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Pragyopnishad-6, Experience Sharing Questions and Answers

Pragyopnishad-6, Experience Sharing Questions and Answers

प्रज्ञोपनिषद् (षष्ठं मण्डल), अनुभव शेयरिंग व प्रश्नोत्तरी

PANCHKOSH SADHNA –  Navratri Online Global Class – 07 April 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  प्रज्ञोपनिषद् (षष्ठं मण्डल), अनुभव शेयरिंग व प्रश्नोत्तरी

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

चैत्र नवरात्रि का आज छठवां दिन । माता कात्यायनी की पूजा (ऋषि कात्यायन की पुत्री) । कात्यायनी शब्द का शाब्दिक अर्थ है – जो प्रबल और घातक दंभ को दूर करने में सक्षम हो ।
षट्चक्र बेधन: छठवें दिन की साधना में साधक का ‘आज्ञा चक्र’ जाग्रत । आत्मबल/ आत्मविश्वास में अभिवृद्धि ।
मंत्र: या देवी सर्वभू‍तेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन । कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

देवात्मा हिमालय प्रकरण

सत्राध्यक्ष: देवर्षि नारद

शिक्षण प्रशिक्षण हेतु प्रथम आवश्यक/ अनिवार्य अंग – अनुशासन

सन् 1985 ई॰ में first time वंदनीय माता जी से आज्ञा लेकर ऋषि चिंतन से सान्निध्य हेतु हिमालय प्रवास संपन्न हुआ ।

हिमालय – देवभूमि (देवों व ऋषियों की क्रिया स्थली) । जप – मानस यज्ञ । देव शक्तियों व ऋषियों की क्रिया स्थली हिमालय होने की वजह से यहां (दिव्य वातावरण में) ‘साधना’ फलीभूत होने की संभावना बढ़ जाती है ।

युगऋषि (युग व्यास) वेद मूर्ति तपोनिष्ठ, पं॰ श्री राम शर्मा आचार्य जी संपूर्ण वैदिक आर्ष ग्रंथों का भाष्य लिखकर युगकालीन वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का प्रतिपादन किया ।
वैतरणी नदी: वासना, तृष्णा व‌ अहंता पूर्ण (चिपचिपा) दलदल @ परिवर्तनशील भौतिक जगत।
गाय की पूंछ: त्रिपदी गायत्री साधना ।
अलंकारिक प्रतिपादन: गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी नदी पार की जाती है ।

आत्मीयता विस्तार हेतु ‘सविता’ के आत्मिक किरणों के धारण हेतु देवात्मा हिमालय का हृदय – हिमाद्रि क्षेत्र (पृथ्वी North pole – मुख्यालय – सहस्रार) सर्वोत्तम

गंगा का जल – मारीचि (सविता के आत्मिक किरणों  का condensed form) ।
भागीरथ ने ऋषियों के सुक्ष्म संरंक्षण में महान तप कर पृथ्वी पर गंगा का अवतरण कर अपने साठ हजार वंशजों को मुक्ति (अनासक्त निष्काम प्रेम @ सघन आत्मीयता @ मोक्ष @ अद्वैत) दिलाई ।

सप्तलोक (भुः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः व सत्यं) यहीं घुले हैं । बस अलग अलग frequency में tuning बनती हैं । पृथ्वी लोक उपरांत अशरीरी आत्मा रहतीं हैं । उदाहरणार्थ रेडियो में एक ही समय पर different frequency पर different प्रसारण का लाभ लिया जा सकता है । 

अग्निहोत्र (यज्ञ) का स्वास्थ्य पर प्रभाव – http://literature.awgp.org/book/Gayatri_Sadhana_Aur_Yagya_Prakriya/v3.2
चिकित्सा के लिए जड़ी बूटियों की ओर लौटें – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1983/March/v2.24
जड़ी बूटियों द्वारा चिकित्सा – http://literature.awgp.org/book/jadibutiyo_dwara_chikitsa/v1.1

जीवेम् शरदः शतम् – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/June/v2.39

जीवन एक कल्प वृक्ष और जीवन देवता – आत्म देवता @ जीवन के देवता को आओ मिलकर संवारें ।

जीवन देवता की साधना:-
1. Thought management (विचार संयम)
2. Self management (इन्द्रिय संयम)
3. Time management (समय संयम)
4. Resources Management (अर्थ संयम)

सप्त श्रषि परंपराओं का पुनर्जीवन

जीवन में समावेश हेतु चार आवश्यक/ अनिवार्य गुण:-
1. समझदारी
2. ईमानदारी
3. जिम्मेदारी
4. बहादुरी

सार्थक व प्रभावी उपदेश वह है जो वाणी से नहीं प्रत्युत् अपने आचरण से प्रस्तुत किया जाए ।

अनुभव शेयरिंग

Host: आ॰ नितिन आहुजा जी (IT Professional, पंचगव्य शोधार्थी व पंचकोश शोधार्थी, हरियाणा)

आ॰ रामसिद्धि जी (लोकसेवी, प्रज्ञाकुंज सासाराम, बिहार)

उपलब्धियां: सौभाग्यशाली, गौरवान्वित, नियमितता, संयमित, क्रियावान, ऊर्जावान, मनस्विता, आत्मीयता आदि ।

कल की कक्षा में कुण्डलिनी जागरण साधना की पृष्ठभूमि रखी जाएंगी ।

जिज्ञासा समाधान

नवरात्रि साधना में जप (उत्कृष्ट चिंतन) तप (आदर्श चरित्र + शालीन व्यवहार) को प्राथमिकता दी जा सकती है ।

सूर्य षष्ठी व्रत में जल का सेवन किया जा सकता है । Nature of duties and शारीरिक पृष्ठभूमि व मनोभूमि को ध्यान में रखते हुए साधना पद्धति अपनाई जाती हैं । आवश्यक/ अनिवार्य अंगों में ‘श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा’ हैं । ‘समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी व बहादुरी’ को जीवन का अक्षुण्ण अंग बनाएं रखेंगे ।

उद्यमशील व्यक्ति ब्रह्ममुहुर्त व ब्रह्मसंध्या में ‘क्रियायोग’ का अभ्यास बनाए रख सकते हैं । बाकी दैनंदिन क्रियाओं में application कर हर एक क्रिया को योग बनाया जा सकता है ।

श्राद्ध कर्म में मुंडन, श्वेत वस्त्र (उत्तरीय) धारण हेतु मध्यमा वाणी (भाव भंगिमा) है ताकि शोकाकुल परिवार से कोई हंसी विनोद ना करें ।

वर्तमान में प्रज्ञाकुंज सासाराम में आयोजित वर्तमान साधना सत्रों में प्रतिभागिता (आमने सामने शिक्षण प्रशिक्षण) से प्रगति की जा सकती है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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