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Paingala Upanishad (पैंङ्गल उपनिषद्) -1

Paingala Upanishad (पैंङ्गल उपनिषद्) -1

पंचकोश साधना ~ Online Global Class – 31 May 2020 (5:00 am to 6:30 am) – प्रज्ञाकुंज सासाराम – प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

विषय – पैंङ्गल उपनिषद्
प्रसारण/Admin. आ॰ अमन कुमार/आ॰ अंकूर सक्सेना
टीकावाचन. आदरणीय किरण चावला (USA)

Please refer to Recorded Video Classes for more clarity & understanding

Pangala Upanishad – Chapter 1

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी:

विज्ञानमयकोश की साधना में हमे अनवरत् चेतनात्मक विस्तार करते जाना होता है|
🙏 सृष्टि (Nature) के सभी परिवर्तनशील घटक को अनात्म व उन सभी में विद्यमान (universal) अपरिवर्तनशील (शाश्वत) चैतन्य सत्ता को आत्म कहते हैं| अर्थात् संसार के हर परिवर्तनशील सत्ता (जड़/चेतन, गोचर/अगोचर) में एक अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता विद्यमान है जिसका बोधत्व ही कैवल्य का अधिकारी बनाता है|

🙏 हमारे brain ऐसे स्नायु रसायन उत्सर्जन की क्षमता रखता है की मानव हर एक परिस्थिति में स्थित् प्रज्ञ रह सकता है| उपनिषद् स्वाध्याय से हम अपने brain को उस level तक ले जा सकते हैं, as यह absolute truth है|

🕉 पैङ्गल उपनिषद. ऋषि पैङ्गल ने १२ वर्षों तक याज्ञवल्क्य ऋषि की सेवा सुश्रुषा की; उसके बाद कैवल्य की प्रति अपनी जिज्ञासा उनके समक्ष रखी|

गुरू/ऋषि/संत जनों के सान्निध्य से भी हमे ज्ञान की प्राप्ति होती है और लंबे समय तक उनके साथ रहने से उनकी teaching से tuning करना easy होता है ||१||

🙏 सत् ही नित्य (eternal), मुक्त (independent), अविकारी (invariable), सत्य, ज्ञान और आनन्द से पूरित सनातन तथा एकमात्र अद्वैत ब्रह्म है ॥२॥

🙏 ब्रह्म से त्रिगुणात्मक (सत्, रज, तम) मूल प्रकृति उत्पन्न हुई, जिसमें तीनों गुण समानावस्था में विद्यमान थे। उसमें जो प्रतिबिम्बित हुआ, उसे ही साक्षी चैतन्य कहा गया ॥३॥ ~ समत्व योगं उच्यते|

🙏 मूल प्रकृति जब पुनः विकार युक्त हो गई तब, सत्त्वगुण युक्त अव्यक्त आवरण शक्ति कहलाई। उनमें प्रतिबिम्बित चैतन्य सत्ता – ईश्वर कहलाई जिसके अनुशासन (ईशानुशासनं) में सृष्टि का ‘पालन पोषण व संहार’ होता है| ॥४॥

🙏 ईशाधिष्ठित आवरणशक्ति से रजोगुणयुक्त विक्षेपशक्ति प्रकट होती है ॥५॥

🙏 विक्षेप शक्ति से, तमोगुण वाली अहंकार नामक स्थूल शक्ति आविर्भूत हुई। आत्मा से आकाश तत्त्व की उत्पत्ति हुई। आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी तत्त्व का आविर्भाव हुआ। उन्हीं से पञ्च तन्मात्राएँ (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श)और तीन गुण (सत्व, रज व तम) उत्पन्न होते हैं ॥६॥

🙏 जो सारे सूर्यों का प्रसव करता है वह सविता है|जगत रचयिता ने सृष्टि निर्माण की इच्छा तमोगुण में अधिष्ठित होकर सूक्ष्म तन्मात्राओं (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) को स्थूल पञ्चतत्त्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) में प्रतिष्ठित करने की कामना की।
उन रचित भूतों में से एक-एक के दो भाग किए, फिर उनमें से प्रत्येक के चार-चार भाग किए। इसके पश्चात् प्रत्येक भूत के अर्धांश में अन्य भूतों के अष्टमांश को मिलाकर सबका पंचीकरण किया; तत्पश्चात् इन पंच भूतों से अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों की सृष्टि की, फिर उनके योग्य चतुर्दश भुवन रचे तथा उन भुवनों के उपयुक्त स्थूल शरीरों का सृजन किया ॥७॥

🙏 इसके पश्चात् पञ्च भूतों के रजोगुण युक्त अंश के चार भाग करके तीन भागों से पंच प्राणों (प्राण, अपान, व्यान, उदान व समान) का सृजन किया और चतुर्थांश से कर्मेन्द्रियों (वाणी, हाथ, पैर, गुदा व जननेन्द्रिय) का निर्माण किया ॥८॥

🙏 पञ्च भूतों सतोगुण युक्त अंश को चार हिस्सों में विभाजित करके उसके तीन भागों से पंच वृत्त्यात्मक अन्त:करण और चौथे भाग से ज्ञानेन्द्रियों (आँख, कान, नाक, त्वचा व जिह्वा) का सृजन किया ॥९॥

🙏 सत्त्व समष्टि से उसने पंच ज्ञानेन्द्रिय के पालक देवताओं का सृजन किया और उन्हें ब्रह्माण्डों में स्थापित कर दिया। विष्णु रूपी ब्रह्म सृष्टि पालन व संरंक्षण करने लगे॥१०॥

🙏 ब्रह्माण्ड में स्थित वे देवगण उस (ब्रह्म) के बिना न तो स्पन्दन कर सके और न ही कोई चेष्टा कर सके। तब उस (ब्रह्म) ने उन्हें चैतन्य करने की इच्छा की। वह ब्रह्माण्ड, ब्रह्मरन्ध्र और समस्त व्यष्टि के मस्तक को विदीर्ण करके उसी में प्रवेश कर गया, तब वे जड़ता सम्पन्न होते हुए भी चेतन की तरह अपने अपने कर्म में प्रवृत्त हो गये ॥११॥

🙏 सर्वज्ञ ईश्वर मायायुक्त होकर व्यष्टि रूप शरीर में प्रविष्ट हो गया और मोह के कारण जीवत्व (जीव भाव) को प्राप्त हो गया। तीन शरीर (स्थूल, सूक्ष्म और कारण) से तादात्म्य स्थापित करके कर्तापन व भोक्तापन का अनुभव करने लगा। जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति, मूर्छा आदि स्थितियों वाला होकर मरण धर्म को प्राप्त करके घटीयंत्र (रहट) के समान उद्विग्न (चंचल) होकर तथा कुम्भकार के चक्र के समान उत्पन्न और मृत होता हुआ जगत् में परिभ्रमण करने लगे ॥१२॥

प्रश्नोत्तरी (Q&A) with @LBSingh

🙏 वर्गीकरण (Classification) का उद्देश्य concept को सरलता से समझाने हेतु किया जाता है अतः इनमें उलझना नहीं है वरन् सुलझना है अर्थात् निहित तत्वज्ञान (concept) को समझना है|

🙏 परमात्मा को नियामक (Regulator) अर्थात् विधि व्यवस्था को बनाये रखने वाला विधाता भी कहते हैं|

ईशानुशासनं स्वीकरोमि, और जो उस अनुशासन को तोड़ते हैं वह दण्ड व्यवस्था के अंतर्गत आ जाते हैं – इसे कर्मफल के विधान से समझा जा सकता है|

🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||

🙏संकलन- विष्णु आनन्द 🕉

 

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