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Pragyopnishad (Part-1)

Pragyopnishad (Part-1)

प्रज्ञोपनिषद् (प्रथम मण्डल)

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 04 Dec 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: प्रज्ञोपनिषद् (प्रथम मण्डल)

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

आ॰ किरण चावला जी (USA) व आ॰ आशीष कुमार गुप्ता जी (गोरखपुर, उ॰ प्र॰)

जिज्ञासा – सर्वसाधारण/ जनसामान्य हेतु सर्वथा अनुकूल लोकोपयोगी साधना ।
समाधान – संसार में रोग, शोक, कलह – क्लेश आदि का मूल व्यक्तित्व के ‘अचिन्त्य चिंतन’ व ‘अयोग्य आचरण’ है ।
हमारा चिंतन – उत्कृष्ट, चरित्र – आदर्श व व्यवहार – शालीन हो । साधना में ‘श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा’ का समावेश हो ।

मानव अपने भाग्य का निर्माता, नियंत्रणकर्ता व स्वामी है ।

मानव में देवत्व का अवतरण संवर्धन करने के तीन साधन:-
1. उपासना (theory/ approached/ ज्ञानयोग)
2. साधना (practical/ digested/ कर्मयोग)
3. अराधना (application/ realised/ भक्तियोग)

जीवन के देवता को आओ मिलकर संवारें ‌। जीवन देवता (पंचकोश) प्रत्यक्ष देवता हैं जो प्रत्यक्ष अनुदान वरदान (अनंत ऋद्धियां सिद्धियां) देते हैं ।
परिष्कृत पंचकोश – मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती हैं । इसके हेतु हमें ‘तप‘ (गलाई) व ‘योग‘ (ढलाई) की आवश्यकता होती हैं ।
‘तप’ के चार मूलभूत स्तंभ:-
1. इन्द्रिय संयम
2. समय संयम
3. विचार संयम
4. अर्थ संयम
आत्मा व परमात्मा का संयोग – योग ।

आत्मनिर्माणी ही विश्व निर्माणी होते हैं । जीवनोद्देश्य:-
1. स्वयं के मूल स्वरूप को जानना – आत्मबोध  (मनुष्य में देवत्व का अवतरण) ।
2. धरा को सजाना संवारना – तत्त्वबोध  (धरा पर स्वर्ग का अवतरण) ।
3. वसुधैव कुटुंबकम् – परमात्मबोध

देवासुर संग्राम ही संघर्ष का मूल है । संघर्ष ही संसार रूपी मैदान में खेल (अभिनय) का प्राण है । संग्राम जिंदगी है ।  मां के पेट (शरीर के जन्म) से लेकर श्मशान के चिता (शरीर के मरण) तक संघर्ष साथ रहती है । Struggle proportional to success.

नरक के 3 द्वार:-1. वासना, 2. क्रोध व 3. लालच ।

आत्मपरिष्कार कर ईश्वरीय प्रेरणाओं (आदर्शों) के धारक बनें व उनके प्रसारण /motivation का माध्यम बनें ।

ज्ञान, कर्म व भक्ति‘ @ ‘उपासना, साधना व  अराधना’ @ ‘ज्ञानयोग, कर्मयोग व भक्तियोग’ @ ‘श्रद्धा, भक्ति व निष्ठा’ के त्रिवेणी संगम (त्रिपदा गायत्री) का मानव जीवन में समावेश ‘उत्कृष्ट चिंतन, आदर्श चरित्र व शालीन व्यवहार‘  रूपेण समझा जा सकता है ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

प्रज्ञोपनिषद् (युग गीता) में वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, महाप्राज्ञ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी @ गुरूदेव ने संस्कृत के श्लोक (मंत्र) व उनका भाष्य (भावार्थ) स्वयं लिखने की मूल वजह इसे सार्वभौमिक सर्वोपयोगी व त्रुटि रहित रखना है ।

आ॰ किरण चावला जी व आ॰ आशीष कुमार गुप्ता जी को सरल सहज सुबोध प्रायोगिक शिक्षण के लिए सस्नेह साभार ।

संघर्ष (struggle) – मनुष्य में प्रसुप्त शक्ति (आत्मबल) के जागरण हेतु आती हैं । एक धर्म (मानवता), एक भाषा (आत्मीयता/ प्रेम), एक सोच (अद्वैत) – प्रलय/ सतयुग की स्थिति कही जा सकती है ।

आदर्शों से प्रेम – श्रद्धा, आत्मानुभूत ज्ञान – प्रज्ञा व लोकसेवा – निष्ठा” के धारक प्रज्ञा पुत्र/ प्रज्ञा पुत्री हैं । वे चरित्र, चिंतन व व्यवहार के धनी होते हैं ।

ईशानुशासन (आत्मानुशासन) में ईश्वर के सहचर बन कर्तव्यों का संपादन/ निष्पादन (चरैवेति चरैवेति) ।

सद्ज्ञान (गायत्री) + सत्कर्म (सावित्री) = सरसता/ भक्ति (सरस्वती) । संकीर्णता को छोड़ आयाम बढ़ाते चला जाए । व्यष्टि का समष्टि में विलय – विसर्जन @ सायुज्यता – एकत्व @ अद्वैत ।

पात्रतानुसार (चरित्र, चिंतन व व्यवहार अनुरूप) ही अनुदान वरदान की ईश्वरीय विधि व्यवस्था है । हम पात्रता का विकास करें । पाछे पाछे हरी फिरे – देव शक्तियां (प्रेरणाएं) सुपात्रों के तलाश में रहती हैं ।

हम जहां कहीं भी administration में सुधारात्मक/ अनुशासनात्मक प्रक्रिया का माध्यम बनें वहां आत्मीयता के भाव को अंतःकरण में सदैव बनाये रखें @ सौजन्य युक्त पराक्रम । 

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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