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Pranagni Ka Prajwalan Kundalini Shakti Se

Pranagni Ka Prajwalan Kundalini Shakti Se

प्राणाग्नि का प्रज्वलन कुण्डलिनी शक्ति से

(गुप्त नवरात्रि साधना सत्र) _ Aatmanusandhan –  Online Global Class – 02 July 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: प्राणाग्नि का प्रज्वलन कुण्डलिनी शक्ति से

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

शरीर एक चलता फिरता बिजली घर । शारीरिक बिजली (प्राण विद्युत) – व्यष्टि कुण्डलिनी; विश्वव्यापी बिजली (महाप्राण) – समष्टि कुण्डलिनी ।

वरेण्यं – सकारात्मकता @ प्रिय – अप्रिय, मान – अपमान, अनुकूल – प्रतिकूल आदि में सम भाव (समता) में जीना । “वासना + तृष्णा + अहंता = उद्विग्नता” शांत होने के लिए हमें सार्वभौम ज्ञानयुक्त अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता से सायुज्यता (acceptence @ unconditional love @ आत्मीयता) बनानी है ।
(योगतत्व उपनिषद्) प्रत्याहार – जहां जहां (शब्द, रुप, रस, गंध व स्पर्श) सुनें, देखें, महसूस करें, समझें – वहां वहां दिव्य दर्शन ईश्वरीय दर्शन (अशब्दं अरूपं अव्ययं .. जगद्वा सकलं शुन्यं व्योमं समं सदा) @ हम ईश्वर को सर्वव्यापी न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे

चक्र (मेरूदण्ड – देवयान मार्ग):-
1. मूलाधार चक्र (अपान + कूर्म)
2. स्वाधिष्ठान चक्र
3. मणिपुर चक्र (समान + कृकल)
4. अनाहत चक्र (प्राण + नाग)
5. विशुद्धि चक्र (उदान + देवदत्त)
6. आज्ञा चक्र (व्यान + धनंजय)
7. सहस्रार चक्र

सत् – ज्ञान पक्ष, तम – ऊर्जा पक्ष व रज – सत् व‌ तम की मिश्रित धारा ।

मनोमयकोश साधना के 4 क्रियायोग (ध्यान, जप, त्राटक व तन्मात्रा साधना)  में तन्मात्रा साधना आत्मस्थित रखने में महत्वपूर्ण हैं ।

विज्ञानमयकोश परिष्कृत साधक कुण्डलिनी जागरण में स्वयं को नियोजित कर सकते हैं ।

Practical Session (Demonstration) – कुण्डलिनी जागरण ~ स्थिर शरीर, शांत चित्त, मन शांत, पंचकोश ध्यान with प्राणाकर्षण, अवरोहण (उपर से नीचे – cleaning), प्राणन अपानन‌,  मूलाधार चक्र पर केंचुकी (contract – relax), आरोहण (नीचे से ऊपर – healing) etc. ।

जिज्ञासा समाधान

चक्र उपचक्र को यंत्रों अथवा बाह्य नेत्रों से देखना संभव नहीं है । इसे अंतः चक्षु (ज्ञान के नेत्रों) से ध्यानात्मक देखा जा सकता है । यह अप्रत्यक्ष सत्ता (शक्ति केन्द्र) है जिसके जागरण से स्वयं को ऊर्जावान, क्रियावान, प्रज्ञावान, भावनाशील आत्मीयतापूर्ण @ ‘ओजस्वी + तेजस्वी + वर्चस्वी’ बनाया जा सकता है ।

आत्मसंयम (आत्मसमीक्षा + आत्मसुधार + आत्मनिर्माण + आत्मप्रगति) से ही मन को साधा जा सकता है ।
आत्मविजेता ही विश्वविजेता (संत, सुधारक व शहीद) होते हैं । आत्मनिर्माणी ही विश्वनिर्माणी होते हैं ।

मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्त्व प्रधान है । पृथ्वी तत्त्व से कर्मेंद्रियां (हाथ, पैर, मूंह, गुदा व‌ लिंग) बनी हैं । ये मैत्रीवत्  (friendly/ नियंत्रित) हैं तो मूलाधार चक्र जाग्रत है । पृथ्वी (earth) से हम मैत्रीवत् व्यवहार करते हैं तो मूलाधार चक्र जाग्रत है । धृति, धैर्य, क्षमाशीलता, पोषण, संरक्षण आदि पृथ्वी के गुण हममें हैं तो मूलाधार चक्र जाग्रत है… ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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