पंचकोश जिज्ञासा समाधान (06-09-2024)
आज की कक्षा (06-09-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
मत्रियोपनिषद् में आया है कि सात धातुओं से निर्मित महारोग से युक्त पाप के घर की भांति, सतत चलाएमान, विकारो से भरे हुए इस शरीर को स्पर्श करने के उपरान्त स्नान अवश्य करना चाहिए, यहां किस स्नान की बात की जा रही है
- सोहम भाव से स्नान कर लेना चाहिए
- जब जब सप्त धातुओ से बने शरीर भाव मे रहेने तो दुषित रहेगे, इस शरीर को अपना रूप मान लेना आत्मा को दुषित करना है
- शरीर भाव में रहने पर जीव तथा सोहम् भाव में रहने से शिव हो जाता है
- मन को स्वच्छ रखना व सोहम भाव / आत्म भाव में अपने को स्मरण करते रहना स्नान कहलाएग
- सप्त धातु में भी यदि ईश्वर को देख लेगे तो वह भी स्नान कहलाएगा, यही सोहम भाव है
जब नाडी शोधन करते है तो प्राण कैसे उपर जाते है, इसकी Anatomy क्या है
- एक एक चक्र में हमारी चेतना को काफी समय तक फंसा कर रखता है
- अनाहात चक्र भावनाओं का क्षेत्र है तथा सामान्य व्यक्ति में ये भावनाएं केवल अपने घर परिवार तक ही जुडी हुई हैं तो मोह कहलाता है
- इसी मोह की परिधी को बढा दिया जाए तो उदार भक्ति भावना (सर्वे भवन्तु सुखीना का भाव) कहलाएगा, तब उपर जाने का मार्ग मिल जाता है
- विशुद्धि चक्र में 4 प्रकार की वाणीया है
- बैखरी वाणी बोलने में आत्मकल्याण के साथ लोककल्याण का भाव रखे तो यह भाव विशुद्धि चक्र से उपर जाने का रास्ता खोल देता है
- उपर जाने का अर्थ उस भाव को फैलाव देना है
- मध्यमा वाणी में अपनी भाव भंगिमाए ऐसी हो कि दूसरो को भी अच्छा / प्यारा लगे
- मुद्राओं भी भाव भंगिमाएं में / मध्यमा वाणी में आती है, इन मुद्राओं से हम देवत्व संर्वधन का काम करने लगे तो आगे जाने का मार्ग सरल हो जाएगा
- पश्यन्ति वाणी में जब अपने स्वार्थ वाले विचार समष्टि वाणी से जुड़ जाए या अपना मन समष्टि मन से जुड जाए तो भी आगे का मार्ग खुल जाएगा
- थाईराइड की समस्या यदि है तो वह भी आगे नही बढने देगा, इसलिए पहले थाईराइड को ठीक करना अनिवार्य है
- हर चक्र से जुडे हुए Dermetomes बताते है कि वहा से निकलकर Nerves किस किस अंग में गया
- उस Area का cleaning जब तक नही होगा तब तक वहा Blockage बना रहेगा तो वहा का Cleaning होना चाहिए
- अतःकुंभक में शक्तिचालीनी मुद्रा हर चक्र पर करनी चाहिए, पहले Cleaning फिर Healing तथा फिर प्राणिक विस्तार करे
- सबके हृदयो में एक ही आत्मा है, यह मानना होता है तब जाकर आगे का मार्ग मिलता है
कल थोडा लेट उठने पर बहुत Energetic नही लग रहा था, ऐसा क्यो होता है
- बैटरी पूरी charge न हो तो कमजोरी लगेगा
- 5 से 6 घंटा सोना आवश्यक है, अधिक जल्दी उठने से भी लाभ नही मिलता
- उषापान करे उपनिषद् पढ़ते रहे
- आलस्य इसलिए आता है कि Battay पूरी तरह charge नही होता
- रात को सोने से पहले भारी भोजन न ले
- हल्का भोजन ले तो जल्दी पच जाएगा तब भी अधिक Fresh रहेंगे
सही चीजो पर क्रोध करने के बाद भी प्रायश्चित होता है, इसे कैसे समझे
- क्रोध करने के 2 ढंग होते है
- सही में क्रोधित होना अपना खून जलाना तथा सचमुच क्रोधित होना
- क्रोध करने का पाठ करना तब स्वयं रोगी नही होगे
- डाट में यदि ममत्व रहता है तो सुनने वाले को भी अच्छा लगता है
- समर्थ गुरु रामदास पशु बलि हटाना चाहते थे तब उन्होंने क्रोधित होने का पाठ किया तथा फिर जब मन्दिर के पुजारी में परिवर्तन हो गया तब छोड दिया
- अपने को क्रोधित होने से बचाना है तथा अपने क्रोध को मारना पहले जरूरी है
- डाक्टर अपने मरीज पर क्रोध नही कर सकता, उसे इसके लिए काफी प्रयास करना पडता है
- गुरुदेव का क्रोध व प्रेम दोनो चरम सीमा के थे
- गुरुदेव जब क्रोध करते थे तब बहुत सी सिद्धिया दे देते थे
जब जोडो के संधि भाग में मति वास करती है तब वात पित्त कफ से संबंधित सभी बीमारियों के प्रकोप होते है, इसका कारण क्या है व निवारण कैसे होगा
- सभी जोडो पर उदान प्राण रहता है
- सुर्यभेदी प्राणायाम के साथ कुंभक से वह Joints के कचरो को हताता हैं तथा वात रोगो को हटाता है
- उज्जैयी प्राणायाम या वायु मुद्रा या अपान वायु मुद्रा भी प्रभावशाली है
- महामुद्रा भी सभी नाड़ियों की सफाई करता है
- र्निगुण्डी, नागारमोथा भी वात रोगो को हराते है
- साथ मे सूक्ष्म व्यायाम व गंति सचांलन भी करे
- फिर प्राणायाम करे
- खान पान ऐसे कि जिससे वात अधिक न हो
विशुद्धि चक्र व अन्य चक्र तथा उनसे जुडे लोको के सम्बंध में गहराई से बताए
- मूलाधार में – भू लोक
- स्वादिष्ठान में – भवः लोक
- मणिपुर में – स्वः लोक
- अनाहात में – मह लो क
- विशुद्धि में – जनः लोक
- आज्ञा में – तपः लोक
- सहस्तार में – सत्य लोक
Practical से अधिक गहराई मिलती जाएगी
गायंत्री महाविजान भाग – 2 में एक श्लोक आया है कि एक मास पर्यन्त यदि कमल से हवन किया जाए तो राज्य की प्राप्ति होती है, शाली से युक्त युवांगु से हवन किया जाए तो ग्राम की प्राप्ति होती है, का क्या अर्थ है
- यह तंत्र महाविज्ञान का हिस्सा सुत्र है
- थोडा सा ही कर्मकाण्ड लिखा जाता है बाकि गुप्त रखा जाता है ताकि कोई असुर स्तर का व्यक्ति इसे सिद्ध करके दुरूपयोग न करे, इसलिए केवल संकेत भर मिलते है
- कमल के बीज (कमलगोटा) से आहुतिया दी जाती है
- कामना पूर्ति के लिए भी किया जा सकता है
- अच्छे दृष्टिकोण से करेंगे तो गायंत्री मंत्र से ही सब मिल जाता है
- जो गायंत्री माता से नही जुडे तथा अन्य देवी देवताओ से जुड़े तो वे उन से भी लाभ ले सकते है
- इन पाच कोशो में भी अनन्त रिद्वि – सिद्धिया है
- जब विशुद्धि चक्र का जागरण होगा तब लक्ष्मी का वास स्फुटा में होता है तब इसके जागरण से जीवन में कभी दरिद्रता नही आएगी
- धन -> बुद्धि व श्रम से उत्पन्न होता है तो पहले ज्ञान बढ़ा लिया जाए फिर श्रम किया जाए तब लक्ष्मी आ जाएगी
क्या मन विचार का आना भी कर्म करना है, कृप्या प्रकाश डाले
- इसे Astral Body से किया गया कर्म कहेंगे
- मन के द्वारा विचार निकालकर दूसरो को Motivate करके कुछ बड़ा परमार्थ काम करवा लेना, यह अपने आप में बहुत बड़ा कर्म होगा
- शिक्षक कक्षा में अपने मन से विचार निकालता है तथा सत्संग में भी विचार से ही कितनो का जीवन परिवर्तित हो जाता है
- गुरुदेव ने / बुद्ध ने विचारो की क्रांति से इतना बडा कार्य किया
पूज्य गुरूदेव के प्रति श्रद्धा भक्ति किस उपाय से बढ़ती है
- श्रद्धा -> गुरु का काम करने से बढ़ती है
- गुरु का मुख्य काम आत्मा साधना व नियमित स्वाध्याय है -> यह श्रद्धा को कम नही होने देता
- Dutyfullness भी रखे
- स्वाध्याय करने से -> विचारों से विचार प्रभावित होते है
- जब भी महापुरुषो से बातचीत करना हो तो उनके साहित्य में डुब जाना चाहिए
- गहरा डूबना हो तो उन महापुरुष / गुरु के विचारो में डुबकी लगाए
- फिर मेहनत करने पर अच्छे परिणाम मिलते है
- परिणाम मिलने पर श्रद्धा बढ़ने लगती है
- जब हम रात दिन स्वाध्याय करते है तथा गुरु के काम में लगे रहते है तो उससे श्रद्धा बढ़ती है
- गुरु कोई व्यक्ति नही बल्कि विचार है तथा वह हमारी भारतीय संस्कृति है तथा संस्कृति निष्ठ बने रहने में अपनी श्रद्धा बढ़ती रहती है, हम अपनी राष्ट व संस्कृति के प्रति अनुकूल साबित हो
- स्वयं के जीवन को Spiritual Art of Living बनाए 🙏
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