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Pashupatbrahm Upanishad – 2

Pashupatbrahm Upanishad – 2

पाशुपतब्रह्मोपनिषद् – 2

PANCHKOSH SADHNA –  Online Global Class – 20 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  पाशुपत ब्रह्मोपनिषद् (उत्तर काण्ड)

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

भावार्थ वाचन: आ॰ उमा सिंह जी (बैंगलोर, कर्नाटक)

पाशुपत ब्रह्मोपनिषद् – http://literature.awgp.org/book/upanishad_saadhana_khand/v1.130

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

उत्तर काण्ड अर्थात् परिपक्वता (परिष्कृत अवस्था) में हमारे पास सारे प्रश्नों के उत्तर होते हैं @ संशयहीन (doubtless) ।

उपासना की समग्रता में = जप + ध्यान + भाव अर्थात् इन तीनों के समन्वय की आवश्यकता होती है ।
सोऽहम् साधना – अजपा गायत्री के विज्ञान एवं विधान के समन्वय को हंस-योग कहते हैं ।
सोऽहम् ध्वनि को निरन्तर करते रहने से उसका एक शब्द चक्र बन जाता है जो उलट कर हंस सदृश प्रतिध्वनित होता है। इसी आधार पर उस साधना का एक नाम हंसयोग भी रखा गया है ।
हकारो निर्गमे प्रोक्तः सकारेण प्रवेशनम् । हकारः शिवरुपेण सकारः शक्तिरुच्यते – शिव स्वरोदयं ।। अर्थात्
श्वास के निकलने (रेचक) में ‘हकार’ व
प्रविष्ट होने (पूरक) में ‘सकार’ होता है।
हकार – शिव रूप और सकार – शक्ति रूप कहलाता है । 
अभ्यासानंतरं कुर्याद्गच्छंस्तिष्ठन्स्वपन्नति । चितनं हंसमंत्रस्य योगसिद्धिकरं परम्-योग रसायनम् ।।‌ अर्थात् अभ्यास के अनन्तर चलते, बैठते और सोते समय भी हंस मन्त्र का चिन्तन, (साँस लेते समय ‘सो’ छोड़ते समय ‘ह’ का चिन्तन) परम सिद्धिदायक है। इसे ही ‘हंस’, ‘हंसो’ या ‘सोऽहं’ मंत्र कहते हैं।

जब मन उस हंस तत्त्व में लीन हो जाता है तो मन के संकल्प-विकल्प समाप्त हो जाते हैं और शक्ति रूप, ज्योति रूप, शुद्ध-बुद्ध नित्य निरंजन ब्रह्म का प्रकाश, प्रकाशवान होता है। (हंसोपनिषद्)

ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या ।”
ब्रह्म – सत्य है इसकी अनुभूति तब तक नहीं हो सकती जब तक साधक विषय-वासनाओं में लिप्त है । अतः विषय वासनाओं के प्रति वैराग्य उत्पन्न करने के लिए (अनासक्त/ निष्काम/ निःस्वार्थ प्रेम @ आत्मीयता हेतु) – जगत मिथ्या अर्थात् संसार की परिवर्तनशीलता को जानें समझें और सर्वत्र साक्षीभूत ब्रह्म (सत्य) से सायुज्यता बनावें (बोधत्व) । http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1979/February/v2.5

परमेश्वरस्तुतिर्मौनम् ।” मौन रहना (आत्मा वाऽरे ज्ञातव्यः … श्रोतव्यः … द्रष्टव्यः । @ अंतर्मुखी) उसकी स्तुति है ।

एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति ।”

सर्वखल्विदं ब्रह्म ।”

जिज्ञासा समाधान

सोऽहं साधना का अर्थ है समर्पण विलय विसर्जन – ईश्वरमय । व्यवहारिक रूपेण – ईश्वरीय अनुशासन में ईश्वर के सहचर बन ईश्वरीय कार्य का माध्यम बनें अर्थात् हम चरित्र चिंतन व व्यवहार के धनी बनें ।

पंचप्राणों की पांच आहुतियां – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1987/April/v2.11

पांच प्राणों की साधना – पाँच कोशों की सिद्धि – http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.76

ऋतं ज्ञानेन मुक्ति ।”
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यतेतत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ।।4.38।।” भावार्थ: इस संसारमें ज्ञान के समान पवित्र (अन्य) कुछ भी नहीं है । कितने ही काल पश्चात् योग द्वारा सम्यक् सिद्ध हुआ मनुष्य उस ज्ञानको अपने आप ही आत्मा में पा लेता है । 
ज्ञान की नेत्रों (प्रज्ञान ब्रह्म) से ही संसार की परिवर्तनशीलता को देखा समझा जा सकता है और सर्वत्र साक्षीभूत ब्रह्म (सर्व खल्विदं ब्रह्म) के दर्शन किए जा सकते हैं ।

ऋतं ज्ञानेन मुक्ति ।” “न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमही विद्यते ।” ज्ञान की नेत्रों (प्रज्ञान ब्रह्म) से ही संसार की परिवर्तनशीलता को देखा समझा जा सकता है और सर्वत्र साक्षीभूत ब्रह्म (सर्व खल्विदं ब्रह्म) के दर्शन किए जा सकते हैं ।

वर्तमान में प्रज्ञाकुंज सासाराम में  साधना सत्र आयोजित किए जाते हैं । जिनमें में theory संग practical classes होती हैं । सत्र में सहभागिता सुनिश्चित कर पात्रता संवर्धन किया जा सकता है ।

पंचतत्व की इन्द्रियजन्य अनुभूति – पंच तन्मात्राएं (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) ही जीव को संसार से बांधे (आसक्त) रखती हैं; जिसके लिए हम संसार में चेष्टा (भाग – दौड़) करते हैं । इनसे परे अर्थात् इनकी साम्यावस्था (तेन त्यक्तेन भुंजीथा) @ अनासक्त भाव से अखंडानंद का आनंद लिया जा सकता है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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