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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (16-08-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (16-08-2024)

आज की कक्षा (16-08-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

योगशिखोपनिषद् में आया है कि विविध नाम व रूपो में समग्र कर्म भी बह्म ही है ऐसा जानकर सर्वत्र रूप से प्रत्यक्ष बह्म का दर्शन करना चाहिए, का क्या अर्थ है

–  जितने भी क्रिया कलाप हम देखते है चाहे वह जीव जंतुओं का हो या पंचभूतों का हो, उसमें जो भाव विचार क्रियाएं जो भी हो रही है, वह सब ईश्वर के द्वारा प्रेरित है, क्योकि जड़ स्वयं से हलचल नही कर सकता तथा बह्म के सिवा इसे कोई चला भी नहीं सकता

  • जड़ भी ईश्वर से संचालित है
  • इसलिए सबको बह्म रूप मानकर सर्वत्र बह्म का ही झाकी देखे
  • हम अक्सर भ्रम में पड़ जाते हैं कि यह कार्य किसी व्यक्ति के द्वारा किया जा रहा है या यह अच्छा है बुरा है
  • जब आनन्दमय कोश की सफाई जब कर ली जाएगी तब पता चलता है कि यह तो हमारा केवल भ्रम मात्र था वास्तव में ईश्वर ही सबके भीतर विद्यमान है तथा वह सभी को संचालित कर रहा है
  • तब साक्षी भाव से देखकर आनन्द लेता है

अथर्ववेद संहिता में पितृमेध सुक्त में देवी सरस्वती के बारे में आता है की दैवी गुणों के इच्छुक मनुष्य देवी सरस्वती का आवाहन करते हैं यज्ञ के विकारित होने पर वह देवी सरस्वती की ही स्तुति करते हैं तो देवी सरस्वती के विषय में यहां पर क्यों आया तथा उनकी उपस्थिति से हमें क्या प्राप्त करना चाहते हैं ।

श्रेष्ठ पुण्य आत्माओं द्वारा देवी सरस्वती के आवाहन किए जाने पर वह दानियों की आकांक्षाओं को परिपूर्ण करती है, का क्या अर्थ है

  • यहा सरस्वती बह्म वाचक है यह दिव्य वाणी है
  • दिव्य भाव से युक्त वेद मंत्र है, वेद मंत्र के साथ अपने दिव्य भाव जोड देंगे तो उसका परिणाम और प्राकट्य होने लगता है, वाक शक्ति को देवी कहते है
  • सारा संसार देवताओं के अधीन है व देवता मंत्रो के अधीन है
  • मंत्र / वाकशक्ति को ही सरस्वती कहते है
  • यदि किसी को हम हृदय से आर्शीवाद देते है तो हृदय से निकली परा वाणी का भाव सचमुच उसको फल जाएगा, उस दिव्य भाव को सरस्वती कहा जाता है, जो श्रद्धा रूपी रस से भरा हुआ हो

हमारे आवाहन पर दक्षिण दिशा से आने वाले सभी पितृ जिन मां सरस्वती को पाकर संतुष्ट होते हैं वे माता सरस्वती हमारे इस पितृ यज्ञ में उपस्थित हो हम उनका आह्वान करते हैं वह प्रसन्नता पूर्वक हमें उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने वाला अन्न प्रदान करें, यहां दक्षिण दिशा से आने वाले सभी पितृरो से क्या तात्पर्य है

  • दक्षिण दिशा वाले = पदार्थ भाव वाले = संसार व पदार्थ से मोहबद्ध जीवन जीने वाले
  • North Pole = सहस्तार = उपर
  • South Pole = मूलाधार = नीचे
  • स्वधा संज्ञक अन्न से वे प्रसन्न होते है, स्थूल भाव में वे रचे पचे होते है इसलिए दक्षिण दिशा कहा है
  • सकीर्ण भाव / स्थूल जगत को दक्षिण कहते है
  • संसार में उनके धन से कुछ अच्छा काम होता है तो उनसे बडे तृप्त होते है
  • पितृ यज्ञ पूरे साल भर कभी भी हो सकता है जैसे रोज बलि वैश्य यज्ञ करते है तो 5 आहुतियो मे से एक आहुति पितरो को दी जाती है

स्वतंत्रता दिवस पर कलकत्ता वाला केस को कैसे समझे, बहुत बेचैनी महसूस हो रहा है

  • जबरन अपना धर्म स्वीकार करवाने में यह गलत हो रहा है
  • जन मानस में जो संस्कृतियां kind Hearted नही हो तो वे समाप्त हो जाती है, तब कुछ परिस्थितियां ऐसी बनती है कि जन मानस  को भड़का उठे तथा संस्कृति की रक्षा के लिए लोग इक्कठे होकर एक जुट हो तो ऐसे Evidence करवाता है, सभी लोग इक्कठा होकर Humanity के लिए कार्य करे, तब प्रकृति का प्रवाह इस प्रकार चलने लगता है
  • आत्मा निर्लिप्त रहता है
  • इस परिस्थिति को अनुकूल करने के लिए, ईश्वर से Prayer भर किया जाता है
  • Prayer भी एक प्रकार का सहयोग है
  • जब यह विश्व स्तर तक जाएगा तब उचित समाधान होगा / न्याय मिलेगा
  • दीपक बुझने से पहले उसकी लपटे तेज हो जाती है, मतलब अब बुझने वाला है
  • मरने से पहले सांस तेज हो जाती है
  • पूरे विश्व का overhauling चल रहा है
  • सूक्ष्म जगत में घटनाए घट रही है
  • ऐसे समय में संत स्वभाव का व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता है तथा  जिसमे पराकर्म है वे सुर असुर वाले किसी एक पक्ष में आकर युद्ध करते है
  • परन्तु नियंत्रण केवल ईश्वर ही करता है, विजय केवल सत्य की ही होती है

ऐसी परिस्थितियों में पहले भी समाधान नही निकला परन्तु अभी की स्थिति नियंत्रण से परे की लग रही है

  • तब उस हालत में राष्ट्रपति शासन लागु होता है, इसका अर्थ है कि ईश्वर अपने हाथ में सारी व्यवस्था ले लेता है
  • ज्ञानी अपने को साक्षी भाव से  देखेगा या Action लेगा, दोनो करने की छूट है परन्तु किसी भी परिस्थिति में भीतर से Upset नही होना है
  • रामायण या महाभारत भी एक दिन मे समाप्त नही हुआ था, समय लगता है धैर्य रखे
  • जहा आलस करते है तो अपने भीतर ही असुरत्व आ जाता है, तब उससे लडने में समय लगता
  • Play लंबा चलता है तो उसका भी आनन्द ले परन्तु सत ही जीतता है
  • आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति प्रार्थना व युद्ध, अपने अपने गुण कर्म स्वभाव के अनुसार तथा अपनी सामर्थ्य के अनुरूप ही करेगा

प्रकृति शुद्ध है या अशुद्ध, इसे कैसे जाने

  • प्रकृति = स्वभाव
  • यदि उसमें शान्ति व आनन्द की अनुभूति हो रही है या नही , उसी से पता चलेगा
  • वेद ईश्वर द्वारा प्रदत एक संविधान है तो उसके सापेक्ष में देखा जाता है
  • यदि वेद नही पढ़े है तो किसी कार्य से यदि अशांति फैल रही है तो अशुद्ध कहा जाता है, शांति मिली तो शुद्ध कहा जाएगा
  • प्रकृति = बुद्धि /गुण / कर्म / स्वभाव

सर्वोपनिषद् में स्वयं भगवान हरि जिसके अंगो में नियमित प्रकाशवान है, . . . जो परात्पर बह्म है, हरि उससे भी परे है तथा हरि से भी परे ईश है, इसलिए उनके समान तथा उनसे बडा कोई नहीं, का क्या अर्थ है

  • परात्पर बह्म = परबहम
  • ईशान = सतस्वरूप शासक जो सम्पूर्ण बह्माण्ड को नियंत्रित करता है
  • ईशान = बह्म का हिस्सा है जो इस प्रकृति को नियंत्रित कर रहा है
  • हरि = विष्णु की अवतार प्रक्रिया जो दुखों का हरण करे यहां विराट ही हरि हो गया
  • संत महात्मा अवतार ले लेते है, दुखः का हरण करने के लिए अवतार लेते है जो सब हरि संज्ञक होते है
  • ईश्वर निराकार है तो गतिविधियो के संचालन के लिए शरीर धारियो को माध्यम बनाते हैं, इसी को हरि का प्रकाश पडा कहा जाएगा
  • हरि का प्रकाश उस पर आया = जिसको माध्यम बनाए
  • जैसे राम व कृष्ण को प्रकृति ने माध्यम बनाया अवतार प्रक्रिया के लिए, अवतार वास्तव में कोई व्यक्ति नहीं होता है, अवतार एक प्रवाह है जो अंतरिक्ष में दौड़ता है, वह देखता है कि उस समय कौन Senior है / साधक है तो वह उनको माध्यम बना लेता है = यही हरि को प्रकाश कहलाता है या हरि ने इन्हे माध्यम बनाया

नारदपरिव्राजकोपनिषद् में जिस प्रकार गृह में व्यक्ति गृहस्थ हो जाता है उसी प्रकार देह में जीव तुरीयाचेतन होकर विचरण करता है, . . . यहा आठ कोण, को कैसे समझे तथा देह में तुरीयाचेतन होकर विचरण करने का क्या अर्थ है

  • शरीर भाव में या भ्रम में रहेंगे तो जीव कहलाएगे
  • विशुद्ध आत्मा = तुरीया स्थिति
  • आठों भाव = कोण = Different Aspect of Life
  • सभी दिशाएं = सब विष्णु के ही नाम है किसी भी दिशा को खराब न माने तथा अपनी भावनाओ को दिशा दे तथा आत्म विकास में लगा दे, संसार का कोई भी भाव खराब नहीं है, केवल अच्छा अर्थ लेकर उसे उपयोग करने की ही बात यहां की गई है
  • खेल / क्रीडा से भी आत्मिक विकास होता है
  • खेल-खेल में भी बच्चों को पढ़ाया जाता है
  • अच्छा या बुरा किसी भी प्रकार का विचार उठे तो उसे अपने आत्म विकास में लगा दें

दो पगंति है -> छोड़ो ये 16 श्रृगार , अब तुम्हें है काली बनना, करना है तुम्हे असुरो का संहार, करना है तुम्हे असुरो का संहार, का क्या अर्थ है

  • कुछ लोग नारी शक्ति की गरिमा का बौधत्व यहा करवाया गया है
  • पहले नारी पर कुछ लोग कविता लिखते थे कि नारी कल्पना है, नारी परी है, नारी नरक है तो यहा कहना है कि नारी नरक नहीं स्वर्ग है नारी एक शक्ति है, नारी कल्पना की परी नहीं बल्कि कर्मठता की देवी है
  • नारी वह वृक्ष है जिसकी टहनिया शीतलता प्रदान करती है तो वही नारी आग की चिंगारियां निकलने में भी समर्थ है -> घर घर की वह लक्ष्मी सिंदूर बनके दमके, यदि मौका पड़े तो चूड़िया तलवार बनके चमके
  • जहा यह लगता है कि अतिकम्रण बढ़ गया है तथा शोषण अधिक हो रहा है तो वहा चण्डी का रूप लेने की बात यहा की गई है
  • कुंडलिनी शक्ति / दुर्गा तभी अवतरित होती है जब असुर अपनी सीमा का उल्लंघन करने लगता है
  • असुरत्व संहार के लिए, इस आपात काल में आप (नारी) सुधार सकते है
  • सुधार प्रक्रिया के लिए उनमें प्राण शक्ति अधिक है, बच्चो को दुलार भी देना व सुधार भी करना
  • जैसे पत्नी ने तुलसीदास को भी सुधार दिया था महामूर्ख को महाकवि बना दिया
  • पुरुषो से अब नही संभल रहा तो आप दुर्गा रूप में आए, यही यहा बताया गया है

गायंत्री महाविज्ञान में आया है कि किसी की मृत्यु / घाटा आदि दुर्घटनाए घटित होने पर किसी नव आगन्तक वधु के भाग्य का दोष बताना अनुचित है . . . नारी तो लक्ष्मी का अवतार होने से सदा ही कल्याणकारणी व मंगलमयी है . . . का क्या अर्थ है

  • गायंत्री मंत्र में व तथा रे अक्षर में इसी की व्याख्या की गई है
  • नारी नर्मदा के जल की तरह सदा पवित्र है, नर्मदा का पानी वर्षा मे भी स्वच्छ रहता है
  • उस नारी पर किसी भी प्रकार के दोष न लगाएं
  • नारी में दोष देखना -> ऐसा अक्सर अपरिपक्व मस्तिष्क वाले ही करते है
  • सीता जी कितनी पवित्र थी परन्तु उन पर भी कितने लांछन लगे
  • नारी को कभी दोष न दे, जो होना है वह होता ही होता है यही गायंत्री महाविज्ञान में बताया है
  • यदि नारी खराब है तो समझे कि पुरुषों ने उसे खराब किया है यदि नारी अच्छी है तो समझे कि वह अपने स्वभाव से ही अच्छी है तथा ईश्वर ने ही उसे अच्छा बनाया है

क्या मरते समय पांच कोशो की जो स्थिति रहती है तो क्या अगले जन्म का प्रारम्भ उसी स्थिति से होता है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • कृष्ण का कहना है
    साधक साधना करते करते बीच में मर गया तथा उसे पूर्ण बौधत्व नही हुआ तो क्या होगा तब उत्तर मिला कि वह जहां छोड़ा है, .अगले जन्म में वह उससे अच्छे परिवार में जन्म लेगा तथा फिर द्रुत गति से उसकी साधना बढ़ेगी तथा आगे की अवस्था इससे अच्छी ही होगी

रसखान के श्लोक में आया है कि . . . अहीर को छोरियों नाच नचाए तो प्रश्न ये था कि ऐसा उनमें क्या था जो भगवान को इतना सरल तरीके से पा गई थी

  • भक्त के वश में भगवान होते है
  • गुरुदेव ने भी कहा है कि तुम हमारा काम करो तथा हम तुम्हारा काम करेंगे
  • अहीर = कृष्ण, छोरिया = प्रज्ञापुत्र / प्रज्ञापुत्रियां
  • हम ईश्वर का काम करेंगे तो गुरुदेव हमारा / हमारे घर परिवार का काम करेंगे
  • सुदुराचारी भी यदि ईश्वर का काम करे तो वह भी संत मानने योग्य है
  • रचनात्मक काम = भगवान का काम = जरूरत मंद का सहयोग करना
  • राक्षसों ने भी समुद्र मंथन करके बडा पुण्य कार्य किया तथा धरती की संपदा को लाने में अपना सहयोग दिया, ऐसी अवस्था में उनके (राक्षसों के) दोष दुर्गुण वाला Area गौण हो जाता है
  • कृष्ण की गोपिकाएं
  • गोपिकाएं उन वेद मंत्रों को कहा जाता है जिनके माध्यम से ईश्वर प्रकृति में संतुलन करते हैं वो सारी गोपिकाए बन गई थी वही बह्म विषयक ऋचाएं थी
  • 16108 रानियां = वेद मंत्रो की ऋचाएं -> यहा सब आध्यात्मिक दर्शन का ही स्वरूप बताया है
  • केवट भगवान राम को नवपर बैठ कर पर लगाकर बहुत खुश हुए थे, तो यहां केवट का चरित्र मायने नहीं रखता अपितु उनका सहयोग व भाव महत्व का था          🙏

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