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Pashupatbrahm Upanishad – 1

Pashupatbrahm Upanishad – 1

पाशुपत ब्रह्मोपनिषद् – 1

PANCHKOSH SADHNA –  Online Global Class – 13 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  पाशुपत ब्रह्मोपनिषद् (पूर्व काण्ड – ३२ मंत्र)

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

भावार्थ वाचन: आ॰ किरण चावला जी (UK)

पाशुपत ब्रह्मोपनिषद् –  http://literature.awgp.org/book/upanishad_saadhana_khand/v1.126

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

Tough tasks भी प्राणायाम अन्तर्गत हैं । आ॰ किरण दीदी इंग्लैंड प्रवास में हैं । अभी वहां मध्य रात्रि (midnight) है । दीदी, मध्य रात्रि भावार्थ वाचन कर रहीं हैं । दीदी को नमन … ।

गायत्री स्मृति – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v2.159
“भूः भुवः और स्वः ये तीन लोक हैं, उन तीनों लोकों में ॐ (प्रणव) ब्रह्म व्याप्त है । जो बुद्धिमान उस ब्रह्म को जानता है, वही वास्तव में ज्ञानी है ।

एकोऽहम् बहुस्याम ।” मेरा परिचय क्या पूछ रहे – http://literature.awgp.org/book/geet_mala/v10.27

परमात्मा की 2 प्रमुख शक्तियां :-
1. भाव चेतना / परा प्रकृति – गायत्री विद्या अन्तर्गत
2. पदार्थ चेतना / अपरा प्रकृति – सावित्री साधना अन्तर्गत (कुण्डलिनी साधना)
http://literature.awgp.org/book/Gayatri_Sadhana_Se_Kundalini_Jagaran/v2.1

अघोर अर्थात् त्रिगुणातीतं – जिनमें त्रिगुण (सत् रज व तम) साम्यावस्था में हों ।

“हं-सः ~ मैं वह ही हूं ।” तथा “सोऽहं – वह मैं ही हूं ।” – दोनों भाव जीव व ब्रह्म के एकत्व के बोधक हैं ।
जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवः । तुषेण बद्धो व्रीहिः स्यात् तुषाभावेन तण्डुलः ।।

यज्ञोपवीत संस्कार –  http://literature.awgp.org/book/sanskar_parampara/v1.7
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारवान् द्विज उच्यते ॥”

नाद साधना (हर एक वाणी में ब्रह्म) + बिन्दु साधना (हर एक रूप में ब्रह्म) + कला साधना – (हर कलाओं में ब्रह्म … गुणा गुणेषु वर्तन्ते …) = सर्वखल्विदं ब्रह्म । अद्वैत भाव @ एकत्व में ही अखंडानंद ।

अश्वमेध यज्ञ अर्थात् ब्रह्मज्ञान का फैलाव ।

जिज्ञासा समाधान

श्रद्धा मनोभूमि के अनुरूप भक्त साधक देव शक्ति (इष्ट) का चुनाव करते हैं और उसमें परब्रह्म को देखते हैं (शक्ति एक – शक्ति धाराएं अनेक) । अतः interpretation में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) को उपर नीचे रखने का क्रम चल पड़ा । एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय । रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय ॥
वाजपेय यज्ञ अर्थात् सत्प्रवृत्ति संवर्धन व दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन ।

कुण्डलिनी जागरण के लक्षण
१. ओजस्वी (स्वस्थ शरीर),
२. तेजस्वी (शांत संतुलित मनःस्थिति) व
३. वर्चस्वी (उदार भक्ति भाव) होते हैं । वे उत्कृष्ट चिंतन, आदर्श चरित्र व शालीन व्यवहार के धारक होते हैं ।

आहार संयम में – हितभुक मितभुक् ऋतभुक् का ध्यान रखें । http://literature.awgp.org/book/akshun_swasthya_prapti_hetu_ek_shashwat_rajmarg/v1.6

गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें ‘संयम, सेवा व सहिष्णुता‘ की साधना करनी पड़ती है । http://literature.awgp.org/book/gruhasth_ek_tapovan/v6.1

गायत्री साधना, साधना जगत में highest common factor – ऋषि, मुनि, यती तपस्वी, योगी । आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ।। जो जो शरण तुम्हारी आवें । सो सो मनोवांछित फल पावें ।। बल, बुद्धि, विद्या, शील सुभाऊ । धन, वैभव, यश, तेज उछाऊ ।। .. हर एक वर्णाश्रम के व्यक्तित्व श्रद्धा मनोभूमि व निष्ठा अर्थात् पात्रतानुसार लाभान्वित होते हैं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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