हेतु अभ्यास है जिसका अभ्यास हमें अपने व्यक्तिगत, सामाजिक व अध्यात्मिक जीवन में करना है। जिसकी उपलब्धि स्थित-प्रज्ञता, साक्षी भाव, जीवन-मुक्त विदेह साधक के रूप में मिलती है।
पंचकोशी १९ क्रियायोग
अन्नमय कोश के ४ क्रियायोग – योगासन, उपवास, तत्त्वशुद्धि व तपश्चर्या। लाभ: निरोगिता, दीर्घ जीवन व चिर यौवन।
प्राणमय कोश के ३ क्रियायोग – प्राणायाम, बंध व मुद्रा। लाभ: ऐश्वर्य, पुरूषार्थ, ओज, तेज, यश।
मनोमय कोश के ४ क्रियायोग – जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना। लाभ: आकर्षक व्यक्तित्व, धैर्य, मानसिक संतुलन, एकाग्रता, बुद्धिमत्ता।
विज्ञानमय कोश के ४ क्रियायोग – सोऽहं साधना, आत्मानुभूति योग, स्वर संयम व ग्रंथि भेदन। लाभ: अतीन्द्रिय क्षमता, दिव्य दृष्टि, दैवीय गुण, सज्जनता व सहृदयता।
आनन्दमय कोश के ४ क्रियायोग – नाद साधना, बिन्दु साधना, कला साधना व तुरीय स्थिति। लाभ: आत्मसाक्षात्कार, ईश्वर दर्शन व अखंड आनंद।
‘मन’ को वश में करना अत्यंत दुरूह कार्य है किंतु असंभव नहीं। भगवद्गीता में इसके दो उपाय वर्णित हैं – अभ्यास व वैराग्य। अभ्यास अर्थात् practical एवं वैराग्य अर्थात् ज्ञानेन मुक्ति – ज्ञान युक्त दृष्टिकोण।
विशुद्धि चक्र तक ही प्रकृति (संसार) अपना प्रभाव डालती हैं। आज्ञा चक्र की ‘ॐ’ विशुद्धि चक्र में आकाश तत्त्व के संपर्क में आकर १६ ध्वनियों में बदल जाता है। PPT में बाबूजी ने क्रमशः brief किया है कैसे ये 49 phonetic sounds में refract होता है। त्रिगुणात्मक प्रकृति “सत्व, रज व तम्” के प्रभाव में विभिन्न ‘व्यक्तित्व’ के प्रभाव में अलग अलग ‘वाणी’ (बैखरी, मध्यमा, परा व पश्यन्ति) का प्रयोग करते हैं।
इसलिए ‘आत्मसाधक’ स्मरण रखें व्यक्ति विशेष की ‘वाणी’ उनके ‘व्यक्तित्व’ को परिलक्षित करता है। ‘व्यक्ति’ अपने ‘व्यक्तित्व’ अनुरूप ही गुण – दोषों को देखता है अर्थात् गुण को देखना, द्रष्टा के गुणों को और दोष को देखना, द्रष्टा के दोषों को परिलक्षित करता है। ‘अच्छा’ देखते हैं तो हम अच्छे हैं; ‘बुरा’ देखते हैं तो हम बुरे हैं अर्थात् सर्वत्र ब्रह्म @ अखण्डानंद @ आत्मवत्सर्वभूतेषु के बोधत्व हेतु ‘दृष्टिकोण’ (angle of vision) का परिष्कृत होना नितांत आवश्यक है और इस हेतु ‘तन्मात्रा साधना’ की भूमिका अतीव है।
अतः हर एक शब्द में स्वयंभू ‘ॐ’ है। हमें उससे resonance बिठाने की कला विकसित करनी होती है सीखनी होती है @ अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गुह्यते।
बालीवुड गाना – जिसकी बीबी लम्बी उसका भी बड़ा नाम है। कोठे से लगा दो सीढ़ी का क्या काम है।।
जिसकी ‘विवेकशीलता’ (बीबी) उत्कृष्ट है उसकी ‘लोकप्रियता’ (बड़ा नाम) है। उसे ‘सहस्रार’ (शीर्ष/ कोठे) से जोड़ देवें तो अन्य ‘साधनों’ (सीढ़ी) का क्या काम है।
जिज्ञासा समाधान
शब्दों से परे जाना अर्थात् निःशब्द (परमेश्वरस्तुर्तिंमौनं) जाकर ही ‘अनहद’ बोध में आते हैं। इसके लिए सर्वप्रथम हमें राग-द्वेषात्मक स्थिति से उपर उठना होता है। इसके लिए 5 तन्मात्राएं (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) के खुजली से मुक्त होता है। अर्थात् इनका ‘दास’ नहीं प्रत्युत् ‘स्वामी’ (नियंत्रणकर्ता) बनना होता है।
‘संगीत’ का गुण ‘लयबद्धता’ है। ‘संगीत’ संग नाद योग के अभ्यास का उद्देश्य संगीत से आबद्ध होना नहीं प्रत्युत् लयबद्धता को स्वयं के भीतर जगाना है, स्वयं से ही लयबद्ध होना है @ आत्मा के प्रकाश में ही आत्मा का अनावरण होता है। आत्मा वाऽरे ज्ञातव्यः। आत्मा वाऽरे श्रोतव्यः। आत्मा वाऽरे द्रष्टव्यः। यकीन जिस दिन यह लयबद्धता आ गई उस दिन कुछ भी भिन्न नहीं रहता @ अभेद दर्शनं ज्ञानं। आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः।
हे अर्जुन तू युद्ध भी कर और मुझे स्मरण भी। अर्थात् लोकाचार करें, आत्मभाव के साथ।
‘जीवात्मा’ के आनंद के माध्यम पंचकोश हैं। ‘आत्मा’ सच्चिदानन्द स्वरूप हैं। पंचकोश अनावरण के बाद किन्हीं बाहरी साधनों की आवश्यकता नहीं होती है।
बाह्य ध्वनियों का आश्रय धीरे धीरे छोड़ते हुए अपने अंदर की आवाज से युक्त होकर अपनी यात्रा जारी रखी जा सकती है।
‘ईश्वर’ को पाने का सार्वभौम सूत्र है unconditional love @ आत्मीयता।
🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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