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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (05-09-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (05-09-2024)

आज की कक्षा (05-09-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

शिवोपनिषद् में आया है कि विद्या वही है जो कर्म का नाश कर दे, अतः कर्मयोगी साधक भी शिव विद्या के प्रभाव से एक दिन कर्मरहित हो जाते है, . . . गुरु वरण करे व यथाशक्ति पूजन करे, गुरु को भी भोग व मोक्ष की इच्छा को जीतने में कारणभूत विद्या का दान करना चाहिए, शिव योगी, भूज्ञानी, शिवजापी, तपस्वी, कर्मयोगी, ये पांचो ही कम्रशः मुक्ति के पात्र है, लिंग व आयतन के दो आधार है इनमें ही कर्म प्रवृत होता है, का क्या अर्थ है

  • कुण्डलिनी जागरण उच्च स्वरीय साधना में आता है, जिसके द्वारा कर्म का नाश (कुण्डलिनी जागरण से उत्पन्न योगाग्नि से तीनो कर्म भस्म हो जाते है) होता है, साधारण साधना से नाश नही होगा
  • यह दोनों विद्याएं (पंचकोश व कुण्डलिनी) गुरु को अपने शिष्यों को बतानी चाहिए जो इसमें प्रवेश करना चाहते हो, पूज्य गुरुदेव ने इन दोनों विधाओं को जन सामान्य के लिए सरल किया
  • यही (कुण्डलिनी ही) कारणभूत विद्या है इसी कुण्डलिनी जागरण से भोग व मोक्ष दोनो मिलता है, भौतिक व आत्मिक जगत दोनो पर नियंत्रण होता है

क्या सारे स्वप्न अचेतन मस्तिष्क से ही आते हैं या तात्कालिक भी होते हैं। स्वप्न क्यों दिखाई पड़ते हैं। कृपया स्पष्ट करने की कृपा करें।

  • सारे स्वपन अवचेतन से ही होते है
  • जागृत स्वपन में भी मनन चिंतन Planning में खो जाना स्वपन की तरह होता है
  • मन उसे अवचेतन मन मे प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए भेज देता है तब स्वपन के माध्यम से उन प्रश्नो का समाधान मिलता है
  • स्वपन सच्चे भी होते है व झूठे भी
  • सच्चे तब होते है जब Superconcious मन से उसका उत्तर मिले क्योंकि कोई भी घटना पहले सूक्ष्म जगत मे पहले ही घट चुकी होती है तथा फिर उस घटना को स्थूल में आने में समय लगता है
  • जिसने अपने Super concious मन को जगा लिया है वे ऋषि जब चाहे तब यह देख सकते हैं कि भविष्य में क्या होने वाला है जैसे श्री अरविंदो . . .
  • अवचेतन में दबे हुए संस्कारों को खाली कराने के लिए कोई न कोई दृश्य बनाकर उसे खाली करता है तो वह अपनी ढंग की कल्पना बनाकर खाली करता है

क्या Superconcious मन वाले सपने ही सच्चे होते है तथा बाकी झूठे होते हैं

  • झूठे सपने भी जरूरी होते है क्योंकि जो कबाड जमा है या काम वासना दबी हुई है तो उसे निकालने के लिए फिल्म बनाकर वीर्य स्खलन के रूप मे निकाल देगा

क्या सूक्ष्म जगत में घटने वाली प्रक्रिया जो पहले घटित हो चुकी है तथा SuperConcious में घट चुकी है तो क्या उसे स्थूल जगत में आने से पहले या घटित होने से रोका जा सकता है

  • उसकी संभावना कम रहती है
  • जिनको संजीवनी विद्या आती है वे रोक लेंगे जैसे गुरुदेव के पास वह विद्या थी
  • गुरुदेव ने एक शिष्य को साप काटने से बचाया
  • बिजली रूपी तरंग भी सर्प है
  • माईक में बिजली के current से मर गए तब गुरुदेव ने उन्हे जीवन दान दिया
  • कृष्ण ने गर्भ में मरे हुए पारीक्षित में प्राण डालकर बचा लिए

क्या झूठे स्वपनो को भी स्थूल में घटित होने से पहले रोका जा सकता है

  • यदि ज्ञान की साधना कर रहे है तो वीर्य का overflow होगा ही नही तथा वह वीर्य कही न कही ज्ञान या साधना में खपता ही रहेगा, इस तरह इसका Utilization हो जाता है
  • शंखपुष्पी का सेवन से पेशाब करने की समस्या ठीक हो जाएंगी

अवधूतोपनिषद् में आया है कि योगियो के लिए कोई धर्म नही है ना ही अधर्म है, पवित्र या अपवित्रता भी नहीं, योगी जन सदा सग्रह की दृष्टि से अतःदृष्टि अतःकरण में अश्वमेध यज्ञ किया करते है, . . . का क्या अर्थ है

  • अश्व = फैलाना / बढ़ाना, मेध = मेधा
  • आत्मा के ज्ञान को/ अनुभव को बढाना = इसी को अश्वमेध यज्ञ कहते है

आगे आता है कि मै निद्रा की, स्नान व शौच आदि की तनिक भी इच्छा नही करता, जो लोग दृष्टा स्तर के हो वे भले ही कोई कल्पना करें परन्तु

मुझे किसी अन्य की कल्पना करने से कोई लाभ नही, अन्य लोग गुंजा की लालिमा के कारण भले ही अग्नि को प्रतिष्ठित करे किन्तु इस अग्नि से गुंजा का ढेर नही जलता है . . . इस कारण मै किसी का भी भजन नही करता, का क्या अर्थ है

  • गुंजा = जावित्री के बीज
  • ध्यान में जाकर केवल फिल्म देख लेने से बात नही बनती उसे (अपने दोष दुर्गुणों को) Practical करके हटाना होता है
  • आत्म समीक्षा व आत्म सुधार करना होता है

बिना हरि इच्छा के जब कुछ नही हो सकता तो क्या जब वो ईश्वर चाहेगे तभी आत्मसमीक्षा व आत्मसुधार होगा

  • अपनी इच्छा भी मायने रखती है
  • अपनी आत्मा के भीतर परमात्मा ही बैठा हैं तो आपकी अपनी इच्छा में हम उनकी इच्छा क्यो नहीं मानते, उसे अपना क्यों मान लेते है
  • यदि गलत इच्छा भी होगी तथा जब गलत होगा तो परिणाम भी भुगतेंगे तथा गलती नही दोहाराएगे
  • Practical करेंगे तभी पता लगेगा कि क्या सही है और क्या गलत है तथा हमें किस प्रकार जीना है
  • आत्मा तो स्वयं में तृप्त है तथा आत्मा से इच्छा नही करते, मन से इच्छा करते है तथा मन – शरीर या अन्य कोई भी तत्व आपका अपना नही है
  • हमें ऐसे में कुछ सीखना है व आनन्द लेना है

महावाक्योपनिषद् में आया है कि पुरातन कालीन श्रेष्ठ धरावलंभी इन्द्रादि देवो ने ज्ञान यज्ञ द्वारा यज्ञ रूप विराट का यजन किया, वे ही यज्ञ जीवन यापन करने वाले प्राचीन काल से सिद्ध साध्य देवो के निवास स्थल को मंडित करते हुए देवलोक में प्रकाशित हो रहे है, का क्या अर्थ है

  • यहा इस मंत्र की चर्चा हो रही है जो धर्म में श्रेष्ठ है वे अपनी इंद्रियों के द्वारा यज्ञ किए (इंद्रियां = मन)
  • पंचतत्वो (5 देव)का राजा मन है
  • पंच प्राणो का देवता आत्मा है
  • देवलोक = दिमाग में स्वर्ग आ गया तो वही देवलोक है, सहज समाधि की अवस्था को भी देवलोक में रहना कहेंगे, यहां अलग से कोई लोक नहीं है सारे लोक यहीं पर घुले हुए हैं, केवल अलग अलग Frequency भर है, अपने उपर है कि कौन सा चैनल लगा ले
  • सतपुरुषो के साथ रहना व उनके साथ समागम करना स्वर्ग कहलाता है

संत ज्ञानेश्वर जी ने कहा कि आत्मा पर अविद्या का घेरा हमारी मान्यता है, अन्त में कहा कि अविद्या जैसी कोई चीज नहीं है भाव जैसी कोई चीज है ही नही तो उसे कैसे हटा सकते है, इसे साधक कैसे समझे

  • साधना करते रहने से अज्ञानता के परत को हटाते हटाते जब विशुद्ध ज्ञान (आत्मज्ञान) मिल जाएगा तब ज्ञान के ऐसे लोक / आयाम में प्रवेश कर जाएगे तब लगेगा हर जगह ईश्वर ही ईशवर है
  • उसके पहले वैसा नही दिखता तो अविद्या कह दिया जाता है, पहले द्वैत भाव में व्यक्ति रहता है जैसे कभी धूप तो कभी छाया, कभी सुख तो कभी दुखः, कभी फायदा तो कभी घाटा -> जबकी यह हमारी कमजोरी थी कि विपरित परिस्थितियों का हम लाभ लेना नही जानते
  • लाभ लेने की कला जानने पर वह हर स्थिति में सम रहने लगता है
  • शक्ति भी खराब नही है
  • अविद्या = पदार्थ विज्ञान , इसका गलत अर्थ न ले
  • जब पता चल जाता है कि पदार्थ विज्ञान में भी ज्ञान / चेतना घुला हुआ है तो अविद्या जैसी कोई चीज ही नहीं है तथा विद्या – अविद्या का भेद समाप्त हो जाता है

अच्छी या बुरी इच्छाएं क्या दोनो ही भगवान की देन है कृप्या स्पष्ट करे

  • सविता ही सारे भूतो व भावनाओं को उत्पन्न करता है, पोषण देता है तथा सबको प्रेरित करता है
  • गायत्री मंत्र में भी हम कहते हैं कि कल्याण के लिए ईश्वर सभी की बुद्धियों को प्रेरित करता है
  • गलत करते है तो देवता भी खदेडे जाते है, सुर असुर का सग्राम तो हमेशा ही चलता है
  • विष्णु भगवान से भी अधिक सात्विक कौन होगा, उनके आलस्य से 2 राक्षस उत्पन्न हो गए थे
  • यह सब शिक्षण के लिए होता है ताकि हम सदैव Balance रहे व हमारी प्रगति बनी रहे
  • गुण ही गुण में परिवर्तित होते है
  • जब कण कण में ईश्वर है तो अपना कुछ भी नही है तो हमारा मस्तिषिक ही अभी खंडित है

यदि कुविचार भी आत्मा/ईश्वर की ही देन है तो फिर आत्म विकास की तरफ कैसे बढ़ा जाए

  • हर कोई आनन्द के लिए कर रहा है
  • जब भाव संवेदना बढ़ जाएगी तब वह व्यक्ति चोरी करेगा ही नहीं
  • चोर यदि चोरी नही करेगा तो अन्य सभी सजग / सतर्क कैसे होंगे तो यहा ईश्वर ही चोरी करके यह पाठ कर रहा है
  • क्रोध का प्रबंधन करना है तो क्रोध वहा करे जहा जरूरी है
  • क्रोध भी देवताओ का गुण है, यदि सही दिशा मे लगे तो क्रोध मन्यु भी कहलाता है

क्रोध करना है या नही करना यह मन सोचेगा या आत्मा सोचेगी

  • सोचने के लिए जो तत्व मिला है उसे मन कहते है तो सोचने का काम मन करेगा 🙏

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