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Pragyopnishad-3

Pragyopnishad-3

Pragyopnishad – 3rd Chapter

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 1st Jan 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: प्रज्ञोपनिषद् (तृतीय मण्डल)

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

आ॰ मीना शर्मा जी (नई दिल्ली)

गृहस्थ धर्म – एक तपोवन । जिसमें ‘संयम, सहिष्णुता व सेवा’ की साधना की जाती है ।
परिवार (गृहस्थ योग) का प्राण सद्भावना व सहकारिता (आत्मीयता) है ।  इस प्रयोगशाला से महामानव उत्पन्न होते हैं ।
छोटा परिवार – सुखी परिवार । मितव्ययिता अर्थात् ‘सादा जीवन – उच्च विचार’ ।

परम विवाह कर्तव्य एक आत्मीय मिलन (समर्पण – विलयन – विसर्जन – एकत्व) ।  शारीरिक व मानसिक परिपक्वता उपरांत हमें विवाह करनी चाहिए ।
सृजन शक्ति सजल श्रद्धापूर्ण प्रतिरूपा नारी व राष्ट्र भविष्य – संतति की शिक्षा – दीक्षा व प्रगति के क्रम को बनाए रखने से सुदृढ़ समाज की नींव रखी जाती है ।

गृहस्थ योग में प्रज्ञोपनिषद् के दिव्य सूत्रों को जीने (रचाने, पचाने व बसाने) से अनासक्त (निःस्वार्थ) प्रेम @ दिव्य आनंद (अखंडानंद) की अनुभूति की जा सकती है ऐसा अनुभव में है ।

आ॰ किरण चावला जी (USA)

वानप्रास्थ आश्रम – जीवन का एक दिव्य सुयोग है । जिसमें वयोवृद्ध अपने संपूर्ण जीवन के अनमोल अनुभव से विश्व वसुधा के परिजनों (वसुधैव कुटुंबकम्) को प्रेरित/ लाभान्वित कर सकते हैं ।
तीर्थयात्रा, प्रवज्या का एक सशक्त माध्यम
वृद्धजन, युवाओं के सशक्त/ परिपक्वता उपरांत निर्णय का अधिकार उन पर छोड़ दें । जब वे सलाह  मांगें तो अनासक्त भाव से दिया जा सकता है ।
परिवारगत प्रेम – मोह (ससीम) का दायरा बढ़ाते हुए ‘वसुधैव कुटुंबकम्‘ – आत्मीयता (असीम) में रूपांतरण करें । अपने अहैतुक प्रेम (unconditional love) से वृद्धावस्था को सार्थक बनाया जा सकता है ।

उपासना, साधना व अराधना‘ @ ‘Approached, Digested @ Realised) को परिवार का अनिवार्य अंग बनाएं । साधना कक्ष के साथ एक पुस्तकालय (library) की व्यवस्था रखी जाए । ‘स्वाध्याय – सत्संग’ भी परिवार निर्माण का एक अनिवार्य अंग ।

प्रज्ञा पुराण में कथानक (कहानियों के) माध्यम से जीवन की हर एक गुत्थियों को सुलझाने (solutions) एवं प्रगति के मंत्र/ प्रेरणा हैं ।

आत्मनिर्माणी ही विश्व निर्माणी होते हैं (आत्मपरिष्कार = आत्म-समीक्षा + आत्मसुधार + आत्मनिर्माण + आत्मप्रगति) ।

परिवार निर्माण की अंतिम परिणति वसुधैव कुटुंबकम् रूप में है । एक भाषा – आत्मीयता, एक जाति – समता समानता, एक धर्म – धारणे इति धर्मः । नर व नारी – एक समान, प्राणि मात्र सब एक समान @ उज्जवल भविष्य ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ मीना शर्मा दीदी व आ॰ किरण चावला दीदी को सारगर्भित, सुबोध व अनुभवगम्य शिक्षण हेतु सस्नेह साभार । किरण दीदी व मीना दीदी – parenting experts ।

सासु मां (husband’s mother) को बहु (wife) अपनी मां (mother) समझें और सासु मां, बहुरानी को अपनी बेटी (daughter) समझें तो तकरार नहीं होगी और परिवार में ‘संयम, सेवा व सहिष्णुता’ कायम रखी जा सकती है @ “Give respect – take respect.”

संस्कृति” शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में – ‘सा प्रथमा संस्कृतिः विश्ववारा।’ भारतीय संस्कृति, विश्व में सर्वाधिक वरेण्य (सार्वभौम) रही है।
चरित्र, चिंतन व व्यवहार‘ का परिष्कार ही ‘धर्म’ है। उत्कृष्ट चिंतन, आदर्श चरित्र व शालीन व्यवहार के धारक, धार्मिक कहे जा सकते हैं ।

हर हाल सकारात्मकता (आत्मीयता/ अहैतुक प्रेम) ही हमारी मस्ती/ आनंद में स्थायित्व (अखंडानंद) लाता है । अंतः परिष्कृत दृष्टिकोण (प्रज्ञा बुद्धि) से मोक्ष/ मुक्ति का आधार निर्मित होती है @ ज्ञानेन मुक्ति। “श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा” की त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने (परिपूर्ण जीवनशैली) से सारे पाप धुल जाते हैं अर्थात् दुःखों/ कष्टों का अंत होता है ।

ईश्वर सर्वव्यापी हैं । अतः हर एक‌ कर्तव्य ईश्वरीय कार्य से भिन्न नहीं है ।
ईश्वरीय अनुशासन में ईश्वर के सहचर बन ईश्वरीय पसारे विश्व वसुधा में ईश्वरीय कार्य के माध्यम बनें ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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