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Pragyopnishad – 1 Experience Sharing Questions and Answers

Pragyopnishad – 1 Experience Sharing Questions and Answers

प्रज्ञोपनिषद् (प्रथम मण्डल), अनुभव शेयरिंग व प्रश्नोत्तरी

PANCHKOSH SADHNA –  Navratri Online Global Class – 02 April 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  प्रज्ञोपनिषद् (प्रथम मण्डल), अनुभव शेयरिंग व प्रश्नोत्तरी

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

आत्मा alongwith आवरण (पंचकोश) = जीवात्मा ।”
पंचकोश परिष्कृत हो तो आत्मप्रकाश – आत्मीयता (अनासक्त/ निष्काम प्रेम) के रूप में परिलक्षित होता है @ “उत्कृष्ट चिंतन + आदर्श चरित्र + शालीन व्यवहार” ।
पंचकोश विकृत हो तो ‘आत्मविस्मृति’ (भुलक्कड़ी) @ अचिंत्य चिंतन + अयोग्य आचरण ।
त्रिविध (दैहिक, दैविक व भौतिक) ताप/ दुःख शांत/ निवृत्ति = मोक्ष @ परम पुरुषार्थ

नारद:  (ना व रद = बिना विभाजित @ अभिन्न @ अद्वैत) लोककल्याण हेतु सदैव भ्रमण करते हैं ।

आस्था संकट (पदार्थ जगत आत्मसत्ता पर हावी @ भौतिकता प्रधान व आत्मीयता गौण) resulting अचिंत्य चिंतन व अयोग्य आचरण फलतः कलह क्लेश व नाश (त्रिविध दुःख) ‌।
प्रज्ञान ब्रह्म । प्रज्ञा के अभाव में आस्था संकट उत्पन्न होती है ।
निराकार होने की वजह से प्रेरणा (आदर्श) रूप में आस्थावान (सुपात्र @ वरिष्ठ @ जाग्रत @ आत्मस्थित @ आत्मसाधक @ प्रज्ञावान् साधकों) में अवतरित होता हूं अर्थात् सुपात्र ईश्वरीय कार्य के माध्यम बनते हैं । पात्रता विकास हेतु तीन अनिवार्य चरण @ त्रिपदा गायत्री:-
१. ज्ञान @ प्रज्ञा @ उत्कृष्ट चिंतन @ ब्राह्मी गायत्री
२. कर्म @ निष्ठा @ आदर्श चरित्र @ मध्याह्न सरस्वती
३. भक्ति @ श्रद्धा @ शालीन व्यवहार @ सायं (परिपक्वता) सरस्वती ।

सत्पात्र – जिनके अंदर दो बातें हों:-
१. जिज्ञासा (आत्मबोध) – स्वयं को जानने की “मैं कौन हूं ?” @ योग = आत्मसमीक्षा + आत्मसुधार + आत्मनिर्माण + आत्मप्रगति । @ आत्मा वाऽरे ज्ञातव्यः … श्रोतव्यः … द्रष्टव्यः । @ आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः ।
२. धरा को स्वर्ग बनाना (तत्त्वबोध) @ तप @  अनासक्त कर्म @ निः स्वार्थ प्रेम @ वसुधैव कुटुंबकम् ।

भाग्य के भरोसे रहने वाले लोग अकर्मण्य होते हैं । अकर्मण्यता भारी भूल है । मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है । अर्थात् वह परिस्थितियों का दास नहीं प्रत्युत् उनका निर्माता, नियंत्रणकर्ता व स्वामी है ।

ईश्वर से सायुज्यता बनाने हेतु तीन चरण:-
१. उपासना @ समर्पण @ ज्ञानयोग @ उत्कृष्ट चिंतन @ approached ।
२. साधना @ विलय @ कर्मयोग @ आदर्श चरित्र @ digested ।
३. अराधना @ विसर्जन @ भक्तियोग @ शालीन व्यवहार @ realised ।

आत्मज्ञान – traveller cheque.

तप (संयम) के ४ आयाम:-
१. इन्द्रिय संयम
२. समय संयम
३. विचार संयम
४. अर्थ संयम
पंचकोश साधना  में ये चारों संयम सधते हैं ।

संकीर्णता को छोड़ परमार्थी (सज्जनता सहृदयता उदार चित) बनें । आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः । वसुधैव कुटुंबकम् ।

महाकाल @ प्रज्ञावतार के सहचर धन्य धन्य

अनुभव शेयरिंग

आ॰ सुभाषचन्द्र सिंह जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)

ज्ञानचर्चा सुनने व सुनाने में बहुत अच्छी लगती हैं । ‘ज्ञान’ (उत्कृष्ट चिंतन) की सार्थकता तब है जब वो साधना से पचाया जाए (आदर्श चरित्र) व शालीनता के रूप में परिलक्षित हों ।

आ॰ विजय गोयल जी (ज्योतिषाचार्य, जयपुर, राजस्थान)

पंचकोश साधना बिल्कुल systematic, best  and highly effective हैं ।
उपलब्धियां: SQ (Spritual Quotient) =   IQ (Intelligent Quotient) + EQ (Emotional Quotient) में अभिवृद्धि ।
ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव मनोमयकोश तक है । अतः विज्ञानमयकोश के साधक पर इनका प्रभाव नहीं पड़ता है ।

आ॰ अर्चना सिंह जी (बैंकर, लखनऊ, उ॰ प्र॰)

1 वर्ष से पंचकोश साधना का अभ्यास चल रही है ।
उपलब्धियां: नियमितता, आत्मानुशासन, आत्मसंयमी, skilled etc.

आ॰ अंकुर सक्सेना जी (Software Engineer, Senior IT Professional in Tech Mahindra & Admin + Host of Panchkosh Research Online Class)

सभी को भारतीय नववर्ष की बधाई । 7 वर्ष से बाबूजी के मार्गदर्शन में पंचकोश साधना अनवरत जारी है ।
उपलब्धियां:  परिष्कृत पंचकोश ।

आ॰ रेणु सिंह जी (वाराणसी, उ॰ प्र॰)

पंचकोश साधना – कायाकल्प वृक्ष । यह हमें भौतिक, सामाजिक व अध्यात्मिक प्रगति देती हैं ।
उपलब्धियां: आरोग्य, ऊर्जावान, क्रियावान, शांत व प्रसन्न मन, इच्छाशक्ति में अभिवृद्धि, आत्मप्रगति आदि ।
प्रेरणा:  पंचकोश साधना को सभी अपने दैनिक जीवन का आवश्यक अनिवार्य अंग बनाएं ।

आ॰ शरद निगम जी (Businessman, चित्तौड़गढ़, राजस्थान)

साधना के दौरान चुनौतियां (उलझनें) आती हैं उन्हें गुरू (बाबूजी) के मार्गदर्शन में सुलझाने का पुरूषार्थ किया गया है । उपनिषदों के स्वाध्याय व पंचकोशी क्रियायोग से साधनात्मक प्रगति अनवरत जारी है ।  

जिज्ञासा समाधान

सभी पार्टिसिपेंट्स व अनुभव शेयरिंग साधकों को नमन सस्नेह साभार
गुरूदेव सभी की प्रगति से बहुत खुश हैं ।
Journey अभी लंबी है अतः निरंतरता बनाए रखें @ चरैवेति चरैवेति @ उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत
आगामी 5 वर्ष की कक्षा गायत्री की उच्चस्तरीय साधना – कुण्डलिनी जागरण पर चलेंगी ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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