पंचकोश जिज्ञासा समाधान (03-09-2024)
आज की कक्षा (03-09-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
अर्थववेद के ६ कांडा के सप्तम अनुबाक में १ और २ सूक्तम ये बताते है की तत्कालिन लोग नॉन्वेजिटेरियन थे। क्या ये सत्य है याअनुबादक की गलती है, ये बंगला अनुवाद से मिला
- यहा असुरत्व से अपनी रक्षा कैसे करे, यह बताया है, यहा कुण्डलिनी शक्ति के द्वारा हम स्वयं की असुरत्व से सुरक्षा कर सकते है, यह विज्ञान यहा बताया गया है
- फिर आया है कि जिस शक्ति के द्वारा आप हमारे शत्रुओं को परास्त करते है इस शक्ति के द्वारा हमें आशीर्वाद प्रदान करें
गायंत्री महाविज्ञान में आया है कि अपने रक्त को कडवे तेल में तथा उसमे विष मिलाकर यत्नपूर्वक पूर्ण कान में देना चाहिए तो यहा कडवे तेल का क्या अर्थ है
- कडवा तेल = सरसों का तेल कहलाता है
- यह नीम का तेल नहीं है
अर्थववेद के पितृमेध सुक्त 2 में आया है कि एक यम है त्रिकद्रुक (ज्योति, गौ और आयु) नामक यज्ञ में संव्याप्त है, वे यमदेव 6 स्थानों (द्युलोक, भूलोक, जल, औषधियों, ऋक और सुनृत) में निवास करने वाले हैं, त्रिष्टुप, गांयत्री एवं दूसरे सभी छंदों के माध्यम से हम उनका स्तुति गान करते हैं, का क्या अर्थ है
- त्रिकद्रुक = ज्योति – गौ – आयु ->
- ज्योति = मनोमय कोश की साधना
- प्राणमय कोश की साधना = गौ आध्यात्मिक / चेतना / प्राण वाली किरणें है, प्राणिक यज्ञ या Meditation से भी ठीक किया जा सकता है
- आयु -> अन्नमय कोश की साधना
- गुरुदेव ने छाछ, जौ व यज्ञ तीनों का उपयोग किया
. . . जौ आयु को बढाने वाला होता है - 6 चक्र ही यमदेव के 6 स्थान है
- त्रिष्टुप छंद = प्रार्थना में त्रिष्टुप व गायंत्री छंद के माध्यम से ही हम उनका स्तुति गान करते हैं तथा गीता का 11 वां अध्याय में भी त्रिष्टुप छंद का प्रयोग किया है
- सहृदयता को prayer कहा जाता हे
- Neuro Transmitter इसमें काम आते हैं
- ग्रंथि भेदन के रूप में भी त्रिकद्रुक को ले सकते है, वेद में एक ही शब्द व्यापक अर्थो में प्रयोग होता है उसका दायरा असीमित है
मण्डलबाह्मणोपनिषद् में द्वितिय बाह्मण में आया है कि सुर्य नारायण ने कहा कि पंच भूतो का आदि कारण प्रकाश पुंज के समान है, उसमें एक चर्तुपीठ है जिसके बीच में तत्व का प्रकाश होता है, वह प्रकाश अतिगुण व अव्याप्त है का क्या अर्थ है
- चर्तुपीठ = उसके (पंचतत्वों के) समुच्चय को कहते हैं, चक्रो के आधार को भी चर्तुशपीठ कह सकते है
- मूलाधार चक्र के Atom चौकोर होते है
जो माला पहनते है उस माला को जपने में क्या कोई दोष भी होता है
- एक नियम बनाया गया है कि जो माला जप करे उसे पहने मत क्योंकि जप की हुई माला में शक्ति बढ़ता जाता है तथा फिर उसे एक स्थान पर रख दे ताकि घर के अन्य सदस्य भी उसी माला को जप ले अन्यथा प्रत्येक को अलग माला लेनी होगी
- जप करने के बाद यदि पहन लेगे तो माला आपके दोषो, कुविचारो से प्रभावित हो सकता है तथा आपकी भावनाओं को सोखती है
- जब करते समय जब हम ईश्वरीय मनोभूमि में रहते हैं तो माल भी चार्ज होता रहता है तथा उसके बाद वही माला पूजा स्थान पर रहेगा तो पूरे परिवार की रक्षा करता रहेगा, फिर उसे छूने भर से ही लाभ मिलता रहेगा
- उसकी Potency बनी रहे इसलिए उसे अलग रखने को कहा है
- औषधि रूप में लाभ लेना है तो अलग माला रखें
क्या यज्ञ के मंत्र अन्य भाषाओं में बोला जा सकता है कृपया प्रकाश डाला जाय
- मंत्र संस्कृत में है, उसमे बोलते समय भाव रखे
- दूसरो की भाषा में लिख सकते है तो मन ही मन पढ़ते हुए लिख भी रहे हैं
- मंत्र अक्षरो का गुम्फन है कि ऐसा शब्द उच्चारण करने से अंतरिक्ष में जाकर प्राणों का मंथन करके प्रभाव देते है
- उच्चारण से भाव पक्ष अधिक महत्वपूर्ण है
- भाव यदि शुद्ध हो तो वह उच्चारण, शब्दो के प्रभाव से मुक्त हो जाता है
- देवता भावनाओं के बने होते हैं, संसार भावनाओं से बना है इसलिए ईश्वर आपके भाव को समझते है
साधना से सहृदयता कैसे बढ़ती है, दोनो में क्या अंतर है
- सहृदयता = दयालुता या उदार भाव
- ईश्वर को भावनाओं से कोई लेना देना नहीं, इसका उत्तर अंतरिक्ष से मिला -> भावातीतम त्रिगुण रहितम सदगुरुम तम नमामि
- उस गुरु को प्रणाम जो भावनाओं से परे हो, ईश्वर भावतीत है, इसका अर्थ कि अभी तक हम शिक्षक नही थे, भावनाओं के आवेश में बह रहे थे तथा शिक्षा के नाम पर लोगो को Cheat किए है
- भावातीत का नया अर्थ मिला कि अपनी भावनाओं को आकाश की तरह विशाल कर दो तथा किसी सीमा में मत बांधो
- Boundary / सीमा में भावनाओं को बाधने पर भावनाएं मोह कहलाती है
- ईश्वर में मोह वाला भाव नहीं है बल्कि उदार भक्ति भावना है, हमारी मोह भावना के वश में हम अपने पराए के हिसाब से प्यार करते हैं
- सहृदयता = प्रेम भाव सभी के लिए है, उस भाव के प्रभाव में आश्रम में जानवर तक अपनी दुश्मनी छोड़कर प्रेम भाव में आ जाते थे तथा आश्रम के बाहर फिर से दुश्मनी वाले भाव में आ जाते थे, ऐसा सदभाव बहुत शक्तिशाली होता है
- ऐसे उदार भाव से चित्त शुद्ध हो जाता है और चित्त शुद्ध हो जाएगा तो आत्मा मिल जाएगा
- इसलिए सतोगुणी तमोगुण रजोगुणी तीनों भाव से बाहर निकालने की बात यहां की गई है
- विज्ञानमय कोश में भी Pollution होता है, तभी विज्ञानमय कोश में शुद्धि की बात यहां की जा रही है
आज्ञा चक्र में विचार नही आते परन्तु जैसे ही थोडा सा सुस्त होते है तो विचार दिमाग में चलने लगते है तो इससे कैसे बचा जाए तथा बिना Disturb हुए साधना कम्र कैसे जारी रखा जाए
- चलते फिरते आज्ञा चक्र को जगाना है तो हर काम में समझदारी का प्रयोग करे, उसका अच्छे से अच्छा उपयोग कैसे किया जाए, समझदारी को ही प्रज्ञा कहा जाता है
समझदारी कहती है कि गलत चीजो को ना खाया जाए परन्तु पुरानी आदते आर्कषित करती है तो इससे कैसे बचे
- जब जब मन में गलत खाने की इच्छा हो तो मन ही मन उसके घाटे को भी याद करे तो वह उसे काटेगा, भीतर प्रतिपक्ष भावना जगाएं तथा कई तरह से तथ्य देकर मन को समझाए
- कुछ समय अच्छा भोजन अपने मन के अनुकुल बनाकर खाए फिर मन उस भोजन में भी रुचि लेने लगता है
- जब मन को पहले से बेहतर विकल्प मिल जाएगा तो वह अच्छे भोजन के प्रति ही आकर्षित रहेगा🙏
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