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Pragyopnishad (Part-5)

Pragyopnishad (Part-5)

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PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 15 Jan 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: प्रज्ञोपनिषद् (पंचम मण्डल)

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

आ॰ किरण चावला जी (USA)

अध्यात्म‘ (आत्म सत्ता का पदार्थ सत्ता पर नियंत्रण) से विमुख अर्थात् ‘आत्मविस्मृति’ (भुलक्कड़ी) के कारण मनुष्य स्वयं के गरिमा अनुरूप कार्य ना कर पतन के गर्त में जाता है ।
मनुष्य स्वयं के भाग्य का निर्माता नियंत्रणकर्ता व स्वामी है ।

उत्थान’ का उपाय – ‘आत्मपरिष्कार’ । इसमें निम्नांकित 4 चरण हैं:-
1. आत्म-समीक्षा
2. आत्मसुधार
3. आत्मनिर्माण
4. आत्मविकास
साधना’ के 4 साधन:-
1. चिंतन
2. मनन
3. स्वाध्याय
4. सत्संग
आत्मसुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है ।”

समग्र साधना = “तप + योग“:-
1. तप अर्थात् गलाई (दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन) = आत्म-समीक्षा + आत्मसुधार ।
2. योग अर्थात् ढलाई (सत्प्रवृत्ति संवर्धन) = आत्मनिर्माण  + आत्मविकास ।
“अध्यात्म = अंतरंग परिष्कृत + बहिरंग सुव्यवस्थित ।” 

ज्ञानकी सार्थकता अनुभव में आने में है । यह निम्नांकित तीन चरणों से गुजरती है :-
1. approached
2. digested
3. realised.

‘योग’ के क्रमशः 3 चरण @ त्रिवेणी संगम:-
1. ज्ञानयोग (Theory – approached – उपासना), उपलब्धि – उत्कृष्ट चिंतन ।
2. कर्मयोग (practical – digested – साधना), उपलब्धि – आदर्श चरित्र ।
3. भक्तियोग (application – realised – अराधना), उपलब्धि – शालीन व्यवहार ।

धर्म – धारणे इति धर्मः ।” मानवता – धर्म, निःस्वार्थ प्रेम – धर्म, मानवोचित कर्म (अपने लिए कठोरता अन्यों के लिए उदारता – बहुजन हिताय सर्वजन सुखाय) – धर्म है ।
सार्वभौम धर्म के 10 लक्षण (5 युग्म @ पंचशील @ 5 यम-नियम ):-
1. सत्य व विवेक
2. संयम व कर्तव्य पालन
3. अनुशासन व अनुबंध
4. स्नेह-सौजन्य व पराक्रम
5. सहकार व परमार्थ

सर्वधर्म समभाव = अंतरंग परिष्कृत + बहिरंग सुव्यवस्थित ।”
1. अंतरंग परिष्कृत – मनुष्य में देवत्व का अवतरण ।
2. बहिरंग सुव्यवस्थित – धरा पर स्वर्ग का अवतरण ।
निःस्वार्थ प्रेम (आत्मीयता – अद्वैत दर्शन) “आत्मवत् सर्वभूतेषु” व “वसुधैव कुटुंबकम्” @ अद्वैत ।

परमात्मा की तीन शक्तियां:-
1. सृजन
2. पोषण
3. संहार (नवसृजन हेतु)

त्रिपदा गायत्री:-
ज्ञानयोग, कर्मयोग व भक्तियोग
उपासना (approached), साधना (digested) व अराधना (realised)”
श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा
समर्पण, विलय व विसर्जन
उत्कृष्ट चिंतन, आदर्श चरित्र व शालीन व्यवहार

ईश्वरीय अनुशासन में ईश्वर के सहचर बन ईश्वरीय पसारे (संसार) की सुव्यवस्था में सहभागी (माध्यम) बने ।”

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

स्व-आचरण (स्वभाव) को प्रभावित करने वाले कारक:-
1. संस्कार (पूर्वजन्म व वर्तमान)
2. वर्तमान संगति (friend circle)
3. वर्तमान परिस्थितियां (Local environment)

आकांक्षा, क्रिया व विचारणा” अनुरूप ‘कार्य’ (पाप-पुण्य) संपादित होते हैं तदनुरूप भाग्य बनता है और आगे की यात्रा बनती है, योनियों का निर्धारण होता है ।
मोक्ष/ मुक्ति हेतु “योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥”

अंधकार पक्ष (नरपशु व नरपिशाच) – कुव्यवस्था का माध्यम (misuse or overuse) तो प्रकाश पक्ष (देवमानव/ महामानव) – सुव्यवस्था का माध्यम (good use) । चुनाव का अधिकार परमपिता परमात्मा ने हमें दे रखा है । 

हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥ हर एक कथा के मूल में एक ही हरि (परमपिता परमात्मा परब्रह्म) हैं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

“यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे ।” – आत्मसाधना में उत्तरायण – प्राणों का उर्ध्वगमन – प्रतिप्रसवन । मकर-संक्रांति की शुभकामनाएं ।

Writer: Vishnu Anand

 

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