Pranagni Ka Prajwalan Kundalini Jagran Se
गुप्त नवरात्रि साधना सत्र _ Aatmanusandhan – Online Global Class – 01 July 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: प्राणाग्नि का प्रज्वलन कुण्डलिनी जागरण साधना से
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
दो गुप्त नवरात्रि साधना:-
1. माघ शुक्ल पक्ष (प्रथमा से दशमी तक) एवं
2. अषाढ़ शुक्ल पक्ष (प्रथमा से दशमी तक)
गुप्त नवरात्रि साधना कुण्डलिनी जागरण साधना हेतु है । इसका उद्देश्य द्वैत भाव से अद्वैत की ओर यात्रा है । प्राण ही प्रकृति है । सब प्राण का पसारा है (गायत्री वा इदं सर्वं) ।
ससीम – जीव भाव (बंधन) व असीम – शिव भाव (मुक्ति) ।
व्यष्टि कुण्डलिनी – जीव शरीर में स्थित प्राण विद्युत शक्ति, समष्टि कुण्डलिनी – विश्व व्यापार जननी ।
“यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे ।” शरीर में स्थित शक्ति केन्द्र चक्र उपचक्रों के रूप में परिभाषित किये गये हैं । यहां (प्राण) विद्युत शक्ति coil के रूप में हैं । इन्हें जाग्रत करने हेतु ‘साधना’ की जाती है ।
कुण्डलिनी जागरण से प्राप्त शक्ति को शिव (कल्याण) भाव से प्रयोग में लाया जाए (आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय वातावरण परिष्काराये) ।
सही अथवा गलत @ उत्कृष्ट/ निकृष्ट सापेक्षता के सिद्धांत अपरा प्रकृति में चलते हैं । अंतर्जगत में अद्वैत भाव की यात्रा है । योगी जन सार्वभौम peace and bliss को केन्द्र में रखकर सुषुम्ना (साक्षी) भाव में जीते हैं ।
जिज्ञासा समाधान
षट्चक्र बेधन का अर्थ चक्र में फंसे कचड़ा की cleaning और दबी विद्युत शक्ति (प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि आत्माग्नि व ब्रह्माग्नि) के जागरण से healing की जाती है ।
मूलाधार व सहस्रार चक्र के महामिलन से द्वैतभाव का रूपांतरण अद्वैत में होता है ।
चक्रों में प्रसुप्त कुण्डलिनी शक्ति के जागरण में संयम शक्ति (तपोयोग) की भूमिका महत्वपूर्ण है ।
इन्द्रिय संयम/ शक्ति में जीभ (रसना + वाक् शक्ति) व जननांग (काम शक्ति) पर नियंत्रण महत्वपूर्ण हैं ।
गुप्त नवरात्रि साधना में गुप्त अर्थ को अदृश्य (सुक्ष्म) अर्थ में ले सकते हैं । इसका उद्देश्य जीवनशैली में infinite peace and bliss को लाने वाली क्रियाओं (क्रियायोग) का समावेश है ।
‘क्रिया‘ के साथ ‘भावना‘ (आकांक्षा/ विचारणा) के ‘योग’ (मिलन) से ‘क्रियायोग’ बन जाते हैं जिससे कुण्डलिनी जागरण संभव बन पड़ता है ।
‘क्रिया’ की faculty (ज्ञानयोग/ कर्मयोग/ भक्तियोग) का चुनाव स्व रूचि (self-interest) से लिया जा सकता है ।
क्षेत्र व उम्र (वर्णाश्रम) ‘आत्मानुसंधान’ में बाधक नहीं बनते हैं । जब जागो तभी सवेरा । @ ऋषि मुनि यति तपस्वी योगी आर्त अर्थी चिंतित भोगी । जो जो शरण तुम्हारी आवें सो सो मनोवांछित फल पावें ।
ब्रह्मवेत्ता गुरू के सान्निध्य में समर्पित शिष्य (सजल श्रद्धा प्रखर प्रज्ञा निष्ठावान) की प्रगति तीव्र होती है ।
हमारी प्राण शक्ति के flow को हम कुछ parameters पर measure कर सकते हैं:-
1. उर्ध्वगामी – आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय वातावरण परिष्काराये @ good use.
2. निम्नगामी – नरपशु नरपिशाच @ misuse.
आत्मनियंत्रण/ संयम की कुण्डलिनी जागरण में भूमिका अहम है ।
सर्वप्रथम हमें गायत्री पंचकोश साधना से ‘पंचाग्नि’ प्रज्वलित कर लेनी चाहिए । then कुण्डलिनी जागरण साधना पथ पर अग्रसर हों । @ आत्मसत्ता का नियंत्रण पदार्थ जगत पर हो (अध्यात्म) ।
संयम व संकल्प शक्ति (cleaning + healing @ गलाई + ढलाई @ तपोयोग) ।
लंकादहन (तप) व रामराज्य की स्थापना (योग) साथ साथ चलने वाली विधा है @ एक दूसरे के पूरक/ सहयोगी हैं ।
केवल क्रियाविधि में फंसना ‘ग्रन्थि’ का कारण बन सकती है । अतः विज्ञानमयकोश में ग्रन्थि भेदन (त्रिगुणात्मक संतुलन) की कला सिखाई जाती है । हमारी साधना उद्देश्य/ लक्ष्य परक (आत्मवत् सर्वभूतेषु व वसुधैव कुटुंबकम्) होनी चाहिए ।
हमें अपनी प्रकृति/ रूचि/ मनोयोग का ध्यान रखना चाहिए । श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा @ ज्ञान, कर्म व भक्ति @ त्रिपदा गायत्री की उपासना, साधना व अराधना ।
वर्णाश्रम आत्मानुसंधान में बाधक नहीं है । जीवन के दो महान लक्ष्य/ उद्देश्य:-
1. मैं क्या हूं ? (आत्मबोध – गायत्री साधना)
2. धरा को स्वर्ग बनाना (तत्त्वबोध – सावित्री साधना)
आत्मविश्वास व आत्मबल के धनी @ हर हाल मस्त व्यक्तित्व ‘आस्तिक’ कहे जाते हैं ।
Creativity (भारतीय संस्कृति) को छोड़कर copy & paste (पिछलग्गू) बनने से हमारा गौरव (विश्वगुरू व सोने की चीड़ियां) अक्षुण्ण ना रहा ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
No Comments