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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (26-08-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (26-08-2024)

आज की कक्षा (26-08-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

रामरहस्योपनिषद् में आया है कि श्री राम जी बोले कि पिता की, माता की, गुरु की तथा करोडो क्षरणार्थियो की हत्या करने वाला या अनेको पाप करने वाला भी जो मनुष्य 5 घंटे तक मेरे 96 करोड़ नामो को जपता है, वह उन पापों से मुक्त हो जाता है का क्या अर्थ है

  • जब व्यक्ति का मन किसी खास दिशा में लगने लगे तो उसकी आत्मा शुद्ध हो जाती है तथा ज्ञान की अग्नि से सब पाप / प्रारब्ध भस्म हो जाते है
  • 5 घंटे तक लगातार ईश्वरमय हो जाए / तालबद्ध हो जाए तो ईश्वर को अनुभव करता है
  • राम का अर्थ यहा दशरथ नंदन के रूप में नहीं अपितु प्रकृति में रमणीय सत्ता है जो कण कण में जो ईश्वरीय चेतना विद्यमान है उसका चिंतन / ध्यान किया जाए -> यहां ज्ञान की महत्वता को बताया गया है, जप के साथ में ध्यान भी करना होता है, उसका अर्थ भी सोचना होता है, केवल मंत्र जप ही नही अपितु जप के साथ ध्यान करते हुए उसमें सर्मपण, विलयन करते हुए उसमें खो जाना होता है

5 घटें लगातार जप करके ध्यान करना, क्या यह समाधि की अवस्था है

  • यदि अन्यत्र कहीं ध्यान न जाए तो यह अवस्था समाधि की कही जा सकती है
  • इसी को ईश्वर प्राणीधान कहा है तथा यह क्रिया योग में आता है
  • ईश्वर प्रणिधान से असप्रज्ञात समाधि / निर्बीज समाधि की प्राप्ति होती है -> यह पतंजलि योग दर्शन के प्रथम पाद में बताया गया है
  • समर्पण विसर्जन विलियनयह बहुत महत्व रखता है, खो जाना भूल जाना तथा श्रद्धा विश्वास के साथ तादात्म स्थापित करना बहुत महत्व रखता है
  • 5 घंटा लगातार बहुत कठिन है तथा बहुत महत्व रखता है, शुरुवात मे 5 मिनट ध्यान में भी कितनी बार मन कई बार कही और चला जाता है

अन्नमय कोश और उनकी साधना में आया है कि मृत्यु हो जाने पर देह तो नष्ट हो जाती है पर अन्नमय कोश नष्ट नही होता का क्या अर्थ है

  • अन्नमय कोश = छाया शरीर है, प्रेत योनि वाले सब छाया शरीर में होते हैं, उनका फोटो भी नही आता, यही Bio Plasmic Body है
  • भूत प्रेत सभी इसी रूप में रहता है

क्या 5 घंटे जप या ध्यान क्या 60 मिनट वाले घंटे है या कुछ और अर्थ है तथा इस अवस्था के लिए पहले काफी मेहनत तो करनी होगी

  • जितने Positive अर्थो मे ले वह सब सही है
  • गुरुदेव ने हनुमान चालीसा में जो शत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदी महासुख होई में शत का अर्थ सहस्तार से लिया गया है
  • Brain के सारे Neuron जब उस एक की सत्ता को स्वीकार कर ले तब अवचेतन मन भी साफ हो जाता है तथा तब सहस्तार चक्र जागृत समझे
  • पांच घटे के कई अर्थ = पचंधा प्रकृति = पांच कोश = प्राण के 5 आयाम = काल या स्वत्सर भी ले सकते है

अर्थववेद के पितृमेध सूक्त में आया है कि यहां से पितर गण उर्धवलोक की ओर प्रस्थान करते हैं तत्पश्चात उन्हें दिव्य लोक के उपभोग्य स्थानों पर प्रतिष्ठापित किया जाता है जिस मार्ग से भूमि पर विजयश्री प्राप्त करने वाले अंगिरस आदि पूर्वज गए हैं, उसी मार्ग से अन्य पितर भी दिव्य लोक में पहुंचते हैं

  • पितरो की भी श्रेणिया होती है, निम्न योनि या उच्च योनि के पितर भी होते है
  • दिव्य पितर / मध्यम स्तर / निम्न स्तर के पितर होते है
  • इसलिए हम सदैव चेतना का उन्नयन करता चले
  • उतरी क्षेत्र

पितरो की उधर्वगति का मुख्य कारण क्या पितरो के स्वयं के ज्ञान / कर्म होते है या उनके परिजनो द्वारा पृथ्वी पर कराए गए पितृ यज्ञ आदि कर्म होते है या दोनो ही कारण होते है

  • दोनो कारण+ ईश्वर की कृपा (देवताओ की कृपा)
  • कोई भी फल जब मिलता है तो अपने कर्मो के आधार पर ही मिलता है, कर्म की गहन गति होती है किसी एक को श्रेय नही दिया जो सकता है
  • यदि हम किसी परीक्षा में पास कर गए तो अनेक कर्म / कारण उसमें होते है जैसे हवा ने आपको सासें प्रदान की, तबीयत खराब नही हुआ तो अश्वनी कुमार देवताओ ने मदद किया, कोई दुर्घटना नही घटी, जो पढे वही प्रश्न भी मिल गया उतर देने के लिए, सभी परिस्थितियों का सहयोग रहा, इसलिए श्री कृष्ण ने केवल कर्म करने पर जोर दिया क्योंकि कर्मो की गति काफी गहन होती है, इसलिए किसी एक को श्रेय नहीं दिया जा सकता
  • ऋषियों का जो चिंतन मनन का आचरण होता है तथा जिन्होने अच्छी राह दिखाई है, उनका हम अनुसरण करें तथा अपना आचरण चिंतन प्रखर रखते हुए अपना आत्मिक विकास करें
  • भृगु, कश्यप या अंगिरा का नाम इसलिए आया है कि जो खास Mental मनोभूमि में जीए है तथा धर्म का अनुसरण कर श्रेष्ठ बने हैं उस अवस्था को प्राप्त करके, हम भी ईश्वर की समीपता प्राप्त करे

अर्थवशिरोपनिषद् में आया है कि एक ही ऐसा देवता है जो समस्त दिशाओं में निवास करता है, सर्वप्रथम उसी का आर्वीभाव हुआ, वही मध्य और अन्त में है, वही उत्पन्न होता है, आगे भी उत्पन्न होगा, सबमें वही व्याप्त है अन्य कोई नहीं . . वही आत्मज्ञान प्राप्त करने वाला ॐ चतुर्थ मात्रा से शांति प्रदाता व बंधन मुक्ति करता है, प्रथम मात्रा बह्मा की है, द्वितिय मात्रा विष्णु की है, तृतीय मात्रा ईशान की है . . . का क्या अर्थ है

  • प्रकाश का वर्ण नहीं होता -> केवल Frequency होती है, wavelength होती है व तरंगे होती है
  • सत रज तम को ही तरंगे कहा जाता है, मन में यही सत रज तम की तरंगें / लहरे उठती है
  • इसी तरह की तरगों को ही यहा colour कहते है
  • रुद्र = प्राण
  • एकादश रुद्र = 10 प्राण + 1 आत्मा
  • आत्मा भी सर्वव्यापी है तथा प्राण भी सर्वव्यापी है, दोनो अविनाशी है तथा एक अपरिवर्तनशील है तो दूसरा परिवर्तनशील है -> इसी तरह यही समग्रता से शासन करता है इसी को ईशान कहते हैं

पैगलोपनिषद् मै पदि कोई एक पैर पर खड़ा होकर एक सहस्त्र वर्ष तक तप करें तो भी वह ध्यान रस की षोडश कलाओं में से एक के बराबर भी नहीं है, का क्या अर्थ है

  • ध्यान की 16 कलाएं = ध्यान सबसे शक्तिशाली व कारगर होता है
  • ध्यान न करे तो परिणाम ही नही आते, क्रिया का Result ही नही मिलता
  • ध्यान हमें हर जगह हमें चाहिए
  • ध्यान आत्मा को परमात्मा से जोडता है, योगी बनाता है
  • तप से केवल शक्ति बढ़ती है , अनासक्ति को भी तप कहा है
  • ध्यान में आत्म समीक्षा भी होती है कि हमें और हमारे ईष्ट/अराध्य में कितना अंतर है तो हम एक एक अन्तर को कम करे तथा उसके गुण अपने भीतर भी बढ़ाए

Post Mortem को ध्यान कैसे कहते हैं, Post mortem तो मरने के बाद होता है तो इसे ध्यान से कैसे जोडेगें

  • हर क्षण आदमी मर रहा है, हर क्षण मृत्यु है संसार का हर Particle हर समय मर रहा है, हम केवल शरीर की मृत्यु को ही मृत्यु मानते हैं परन्तु मरा तो वास्तव में वहा भी नही केवल उर्जा का परिवर्तन मात्र हो रहा है
  • Video में तस्वीर चल रही है यह दिखता है जबकि तस्वीर चल नही सकती, केवल Picture तेजी से बदल रहा होता है, यह दृष्टि भम्र है

अमृतनादोपनिषद् में आया है कि किस प्रकार अगुष्ठ के माध्यम से पदम नाल के द्वारा शैन शैन जल को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मंद गति से प्राण वायु को अपने अतःकरण में धारण करना चाहिए, यही प्राणायाम के अन्तर्गत पूरक का लक्षण है, श्वास को ना तो अन्तःकरण में आकृत करे और ना ही बर्हिगमन करे, हलचल भी न करे, इस तरह से प्राणवायु को रोकने की क्रिया को कुंभक प्राणायाम का लक्षण कहा गया है, का क्या अर्थ है

  • यहा रेचक पूरक व कुंभक की जानकारी यहा दिया गया है
  • प्राण वायु रोके तो एक एक कोशिका मे उसे भरे तथा ईश्वर मे इतना घुल जाए कि बाहर से कुछ भी हो रहा हो तो भी कष्ट सहने की क्षमता मिल जाए
  • मन की स्वच्छता से आत्मा भी पवित्र हो गई
  • आत्मा में स्थित हो जाएगे तो उस अवस्था में दुखः कष्ट की अनुभूति नहीं होती
  • ईश्वर के साथ जुड जाएंगे तो संसार के दुखः भी उसे कष्ट नही दे पाएंगे
  • ईश्वर में स्वयं को घोलने की प्रक्रिया की प्रक्रिया जब विलयन विसर्जन के माध्यम से जब चल रही है तो वह हलचल शांतिमय स्थिति की ओर ले जाती है तथा उस समय विचारों की हलचल मायने नही रखेगा
  • गुरुदेव समाधि की अवस्था में लिखते थे यदि समाधि की अवस्था में हलचल हो तो कोई कैसे लिख सकता है
  • कबीर दास समाधि की अवस्था में चलते थे तो यह कैसे हो सकता है, इस अवस्था को समाधि की अनुभूति पाकर ही समझा जा सकता है

किसी सिद्ध पुरुष की अचानक आवाज सुनाई दे तो क्या समझा जाए

  • यदि सिद्ध पुरुष की अच्छी बात सुनाई दे तो उस का लाभ ले, यही अपने पितर / देवता हो सकते है या यह आत्मा की आवाज भी हो सकती है
  • इसी को आवाशवाणी कहते है
  • भीतर की अन्तरातमा भी कुछ ना कुछ संदेश भेजती रहती है
  • चिदाकाश में आवाज उठती है तथा यही अन्त: प्रेरणा भी कहलाती है
  • कभी कभी कोई अपना अधिक प्यारा लगता है तथा तस्वीर के रूप में झिलमिला जाता है
  • यही सृष्टि जगत की स्वचालित प्रक्रिया कहलाती है 🙏

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