Pragyopnishad (Part 6 – Chapter 7) Rishi Parmpara Punarjivan Prakaran
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 14 Feb 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: प्रज्ञोपनिषद् (6 मण्डल) – VII – ऋषि परंपरा पुनर्जीवन प्रकरण
Broadcasting: आ॰ नितिन आहूजा जी
टीका वाचन: आ॰ किरण चावला जी (USA)
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
एक समय भारतीय संस्कृति, विश्ववारा अर्थात् संपूर्ण विश्व के द्वारा अनुकरणीय रही। भारत ज्ञान के क्षेत्र में विश्वगुरू व विज्ञान के क्षेत्र में सोने की चिड़िया बनने की मूल वजह ऋषियों का व्यक्तित्व, उनके उच्चस्तरीय कार्य व जनमानस के द्वारा ऋषि परंपरा का अनुकरण @ चिंतन चरित्र व व्यवहार में आदर्शों का समावेश रहा।
विश्व भर में भारत की और भारत में हिमालय की गरिमा की मूल वजह ऋषियों का महान व्यक्तित्व व उनके उच्च स्तरीय कार्य रहे।
प्रश्न – लोकहितार्थ श्रद्धेय ऋषि परंपरा कैसे तिरोहित (disappeared) हो गई? इसका कारण व निवारण क्या है?
उत्तर – अदूरदर्शिता (अविवेक) की वजह से मूढ़ मान्यताओं (कुरीतियों) का जन्म हुआ जो ऋषि परंपरा के अवसान का कारण बनीं। अवसान के बाद अभ्युदय का भी समय आता है। महान संकल्प और उन संकल्पों का क्रियान्वयन करने वाले पुरूषार्थी ही ‘महान’ कहलाते हैं। ऋषि परंपरा के पुनर्जीवन (मनुष्य में देवत्व व धरा पर स्वर्ग के अवतरण) हेतु – ‘समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी व बहादुरी’ का आश्रय लेते हुए मिलजुलकर काम करें।
प्रज्ञा अभियान के संयुक्त प्रयास के रूप में सप्त ऋषियों की परंपरा को पुनर्जीवित करने हेतु ऋषियों में से:-
एक ने ऋषि पतंजलि परंपरा का अनुसरण करते हुए योग विज्ञान को समयानुकूल बनाने का निश्चय किया ताकि मिट्टी से विनिर्मित यह शरीर, दोषरहित सुवर्ण बन जाये।
दूसरे ने ऋषि याज्ञवल्क्य की तरह यज्ञ विज्ञान की टूटी हुई कड़ियों को फिर से खोजने व जोड़ने की प्रतिज्ञा की।
तीसरे ने ऋषि चरक की तरह वनौषधियों की उपयोगिता को फिर से मुर्तियां करने की जिम्मेदारी उठाई।
चौथे ने तीर्थों की आरण्यक परंपरा से संबंधित सभी प्रचलनों को कार्यान्वित करने का निश्चय किया।
पांचवें ने ज्योतिर्विज्ञान के आधार पर अन्तर्ग्रही प्रभावों के साथ तालमेल बिठाने का पुरूषार्थ नये सिरे से कार्य करने का निश्चय किया।
छठे ने शब्दशक्ति – मन्त्र विज्ञान के रहस्यों को प्रत्यक्ष करने की ठानी।
सातवें ने आस्था संकट का निवारण करने के लिए तर्कों, तथ्यों व प्रमाणों के सहारे जनमानस का परिष्कार करने की प्रतिज्ञा की।
अवसान/ पतन/ पराभव का रोना रोने अर्थात् आरोप प्रत्यारोप करने से समाधान प्राप्त नहीं होते वरन् विग्रह ही बढ़ता है। अवसान के बाद अभ्युदय भी सनातन सत्य है। वीर-धीर पुरूषार्थी, समस्या के मूल/ कारण में जाते हैं और उन कारणों को दूर करने में स्वयं को नियोजित अर्थात् महान पुरूषार्थ करते हैं।
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो ….. सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो, तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं ….।
भारतीय संस्कृति – सादा जीवन उच्च विचार। बाह्याभ्यन्तरः शुचि – अंतरंग परिष्कृत व बहिरंग सुव्यवस्थित।
क्रियात्मक कर्मकांड में बहुत सारी चीज़ें युगानुकुल स्वरूप शामिल की जाती हैं। अतः समय समय पर युग के प्रवाह के अनुरूप इनमें बदलाव की जरूरत होती है। और ये तब संभव बन पड़ता है जब कर्मकांड का प्राण, चेतनात्मक ज्ञान का प्रकाश अर्थात् अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित रहे @ हम परंपरा की जगह विवेक को महत्व दें। हम ऋषि संतति हैं अतः शोधार्थियों द्वारा शोध कार्य निरंतर जारी रहनी चाहिए।
पातंजलि योग परंपरा, याज्ञवल्कीय यज्ञ विज्ञान, चरक चिकित्सा विज्ञान, तीर्थ आरण्यक परंपरा, ज्योतिर्विज्ञान, मन्त्र विज्ञान के पुनरूत्थान व आस्था संकट के निवारण हेतु @ ऋषि परंपरा के पुनर्जीवन हेतु वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, महाप्राज्ञ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का प्रज्ञा अभियान:-
१. ऋषि परशुराम – दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन व सत्प्रवृत्ति संवर्धन।
२. ऋषि भगीरथ – तप से ज्ञान गंगा का प्रादुर्भाव।
३. ऋषि चरक – वांग्मय संख्या ४० & ४१ औषधीय चिकित्सा व आयुर्वेद का प्राण – वनौषधियों का ज्ञान-विज्ञान।
४. ऋषि व्यास – वेद, उपनिषद्, संपूर्ण आर्ष वैदिक ग्रंथों का भाष्य एवं युग गीता के रूप में प्रज्ञोपनिषद्।
५. ऋषि पतंजलि – प्रज्ञा योग, प्राणाकर्षण प्राणायाम …. @ गायत्री पंचकोशी साधना।
६. ऋषि याज्ञवल्क्य – युगानुकुल यज्ञीय ज्ञान विज्ञान।
७. ऋषि विश्वामित्र – महान तप से गायत्री मंत्र को सर्वसुलभ अर्थात् सर्वग्राह्य बनाया।
८. देवर्षि नारद – परिव्राजकों के रूप में प्रज्ञा पुत्र व पुत्रियों का वैश्विक भ्रमण।
९. ऋषि वशिष्ठ – धर्मतन्त्र के द्वारा राजतंत्र का मार्गदर्शन @ भौतिकी पर आत्मिकी का नियंत्रण।
१०. आदि शंकराचार्य – योग्य प्रशिक्षकों द्वारा प्रशिक्षण हेतु शक्तिपीठों की स्थापना।
११. ऋषि पिप्पलाद – कल्प साधना।
१२. ऋषि कणाद का परमाणु सिद्धांत – आत्मभौतिकी @ वैज्ञानिक अध्यात्मवाद।
१३. महात्मा बुद्ध – बौद्धिक क्रांति। बुद्ध का उत्तरार्द्ध प्रज्ञावतार।
१४. ऋषि आर्यभट्ट – ज्योतिर्विज्ञान। ग्रह नक्षत्र विज्ञान। यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे।
प्रश्नोत्तरी सेशन
गुप्त नवरात्रि सत्र में गुप्त का अर्थ शरीर के चक्र उपचक्रों @ पंचकोश में अनंत ऋद्धि सिद्धि सुषुप्त अवस्था (गुप्त) में हैं। प्राण का जागरण महान जागरण है। गुप्त नवरात्रि साधना में सावित्री कुण्डलिनी तंत्र – कुण्डलिनी जागरण साधना का अभ्यास करते हैं।
संकल्प शक्ति से प्राण के क्षरण को रोककर प्राण का संवर्धन, अभिवर्धन किया जा सकता है। संकल्प-सिद्धि हेतु – श्रद्धा (आस्था/विश्वास), जिज्ञासा (योग्यता/प्रज्ञा), जुनून (तन्मयता/ मनोयोग/निष्ठा), योजनाबद्ध क्रियान्वयन (श्रमशीलता) की आवश्यकता है।
क्रोध, good use का माध्यम बने तो मन्यु और misuse तो क्रोधी व्यक्ति मरे के सामान।
शांत अंतःकरण से की गई duties बंधन का कारण नहीं बनते हैं
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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