Prana Samvardhan Hetu Bandh Evam Mudra Vigyan
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 19 June 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: प्राण संवर्द्धन हेतु बन्ध एवं मुद्रा विज्ञान
Broadcasting: आ॰ अमन जी
योगाचार्य श्री लोकेश चौधरी जी (चित्तौड़गढ़, राजस्थान)
पंचकोशी साधना में एक एक कोश के शिक्षण को सेमेस्टर वाइज रखी गई है। पांचों कोश के क्रियायोग का अभ्यास एक साथ चलते हैं। तात्पर्य यह है कि प्राणमय कोश में प्रवेश लेने को इस अर्थ में ना लें की अन्नमय कोश के अभ्यास को तरजीह ना दी जाएं। अभ्यास में परिपक्वता रिद्धि सिद्धि @ उपलब्धि के रूप में परिलक्षित होती है। 19 पंचकोशी क्रियायोग में हर एक कोश से जिनके अभ्यास में सहजता हो उनका चुनाव करके नित्य नियमित संतुलित अभ्यास को प्राथमिकता दी जा सकती है।
उड्यानं मूलबंधश्च बंधो जालंधराभिश्च:।। करणी विपरीताख्या वज्रोली शक्तिशालनम। इंद हि मुद्रादशकं जराभरणनाशनम।। भावार्थ – महामुद्रा, महाबंध, महावेधश्च, खेचरी, उड्डीयान बंध, मूलबंध, जालंधर बंध, विपरीत करणी, वज्रोली, शक्ति, चालन- ये दस मुद्राएं जराकरण को नष्ट करने वाली एवं दिव्य ऐश्वर्यों को प्रदान करने वाली हैं।
During practice सहज, सजग व शांत रहें। क्रिया, ध्यान परक/ भाव परक हों। “क्रिया + भावना = क्रियायोग” अर्थात् इसमें “स्थूल, सूक्ष्म व कारण” तीन शरीरों का involvement होता है। तीनों शरीर को साधने का नाम ‘साधना’ है।
Demonstration
बन्ध – मूल बन्ध, उड्डियान बन्ध, जालन्धर बन्ध व महाबन्ध।
मुद्रा – वज्रोली मुद्रा व खेचरी मुद्रा।
मनुष्य एक भटका हुआ देवता @ मनुष्य अपनी वास्तविक पहचान “मैं कौन हूं?” से दूर होना भटकाव @ विक्षोभ का मूल कारण है।
गुरूदेव कहते हैं मानव शरीर को पाना ही पर्याप्त नहीं प्रत्युत् मानवीय अंतःकरण के धारक बनें तो बात बने।
Blood में Sugar का level up होना अर्थात् Diabetes रोग में मिष्ठान्न, अस्त व्यस्त तनावग्रस्त जीवन अर्थात् असंतुलित आहार विहार से बचने को प्राथमिकता दी जा सकती है।
पैंक्रियाज में इन्सुलिन का पर्याप्त मात्रा में generate नहीं होना blood में Sugar की मात्रा को बढ़ा देता है। क्रियायोग जैसे आसन, प्राणायाम, बन्ध व मुद्रा आदि में प्राणाकर्षण का भाव के साथ निरोगिता को पाया जा सकता है।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
पंचकोशी क्रियायोग में जिसमें आपकी सहजता बन पा रही हो और आपको लाभ मिल रहे हों उसकी continuity बनाये रखी जा सकती है। चिंतन की धारा को उलट देना भी ‘शीर्षासन’ @ विपरीतकर्णी मुद्रा है। स्थितप्रज्ञता @ साक्षी भाव में रहना भी खेचरी मुद्रा है। चिंतन @ भाव पक्ष परिष्कृत होते जाने के बाद क्रिया पक्ष अल्प और भाव पक्ष का आयाम विस्तृत होता जाता है।
‘आहार‘ में – ‘ऋतभोक्, मितभोक् व हितभोक्‘ का ध्यान रखा जा सकता है। सादा भोजन – उच्च विचार। संतुलित स्निग्ध सुपाच्य भोजन सर्वसाधारण के लिए अनुकूल रहता है। श्रमशीलता भी पाचन शक्ति में अभिवृद्धि करती हैं, immunity को बढ़ाती हैं।
‘वज्र‘ अपनी शक्ति व सामर्थ्य के लिए जाने जाते हैं। वज्रोली मुद्रा व वज्रासन के अभ्यास से शारीरिक बल व सामर्थ्य में अभिवृद्धि की जा सकती है। हर एक नामकरण के पीछे एक अर्थ सन्निहित होता है। सार्थक प्रयासों से सकारात्मकता में अभिवृद्धि की जा सकती है।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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