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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (04-09-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (04-09-2024)

आज की कक्षा (04-09-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

शिवसंकल्पोपनिषद् में आया है कि जो परमात्मा अपनी महिमा द्वारा निमिष मात्र में मनुष्य पशु सहित सम्पूर्ण जगत के अधिष्ठाता होते हे जो इस जगत के स्वामी है उन आनन्द स्वरूप परमेश्वर के अतिरिक्त और किस देव को हवि की आहुति समर्पित करे, ऐसा चिंतन करता हुआ मेरा मन श्रेष्ठ संकल्प वाला हो, का क्या अर्थ है

  • किस से प्रार्थना करे, किससे सबन्ध जोडे, जब एक ही ईश्वर सब जगह है
  • जो कुछ भी करे परमात्म भाव से करे
  • हवि केवल हवन के लिए ही नही अपितु जो कार्य हम करते है उसे यज्ञ भाव से करे
  • जो कार्य हम करे उसका उदेश्य ईश्वर प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार होना चाहिए
  • शिव यहा किसी खास देवता के लिए नहीं कहा गया अपितु वह पर ब्रह्म के लिए कहा गया है

नाद बह्म / नाद योग करते समय हमारी मानसिकता क्या होनी चाहिए

  • सूक्ष्म जगत में जो ध्वनिया चल रही है उसे सुनने का अभ्यास करना चाहिए
  • जो हम स्थूल जगत में देखते हैं, सूक्ष्म जगत में वह घटना पहले ही घट चुकी होती है
  • कान बंद करने के बाद भी मस्तिष्क में कुछ ना कुछ आवाज चलता रहता है, उन आवाजो के पीछे कौन सा आवाज है उसे Follow करना चाहिए तथा सूक्ष्म कर्णेद्रियो का विकास करना चाहिए
  • जो नाद हम सुनते है वह आहत नाद किसी व्यक्ति के द्वारा बजाया गया है
  • किसी भी ध्वनि से शुरू कर सकते है परन्तु इस एक आवाज में फसे नही रहना है, प्रत्येक ध्वनि में ईश्वर को महसूस करे
  • जो आवाज हमें बाहर से सुनाई देता है बैखरी के रूप में, इसमें हमें ब्रह्म को देखना, यह शब्द बह्म कहलाता है
  • Tuning को नाद कहेगे तथा गीत जब बन जाए तो यह शब्द बह्म कहलाता है
  • जो ध्वनि हम निकाल रहे है वह कल्याणकारी होना चाहिए, यह शब्द ब्रह्म का Practical है
  • ध्वनिया जो हम निकाल रहे है वह विश्व कल्याण के लिए हो
  • मौन में जब शांति व आनन्द का अनुभव मिलने लगे तब उसे अनहात बह्म कहेंगे यही ॐ भी है
  • हमें आवाजो के उठा पटक से बाहर निकलना चाहिए, यदि कोई हमें कुछ अपशब्द भी कहता हो तो भी उसमें विचलित ना हो, इसी की साधना ही नाद ब्रह्म है
  • प्रत्येक आवाज में आनन्द, मस्ती व आत्मशांति आना चाहिए यही नाद योग का मुख्य उददेश्य है

मण्डलबाह्मणोपनिषद् में आया है कि जो 9 चक्र, षड आधार, त्रिलक्ष और व्योमपंचक को समग्र प्रकार से नही जानता है वह नाम मात्र का योगी है, आम व्यक्ति को कैसे बताया जाए

  • आम व्यक्ति को उसी की भाषा में उसी के शब्दों में समझाएगे
  • जैसे पाच कोश (पांच आकाश) वे बारे में बताना है तो पाच कोश सूक्ष्म आकाश की तरह है, उन्हे
    -> स्वास्थय बनाए रखे (अन्नमय)
    -> बहादुर बने / प्राणवान बने (प्राणमय)
    -> तेज बने (मनोमय)
    -> उदार / दयालु बने (विज्ञानमय)
    -> हमेशा खुश रहे (आनन्दमय)
  • जो केवल भाषण दे रहा है, व्यवहार में नही है, वह नाम मात्र का योगी है तथा जो Practical कर लिया वही असली योगी है

अवधूतोपनिषद् में आया है कि . . .

मोद बाया बाजू है, प्रमोद दाया बाजू है और मद्य आत्मा है . . .मद्य में आत्म बुद्धि नही कहनी चाहिए . . .उस बह्म को इसी पूच्छाकार में जानना चाहिए, इस प्रकार हम ब्रह्म को जानकार परम गति को प्राप्त करते हैं, का क्या अर्थ है

  • अपने दिमाग में / बह्मरंध्र में ईश्वर को देखे, उठते बैठते व चलते फिरते आत्म चिंतन / स्थिति में रहे
  • मोद व प्रमोद = आध्यात्मिक व भौतिक दोनो आनन्द लीजिए
  • आत्मा का पूछ यह शरीर है जो झड जाता है तथा जैसे सृष्टि का अन्त होत है तो केवल आत्मा ही शेष बचती है
  • पूछ का एक अर्थ खरपतवार भी है यह छूट जाता है तो पूछ को छोडकर आगे भी शीर्ष तक बढ़े
  • पुच्छाकार = साकार बह्म को पुच्छाकार माने

चेतन,अचेतन मन में दबे पड़े अच्छे बुरे संस्कार को सम्पूर्ण नष्ट कैसे करे।

  • कुण्डलिनी जागरण से सब भस्म हो जाता है अन्य कोई उपाय नहीं
  • सावित्री कुण्डलिनी एवं तन्त्र (5.8) में पेज 5.107 में आया है कि कुण्डलिनी को योगाग्नि कहा गया है – यह कुण्डलिनी तीनो (प्रारब्ध – संचित – क्रियमाण) प्रकार के कर्मो को भस्म कर देती है
  • कुण्डलिनी जागरण के लिए पंचकोश में ग्रंथि भेदन करना है, विज्ञानमय कोश पर अधिक काम करना है
  • धीमी आच पर लोहा (हठीले कुसंस्कार) को नही गलाया जा सकता, इसके लिए अधिक तापमान की आवश्यकता पडती है

क्या ईश्वर के नाम पर नाचना गाना आदि केवल मनोभूमि बनाता है कि आत्मिक विकास मे सहायक है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • आत्मिक विकास में भी सहायक है
  • क्योंकि उस समय व्यक्ति अपने गम को भूलकर हल्का फुलका हो जाता है तथा दिमान से Oxytocin नामक रस निकलता है तथा वो रस हमें प्रफुल्लित करेगा, कोशिकाओ का विकास करेगा, मन को हल्का कर देता है
  • मन के लिए केवल मनोरंजन ही नही बल्कि लोक रंजन भी करे अन्यथा हम केवल थोडा Relax भर होगे परन्तु मन की गांठे ज्यो की त्यों बनी रहेगी
  • नृत्य संगीत हमें अच्छे आयाम (लययोग) में ले जाते है तथा वह संगीत हमें समाधि में ले जाता है
  • वही नृत्य संगीत यदि अश्लीलता से युक्त रहा तो वह मन को तो Relax करता है परन्तु काम शक्ति को नीचे की दिशा में ले जाता है
  • दोनो दृष्टि से हमें देखना चाहिए

गौदान का क्या महत्व है

  • पहले मरने से पहले गाय का पूंछ छुआया जाता था, तो वैतरणी पार करने की बात आती है
  • इस गाय से उसका अर्थ न ले
  • गायंत्री ही कामधेनु है
  • यदि हम गाय दान करते है तो ऐसे को करे जो गौपालन भी करते हो अन्यथा या तो गाय को मारेगा या बेचेगा / अपमानित करेगा
  • यहां गौ शब्द आध्यात्मिक है
  • यहा धरती पर वैतरणी नामक नदी कोई है ही नहीं
  • इसी शरीर को वैतरणी कहा है तथा इसी नदी के भीतर वासना तृष्णा अहंकार जैसे मगरमच्छ रहते हैं, इसी से गांयत्री मंत्र पार लगाता है
  • गौ पालन से आत्मिक विकास का अर्थ यह है कि गाय के पंचगव्य (दूध, दही / छाछ, गोमूत्र, गौबर व घी) का सेवन करने से चित्त शुद्ध हो जाता है और जिसका चित्त शुद्ध हो जाता है वह प्रेत योनि में नहीं जाता है, चित्त शुद्धि का यह आत्मिक विकास हमें मिलता है

गायंत्री मंत्र का अभिप्राय क्या है, गहरी साधना में यदि मंत्र छूट जाए तो भी कोई दिक्कत नही, का क्या अर्थ है

  • गायंत्री मंत्र की सांगोपान साधना करे
  • गायंत्री के पांच चरण / पांच मुख / पांच कोश बताए गए हैं
  • पांचो कोशो की साधना / आत्म साधना को गांयत्री साधना कहते है
  • उसे अपने जीवन में घोले
  • आत्म सुधार / आत्म विकास ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है
  • मंत्र का एक अर्थ सलाह भी होता है, उस सविता को वरण करें जो ब्रह्मांड व्यापी है तथा कण-कण में वास करता है, उसके दिव्य तेज को हम धारण करें तथा वैसा जब बन जाए तब उसे समाज सेवा में लगा लगाए

जो साधना हम करते हैं तो उससें पूर्व संस्कार नही गलते, सामान्य साधक के लिए 2 घंटे के सीमित समय में क्या आसान steps है

  • 2 घंटा ईमानदारी से साधना करे तो संसार की कोई शक्ति उसे नहीं छू पाएगी और वह इतना आगे तक निकल जाएगा
  • 1 घंटा Practical + 1 घंटा स्वाध्याय
  • परन्तु हम 2 घंटा भी ईमानदारी से नहीं करते इसलिए ध्यान करते समय हमारा मन कई बार भटक जाता है, यह ईमानदारी नहीं 🙏

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