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Panchkosh Jagran Dhyan Dharna

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(गुप्त नवरात्रि साधना) _ Aatmanusandhan –  Online Global Class – 08 July 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  पंचकोश जागरण की ध्यान धारणा

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

‘ध्यान’ के विभिन्न आयाम :-
ध्येय का चिंतन मनन मंथन निदिध्यासन
एकाग्रता (शांत चित्त, मन शांत)
सजगता
सुक्ष्मातिसुक्ष्म (गहराई) में उतरना @ follow up

‘अध्यात्म’ का उद्देश्य: अंतरंग परिष्कृत – बहिरंग सुव्यवस्थित ।

ध्यान में सर्वप्रथम ईष्ट/ परब्रह्म/ परमात्मा से स्वयं को जोड़ (योग) लिया जाए । नाभि चक्र में सूर्य (सविता/ ईष्ट/ परब्रह्म/ आत्मा-परमात्मा) का ध्यान ।
स्थिर शरीर‌ (कमर, गर्दन व मस्तिष्क एक सीध में)
दोनों हाथ गोदी में (ध्यान मुद्रा)/ ज्ञान मुद्रा/ चिन्मयी मुद्रा
शांत चित्त, मन शांत (वासना, तृष्णा, अहंता व उद्विग्नता – शांत)
भाव समाधि
दिव्य वातावरण
निखिल आकाश में अध्यात्मिक सूर्य सविता के दिव्य तेज का ध्यान (शुभ ज्योति के पूंज अनादि अनुपम)
दिव्य किरणों के दिव्य तेज को रोम रोम में समाहित करना (रचाना पचाना बसाना)
छोटे सूर्य के रूप में हृदयस्थ आत्म सत्ता का ध्यान

प्राणाकर्षण भाव से:-

1. अन्नमयकोश जागरण:-
प्रवेश द्वार – नाभि चक्र
Muscular body – healthy,
Skeleton – healthy,
skin body – healthy,
Circulatory body – healthy
Nerve Body – healthy
इन्द्रिय संयम/ शक्ति – जाग्रत

2. प्राणमयकोश जागरण:-
प्रवेश द्वार – मूलाधार चक्र
शक्ति चालिनी मुद्रा
षट्चक्र बेधन (cleaning and healing)
ऐश्वर्य, ओज, तेज़, यश, शौर्य, साहस, पुरूषार्थ पराक्रम आदि (क्रिया शक्ति) में अभिवृद्धि

3. मनोमयकोश जागरण
प्रवेश द्वार – आज्ञा चक्र (प्रज्ञा ज्योति)
एकाग्रता, दूरदर्शिता, विवेकशीलता में अभिवृद्धि
ऋतंभरा प्रज्ञा जागरण
तत्त्व दृष्टिकोण का विकास
आभा मंडल विकसित
व्यक्तित्व में चुम्बकत्व में अभिवृद्धि

4. विज्ञानमयकोश जागरण
प्रवेश द्वार – हृदय चक्र (दीप्ति)
दिव्य दृष्टि
अतीन्द्रिय क्षमताओं का जागरण

5. आनंदमयकोश जागरण
प्रवेश द्वार – सहस्रार चक्र
अहो आनंद अथाह शांति

प्रार्थना (समर्पण विलय विसर्जन):-
ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
ॐ असतो मा सद्गमय ।
ॐ मृत्योर्मामृतंगमय ।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

पंचाग्नि (प्राणाग्नि, जीवाग्नि योगाग्नि, आत्माग्नि व ब्रह्माग्नि) प्रज्वलित ।

जिज्ञासा समाधान

हमें दैनंदिन जीवन में इन्द्रिय शक्ति, जीवनी शक्ति (बहादुरी), विचार शक्ति (समझदारी) , भाव संवेदनाएं (ईमानदारी) व आनंद (जिम्मेदारी) की आवश्यकता होती है । पंचकोश जागरण से हमारा दैनंदिन जीवन दिव्य बनता जाता है ।
धारणा, ध्यान व समाधि‘ से ज्ञान पक्ष strong होता जाता है ।
उपासना, साधना व अराधना‘ @ ‘Theory, Practical & Application’ @ ‘Approached, Digested & Realised’ – त्रिपदा गायत्री ।

सत्य :-
1. निरपेक्ष – अद्वैत
2. सापेक्ष – श्रेय (अनासक्त) व प्रेय (आसक्ति) में श्रेय की प्राथमिकता ।

अनाहत चक्र का मुख्यालय हृदय मध्य स्थित होने की वजह से हृदय चक्र भी कहा जाता है । यह भाव संवेदनाओं का केन्द्र है । यहां ‘प्राण + नाग’ की बहुलता है । यह श्वसन तंत्र व रक्त परिसंचरण तंत्र को नियमित व परिष्कृत करता है । 

गुरू (प्रकाश/ सविता/ आत्मा-परमात्मा) प्रेरणास्रोत हैं; प्रेरणा का प्रसारण करते हैं । शिष्य उन प्रेरणाओं को धारण (approached, digested and realised) करते हैं । श्रद्धावान् प्रज्ञावान व निष्ठावान शिष्य लक्ष्य का वरण करते हैं ।

कुण्डलिनी की तंद्रा भंग करने का अर्थ प्रसुप्ति से जागरण है ।
‘सद्ज्ञान’ व ‘सत्कर्म’ के ‘योग’ से जीवन में ‘सरसता’ (सरस्वती) का वास होता है ।

ईष्ट के दर्शन को जीवन में रचाने पचाने व बसाने से हम ‘भक्त’ कहे जा सकते हैं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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