Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
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Practical Panchkosh Sadhna

Practical Panchkosh Sadhna

व्यवहारिक पंचकोश साधना

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class –  15 अक्तूबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

SUBJECT: व्यवहारिक पंचकोश साधना

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच:-
1. आ॰ सुभाष सिंह जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
2. आ॰ अमन कुमार जी (गुरुग्राम, हरियाणा)

साधनात्मक सफलता के 3 मूल आधार:-
1. श्रद्धा
2. प्रज्ञा
3. निष्ठा

एक मुखी (सद्बुद्धि) एवं द्विभुजी (जप व ध्यान) गायत्री की साधना से एकाग्रता, मनोनिग्रह व सतोगुण में अभिवृद्धि होती है । तदुपरांत पंचमुखी व दशभुजी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना पंचकोश साधना – सर्वथा कल्याण कारी (ऋषि मुनि यति तपस्वी योगी, आर्त अर्थी चिंतित भोगी । जो जो शरण तुम्हारी आवें, सो सो मनोवांछित फल पावें ।।) एवं कुण्डलिनी जागरण साधना
हेतु हम तैयार होते हैं ।

http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.1 (गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उसकी उपलब्धियां)

http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v10.43 (गायत्री मंजरी _ गायत्री महाविज्ञान – तृतीय भाग)

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1973/June/v2.4 (अनंत आनंद और उसकी प्राप्ति – तैत्तिरीय उपनिषद् तृतीय वल्ली – भृगुवल्ली)

अन्नमयकोश जागरण (Endocrine system healthy) :-
लाभ:-
1. निरोगता
2. दीर्घ जीवन
3. चिरयौवन
4 क्रियायोग/ साधन:-
1. आसन (अस्थि संचालन, गति संचालन, 4 प्रभावी व 4 महाप्रभावी आसन व प्रज्ञायोग आदि)
2. उपवास (ऋतभोक् + मितभोक् + हितभोक्)
3. तत्त्व शुद्धि (पंचतत्त्व संतुलन)
4. तपश्चर्या (युगानुकुल 12 तप)

प्राणमयकोश जागरण (पंच प्राण + पंच उपप्राण):-
लाभ:-
1. ऐश्वर्य
2. पुरूषार्थ
3. ओज – तेज
4. यश
3 क्रियायोग/ साधन:-
1. प्राणायाम (नाड़ी शोधन, प्राणाकर्षण, आवश्यकतानुसार सूर्यभेदी/ चंद्रभेदी आदि)
2. बंध (मूल बंध, उड्डियान बंध, जालंधर बंध व महाबंध)
3. मुद्रा (हस्तमुद्रा व यौगिक मुद्राएं)

मनोमयकोश जागरण (शांत व प्रसन्न शुद्ध मन):-
लाभ:-
1. आकर्षक व्यक्तित्व
2. धैर्य
3. मानसिक संतुलन
4. एकाग्रता – बुद्धिमत्ता
4 क्रियायोग/ साधन:-
1. जप (स्वाध्याय मनन चिंतन)
2. ध्यान (निदिध्यासन)
3. त्राटक (अंतः व बाह्य त्राटक @ लक्ष्यभेदी परिष्कृत दृष्टिकोण)
4. तन्मात्रा साधना (अनासक्त/ निष्काम/ निःस्वार्थ प्रेम)

विज्ञानमयकोश जागरण (आत्मबोध + तत्त्वबोध @ संशय रहित शुद्ध प्रज्ञा बुद्धि):-
लाभ:-
1. अतीन्द्रिय क्षमता
2. दिव्य दृष्टि
3. दैवीय गुण
4. सज्जनता – सहृदयता
4 क्रियायोग/ साधन:-
1. सोऽहं साधना
2. आत्मानुभूति योग
3. स्वर संयम
4. ग्रन्थि भेदन

आनंदमयकोश जागरण (शांत विशुद्ध चित्त):-
लाभ:-
1. आत्मसाक्षात्कार
2. ईश्वर दर्शन
3. अखंड आनंद
4 क्रियायोग/ साधन:-
1. नाद साधना
2. बिंदु साधना 
3. कला साधना
4. तुरीय स्थिति

पंचाग्नि विद्या (पंचकोश साधना):-
1. प्राणाग्नि
2. जीवाग्नि
3. योगाग्नि
4. आत्माग्नि
5. ब्रह्माग्नि

ज्ञानार्थ आएं – सेवार्थ जाएं । आत्मनिर्माण उपरांत विश्वनिर्माण…. । Theory + Practical के उपरांत application से पूर्णता मिलती है । इसे ही साधना के 3 चरणों से समझा जा सकता है :-
1. उपासना (approached)
2. साधना (digested)
3. आराधना (realised)
जिनकी उपलब्धि व्यक्तित्व में उत्कृष्ट चिंतन आदर्श चरित्र व शालीन व्यवहार रूपेण परिलक्षित होती है ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ सुभाष चन्द्र जी को बेहतरीन कक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद । पूज्य गुरुदेव निःसंदेह प्रसन्न होंगे । उनकी इच्छा बेहतरीन शिक्षक पैदा करनी की थी जो चरितार्थ हुए देखा जा सकता है ।

साधनात्मक जीवन में सर्वप्रथम स्वयं के routine को दुरूस्त किया जाए । आहार विहार संयमित (ध्यान + धारणा + समाधि) हों । निरोगी शरीर, उत्साह उमंग क्रियाशीलता, शांत व प्रसन्न मन, संशय रहित बुद्धि व हर हाल मस्त हेतु अन्नमयकोश जागरण से आनंदमयकोश जागरण तक के क्रियायोग सर्वसमक्ष हैं ।

पंचकोश जागरण/ अनावरण/ परिष्करण उपरांत कुण्डलिनी जागरण की साधना सर्वथा निरापद है ।

प्रज्ञाकुंज सासाराम में चलने वालों Practical सत्रों में सहभागिता सुनिश्चित करके साधनात्मक अवरोधों को दूर किया जा सकता है ।

आत्मीयता का विस्तार अध्यात्म है

आत्मीयता beyond the limits अर्थात् असीमित अपरीमित अनादि अनंत है । अतः मान्यताएं आत्मीयता विस्तार में बाधक होती हैं । मनोमयकोश से आनंदमयकोश तक के क्रियायोग आत्मीयता विस्तार में सहयोगी हैं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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