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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (14-06-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (14-06-2024)

आज की कक्षा (14-06-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

भूदेवोपनिषद् में आया है कि दाएं अंग से सृष्टि, बाए अंग से स्थिति तथा मध्य अंग से संहार होता हैं, का क्या अर्थ है

  • दाया अंग = आत्मिकी / Dominant – > वह प्राण जो सारी सृष्टि को control करता है
  • ईश्वर की इच्छा होगी तभी सृष्टि का सृजन होगा
  • प्रकृति अपने से कुछ नही करती
  • बायां = ईडा, दायां = पिंगला तथा बीच का = सुष्मना
  • सुष्मना में दोनो का संहार हो गया, यहा कोई भी प्रभावी नही रहता, Neutral ( संहार ) हो जाता है
  • शिवजी बराबर हठ योग (सुष्मना) मे रहते है
    ह = सुर्य नाडी
    ठ = चंद्र नाडी
  • संहार = Neutral = Balance
  • जो प्रभावी है उसे सृष्टि कहते है
  • Donor = सृष्टिकर्ता कहलाएगा
  • जो धारण कर लिया वह प्रकृति कहलाएगा
  • दाया – sypathetic Nervous system (Dominant)
  • बाया – Parasympathetic Nervous System ( Recessive )
  • अनुलोम विलोम करेंगे तो दोनों का संतुलन होगा सुष्मना चलने लगेगा
  • जब तक Balance नहीं होगा तब तक उध्र्वगमन नही होगा
  • बायां दायां unbalance चलता रहेगा तो सुष्मना में प्राण उपर नही उठेगा
  • नाडी शोधन भी उपर उठने में बहुत उपयोगी होगा

बृहरीचोपनिषद् का यह नाम क्यों पड़ा

  • इसके लिए इसकी शुरुवात में भूमिका देखनी होती है
  • बृहरीच =  Universe की सबसे बडी शक्ति जो सृजन करती है = चिदरूपणी महामया जो दिव्य तेज (हिरण्यगर्भ) से भरी पडी है
  • सर्वप्रथम बह्म की इच्छा से एक दिव्य तेज उत्पन्न हुआ जिसे हिरण्यगर्भ कहा गया, इसी का गुरुदेव ने साक्षात्कार करवाया था
  • चेतना का Highly condensed चिदरूपणी के रूप में है जिसे हिरण्यगर्भ/प्रधान/बृहरीच/रितम्बरा प्रज्ञा/प्रकृति/प्रधान भी कह सकते है
  • प्रकृति बह्म की इच्छा से निकला
  • जो कुछ हम देख रहे है वह सब बह्म है, इसलिए ऐसा नही कहा गया कि प्रकृति ही सब जगह है
  • बह्म के उस स्वरूप का ध्यान करे, अभी उसने अपने को दो भागो में नही बांटा
  • पेड पौधे भी द्विदल है, हम भी द्विदल है स्त्री पुरुष दोनो हमारे भीतर विद्यमान है, हममें भी दो का संधि किया गया है
  • प्रकटीकरण में पहले हिरण्यगर्भ / Light / उर्जा के रूप में उत्पन्न हुआ
  • ज्ञानयुक्त उर्जा ही चित्त है

सौभाग्यलक्ष्मीपनिषद् में मूलाधार में ही बह्म चक्र स्थित है, वह योनि वे आकार में 3 घेरो के रूप में है, वहा पर कर्णिका के मूल में कुण्डलिनी महाशक्ति शयन किए हुए है, सर्प के आकार में विद्यमान है, तपती हुई अग्नि के रूप में उस शक्ति का तब तक चिंतन करना चाहिए जब तक वह जागृत अवस्था को प्राप्त न हो जाएं, वहीं पर देवी त्रिपुरा का स्थान कामरूप नाम की पीठ स्थित है, उसकी उपासना द्वारा सभी प्रकार के भोगों को प्राप्त किया जा सकता है, का क्या अर्थ है

  • त्रिदल = त्रिभुजाकार है
  • ऋषियो का चिंतन अपने ढंग का चलता है
  • बह्म की अव्यक्त शक्ति (कुण्डलिनी शक्ति) इसमें घुली हुई है, Coil के रूप मे है कुण्डलिनी के रूप में , Cocyx Region में Triangular है
  • त्रिदल = सत रज तम के रूप में समझ सकते है
  • बह्मचक्र = सहस्तार (भाव संवेदना) या मूलाधार (शक्ति स्वरूप) दोनो के रूप में है
  • तब तक ध्यान / शक्तिचालीनी करे, जब तक चक्र जागृत ना हो जाए
  • कुण्डलिनी जग रही है यह ऐसे पता चलेगा कि यदि उस Area के आस पास के रोग पहले समाप्त होने लगेगे जैसे मूलाधार के पास कब्ज / बबासीर / भंगन्दर / Genital / पैरो के आस पास का बीमारी कभी नही होगा, आप उर्जावान महसूस करने लगेगे, आपकी वाणी में भी वाकशक्ति शुरू हो जाएगी, पूरे शरीर में एक अदभूत उर्जा का संचार मिलेगा, पृथ्वी तत्व पर नियंत्रण शुरू हो जाएगा
  • प्रत्येक चक्र अपने में बहुत शक्तिशाली है, चक्र जगने से उर्जा का क्षरण रुक जाएगा, काम वासना का Flow नीचे की तरफ रुक जाएगा
  • सुन्दरता देख कर काम वासना का भाव नीचे नही जाएगा जब आप चाहेगे तभी नीचे जाएगा
  • यदि सुन्दरता देखकर काम वासना का बहाव नीचे की तरफ हो रहा है तो इसका अर्थ है कि कुण्डलिनी सो रही है, विष उगल रही है (उर्जा के क्षरण को जहर उगलना कहेंगे)

अंतिम आकाश चक्र में 16 दलो से युक्त कमल उधर्व की ओर मुख किए हुए अवस्थित है, अन्त में तो सहस्तार चक्र आता है यहा अतिंम आकाश चक्र आया है ऐसा क्यों है

  • यहा 16 चक्रों का अर्थ यह है कि 16 कलाओं से सारी सृष्टि बनी है, हमें ऋषियो के ढंग से सोचना होगा
  • पूरी बाह्माण्डीय शक्ति को 16 भाग में बाटकर यहा पढ़ाया जा रहा है

योगकुण्डल्युपनिषद् में आया है कि त्रिकुटि के मध्य में भेदन करके यह चंद्र स्थान में पहुंच जाते है, जहा पर षोडश दल वाला अनाहात चक्र है, वहा पर चंद्रमा के द्वारा द्रव्य को सुखाकर प्राणवायु में गतिशील होकर सुर्य से मिलकर रक्त और पित को ग्रहण कर लेती है . . . इस तरह वहा शीतलता नही रह जाता, हमें बताया जाता है कि मस्तिष्क को शांत रखना है परन्तु यहा पर गर्म बताया जा रहा है

  • यहा श्लेष्मा का अर्थ = viscosity = चिपकाव
  • दो प्रकार वाला कफ होता है एक सर्दी वाला Humidity वाला
  • दूसरा Hill Area में जब जाते है वहा Snow Fall होता रहता है, वहा पर Humidity वाला नहीं होत, वह Dry और Cool होता है
  • Dryness को यहा शुष्क (गर्म) कहा है
  • Viscosity नही ( श्लेष्मा रहित ) होगी
  • ईश्वर Cool है तथा बाह्याण्ड में हर जगह घुला है परन्तु चिपकता कही नही
  • अग्नि का भेदन -> आज्ञा चक्र तक पहुंचने के बाद सहस्तार की यात्रा है, जिसे 16 कला वाला कहा है
  • सुर्य का स्थान आज्ञा चक्र तथा चंद्रमा का स्थान सहस्तार में है, इन दोनों का मिलन अब शुरू होगा, हमारी (प्रकृति) की उर्जा अब बह्म (सहस्तार) में मिलने जा रही है
  • यह तभी संभव हो पाएगा जब श्लेष्मा (चिपकाव) को हटाएंगे, अपने को उसमें विसर्जित कर दे या उसे Accept करे । खुद समर्पण करे या उसको अपने में समा / समेट ले

क्या अन्नमय कोश पर केवल अन्न का ही प्रभाव  होता है या किसी अन्य तत्वों का प्रभाव भी अन्नमय कोश पर होता है

  • अन्न की परिभाषा हमें जाननी चाहिए
  • तैतरीयोपनिषद् में आया है कि जल, अग्नि, वायु, आकाश भी अन्न है, यहा अन्न का अर्थ जीवनी शक्ति से है, जहा से भी हमें उर्जा मिलती है तथा शरीर इसे Absorb कर लेता है, इसी प्रकार पांचो तत्व ही अन्न है, प्रत्येक तत्वों से हम ग्रहण करते हैं
  • जो हवा में उड रहा है वहां भी अन्न है
  • पावाहारी बाबा, प्राणायाम के माध्यम से अन्नमय कोश को जीवित रखे थे तथा विवेकानंद को बताए
  • चक्रो के जागरण से वह Free Electrons को अपनी सकल्प शक्ति से आकाश से खीच लेता है
  • जब ऐसा लगेगा या मान लेंगे कि आकाश ही मेरा शरीर है तब हमें बाहर के भोजन की आवश्यकता नही पड़ेगी, भुख कम होता जाएगा क्योंकि जब सब कुछ आकाश में ही विद्यमान है तो फिर भोजन के लिए अन्य कहा जाए

जो अन्न हम खाते है तो उसके 3 गुण होते है तो वह अन्न कारण शरीर पर किस प्रकार प्रभाव डालते है

  • पाचो तत्वों के कारण गुण :-
  1. पृथ्वी हमें क्षमाशीलता देगा
  2. जल शीतलता देगा
  3. अग्नि तेजस्विता देगा
  4. वायु गतिशीलता देगा
  5. आकाश विशालता देगा
  • इन्ही कारण गुण का condensed रूप आकाश होता है
  • यदि जो भोजन बाजार में उपलब्ध है तथा कोई चोरी करके अनाज बेचा हो तो अंगुली के पोरो से आदमी के भीतर वो विचार घुस जाते है, ऐसा बाजार का अन्न, भले ही हम ईमान्दारी से न्यायपूर्वक ढंग से कमाए हो परन्तु उसके भीतर जो संस्कार घुसे है तो हमारे भीतर वह अन्न उस प्रकार के संस्कार लेकर आएगा
  • ऐसा अन्न मन को प्रभावित  करता है
  • स्थूल अन्न स्वाद देगा तथा मासपेशिया बनाएगा, मल बनकर निकल जाएगा, वह प्रोटीन Fats Carbohydrates बनाएगा
  • जो अन्न का सूक्ष्म भाग है वह मन को बनाएगा
  • हम ईमानदारी से कमाएं तथा अन्न ले परन्तु उसे बलिवैश्य सें उसे शुद्ध कर ले फिर भीतर ले क्योंकि उसमें संस्कार भी घुले रहते है

ऋग्वेद के मंडल में  कौन सा सुक्त है, यह कैसे पता चलता है

  • जैसे Dictionary में Alphabet होते है, वैसे ही ऋग्वेद में 3 भाग में ही लिखा रहेगा
    जैसे 10 2 1
    10 वा मंडल
    2 वा सुक्त
    1 ->मंत्र की सख्या न०
    इसमें ऐसे ही खोजा जाता है जैसे Dictionary में किसी शब्दावली को खोजते है

वातरोग रहने पर कड़ी गर्मी के दिनों में सूर्य भेदन प्राणायाम किया जा सकता है अथवा नहीं। कृपया स्पष्ट करने की कृपा करें।

  • सूर्यभेदन प्राणायाम वात रोगो के लिए ही उपयोग किया जाता है
  • किसी भी तरह का वातरोग है वो सुर्यभेदन ही हटाएगा
  • केवल भस्तिरिका स्टाइल में नही करेंगे अपितु बहुत धीरे धीरे गहरा खीचे, रोके व धीरे धीरे निकाले छोड करेंगे
  • पहले खींचे, फिर रोके, फिर रोक कर ही शक्ति चालीनी कर ले, यह कपाल शोधन कोगा, फिर वात रोग हटाएगा, पेट के कीडो (कृमि) को नष्ट करेगा
  • इन सभी दोषो को हटाकर कुंडलिनी जगाता है
  • गर्मी में धीरे धीरे करे
  • जिनका cold Blood होता है उनके साथ ऐसा ही होता है
  • कुंभक लगाने से विशेष लाभ मिलता है
  • यदि गर्मी में भी नाक बह रहा है तब Fast कर सकते है
  • जिन्हे गर्मी में भी सर्दी हो जाता है वे ये क्रिया Fast कर सकते है

भागीरथ के 60 हजार पूर्वज कपिल मुनि के श्राप से भस्म हो गए थे इस पर प्रकाश डाला जाए

  • कृष्ण भगवान नें 2 ऋषियो का नाम लिया है
    कपिल व भृगु
  • कपिल मुनि की विशेषता थी कि वे महामुद्रा को सिद्ध कर लिए थे,जो महामुद्रा को सिद्ध कर लेते हैं उनकी सभी नाडियां शुद्ध हो जाती हैं तथा उनका शरीर Dynamite हो जाता है
  • वह प्रचण्ड अग्नि के रूप में प्रचण्ड हो जाती है तब उसके श्राप व वरदान काफी फलित होते है
  • भागीरथ के वंशज गलत काम करते थे, रावण के कुल में भी सारे उत्पाति थे, संस्कार विहीन थे
  • अश्वमेघ यज्ञ का घोडा स्वयं चलवर जब कपिल मुनि के आश्रम में आ गया तब इन्होंने सोचा कि यह घोडा कपिल मुनि चोरी कर ले आए तब इन्होंने कपिल मुनि को समाधि से जगा दिया तब कपिल मुनि ने क्रोध से सभी को भस्म कर दिया
  • ऐसे पूर्वज जो जलकर मर जाते हैं उनकी आत्मा बड़ी भटकती है
  • भागीरथ ने कपिल मुनि से प्रार्थना भी किया था तथा अपने तप से गंगा की एक धारा भागीरथ के आश्रम से भी गुजरी व सभी पूर्वजो को तृप्त भी किया       🙏

 

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