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Panchkosh Sadhna Experience Sharing – 6

Panchkosh Sadhna Experience Sharing – 6

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 03 Oct 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌।

SUBJECT: साधकों द्वारा पंचकोश साधना अनुभव साझा करना

Broadcasting: आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

Hosting: आ॰ मीना शर्मा जी (शिक्षिका, गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)

पंचकोशी साधना @ आत्मसाधना के पथ के पथिक आत्मसाधकों की अनुभूति, पथिक कुशलता को सुनने समझने व प्रेरित होने का क्रम:-

1. आ॰ नितिन आहूजा जी (साफ्टवेयर इंजीनियर, योग शिक्षक, शोधार्थी, गुरूग्राम, NCR)

अनुभव – पंचगव्य शोध, आहार विहार संयम, आरोग्य, क्रियायोग सिद्धि, प्राणवान, स्वाध्याय, लक्ष्य दृष्टि, एकाग्रता, प्रसन्नता, प्रज्ञा, श्रद्धा – समर्पण व आत्मीयता आदि।

2. विष्णु आनन्द (Ex-serviceman, Tutor, Farmer, कटिहार, बिहार)

अनुभव:  दूर्घटना ग्रस्त शरीर के गंभीर रोगों का पूर्ण निदान, आरोग्य, शक्ति – सामर्थ्य, बेबाकपन, निडरता, त्रिगुणात्मक संतुलन, निष्ठा, सेवाभाव, श्रद्धा व आत्मीयता आदि।
जीवनोद्देश्य: आत्मशोधन + परमार्थ।

3. आ॰ भुपिंदर राणा जी (पंचगव्य शोधार्थी, गौसेवक, गुरू ग्राम, हरियाणा)

अनुभव:  पंचगव्य शोध, आरोग्य, नियमितता, प्राणवान, प्रतिभावान, निष्ठा, प्रज्ञा व आत्मीयता आदि।

4. आ॰ चन्द्र मोहन कुमार सिंह जी (Ex BSNL employee, पटना, बिहार)

अनुभव: संगीतज्ञ, आरोग्य, नियमितता, ऊर्जावान, तन्मात्रा सिद्धि, एकाग्रता, मेधा, श्रद्धा  व आत्मीयता आदि।

5. आ॰ विनोद मारोडिया जी (Retd Govt Officer, संचालक श्री अरविंदो सोसायटी टिहरी, बिहार)

अनुभव: आरोग्य, प्राणवान, सतेज मन, प्रज्ञा, तात्विक दृष्टिकोण, आत्मवत्सर्वभूतेषु, सेवा व आत्मीयता आदि।

6. आ॰ शिखा नन्दिनी जी (Msc in Yoga from DSVV, योग शिक्षिका, रिसर्च स्कॉलर, डेहरी ओनसोन, बिहार)

अनुभव: क्रियायोग सिद्धि, शारीरिक लोच, अनुशासन, नियमितता, प्राणवान, शांत व प्रसन्नचित्त मन, एकाग्रचित्त, प्रखर प्रज्ञा, सजल श्रद्धा व आत्मीयता आदि।

7. आ॰ मिथिलेश कुमार कुशवाहा (गढ़वा, झारखंड)

अनुभव: नियमितता, आरोग्य, ऊर्जावान, स्फूर्ति, उमंग, उत्साह, स्वाध्याय, व आत्मीयता आदि।

8. आ॰ दिनेश कुमार जी (शोधार्थी, जयपुर, राजस्थान)

अनुभव: आरोग्य, एकाग्रचित्त, और आत्मावलोकन – आत्मसुधार, शालीन व्यवहार, ग्रहण शक्ति, तत्त्वज्ञान व आत्मीयता आदि।

9. आ॰ निशी शर्मा जी (शिक्षक, गाजियाबाद, नई दिल्ली)

अनुभव: आरोग्य, लक्ष्य दृष्टि, प्राणिक प्रबंधन व संवर्धन, शांत व प्रसन्नचित्त मन, मेधा, तत्त्वबोध, श्रद्धा – सेवा व आत्मीयता आदि।

10. आ॰ पीताम्बर कुमार जी (बोकारो, झारखंड)

अनुभव: आरोग्य, स्वाध्याय, आत्मनिरीक्षण – आत्मसुधार, समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी, प्रज्ञा, श्रद्धा  व आत्मीयता आदि।

आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह @ ‘बाबूजी’

आ॰ मीना शर्मा दीदी को बेहतरीन एंकरिंग के लिए स्नेह साभार नमन। आ॰ विनोद मारोडिया जी की साधना को नमन। सभी आत्मसाधकों को साभार नमन।

ऋषि मुनि यति तपस्वी योगी आर्त अर्थी चिंतित भोगी। जो जो शरण तुम्हारी आवें सो सो मनोवांछित फल पावें।। @ गायत्री पंचकोशी साधना – उच्चस्तरीय अर्थात् सर्वसाधारण हेतु सर्वोपयोगी सर्वांगीण विकास की सर्वथा हानिरहित सर्वोनुकूल साधना है।

किसी भी वर्णाश्रम (faculty) के व्यक्तित्व पंचकोशी साधना से पात्रतानुसार मनोवांछित लाभ ले सकते हैं।

गायत्री महाविज्ञान – भाग 1&2 theory पक्ष है, भाग – 3 practical पक्ष है।

चेतना की शिखर यात्रा में हमें कहीं उड़ना नहीं होता प्रत्युत् क्रमशः स्थूल से सूक्ष्मातिसुक्ष्म की यात्रा करनी होती है। Frequencies से tuning बिठानी होती है @ सायुज्यता।

गुरूदेव ने स्व आचरण, प्रेरणा व शिक्षण के core part में प्रेम/ मित्रता/ आत्मीयता को रखा है। अतः हमें मैत्री भाव को आत्मसात करना चाहिए।

वृद्धजन प्रेरणास्रोत हैं। वे अपने अनुभव रूपी संपदा से समाज में प्रेरणा का प्रसार कर परिजनों का आत्मविश्वास व आत्मबल संवर्धन कर सकते हैं।

आगामी नवरात्रि साधना में गहन शोध कक्षाएं चलाई जायेंगी। आगे PhD स्तर की कक्षाओं हेतु योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ना है।

आत्मिकी का कदापि व्यवसायीकरण ना किया जाए। यह त्याग @ अनासक्त/ निष्काम प्रेम @ ‘ज्ञान + कर्म + भक्ति’ की विधा है।

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते।। अर्थात् परन्तु हे महाबाहो ! गुण और कर्म के विभाग के सत्य (तत्त्व)को जानने वाला ज्ञानी पुरुष यह जानकर कि “गुण गुणों में बर्तते हैं” (कर्म में) आसक्त नहीं होता।।3.28।।

प्रेम/ मैत्री भाव/ आत्मीयता से जग जीता जा सकता है। ये असीमित, अपरीमित व अपरिभाषित है। स्वयं को उपयोगी बनाकर परिवार, समाज व राष्ट्र सेवा में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की जा सकती है।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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