PRANAYAM (प्राणायाम)
🌕 𝐏𝐀𝐍𝐂𝐇𝐊𝐎𝐒𝐇 𝐒𝐀𝐃𝐇𝐍𝐀 ~ 𝐎𝐧𝐥𝐢𝐧𝐞 𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐂𝐥𝐚𝐬𝐬 – 20 𝐉𝐮𝐧𝐞 𝟐𝟎𝟐𝟎 (𝟓:𝟎𝟎 𝐚𝐦 𝐭𝐨 𝟔:𝟑𝟎 𝐚𝐦) – 𝗣𝗿𝗮𝗴𝘆𝗮𝗸𝘂𝗻𝗷 𝗦𝗮𝘀𝗮𝗿𝗮𝗺 – प्रशिक्षक 𝗦𝗵𝗿𝗲𝗲 𝗟𝗮𝗹 𝗕𝗶𝗵𝗮𝗿𝗶 𝗦𝗶𝗻𝗴𝗵 @ बाबूजी
🙏ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
📽 𝗣𝗹𝗲𝗮𝘀𝗲 𝗿𝗲𝗳𝗲𝗿 to 𝘁𝗵𝗲 recorded 𝘃𝗶𝗱𝗲𝗼.
📔 sᴜʙᴊᴇᴄᴛ. प्राणायाम पर वैज्ञानिक एवं यौगिक विश्लेषण
📡 𝗕𝗿𝗼𝗮𝗱𝗰𝗮𝘀𝘁𝗶𝗻𝗴. आ॰ अमन कुमार/आ॰ अंकुर सक्सेना जी
🌞 आ॰ अमन कुमार (गुरूग्राम, हरियाणा). Saturday की कक्षा में हर एक participant शिक्षक की भूमिका निभा सकते हैं और अपने अनुभवों से सभी को लाभान्वित|
🌸 युगऋषि प्राण को अर्द्ध चैतन्य की संज्ञा दी है| प्राण ही पूर्ण चैतन्य आत्मा को शरीर से जोड़ के रखता है| प्राणवान व्यक्ति ही विभूतिवान होते हैं| प्राण के:-
👉 वर्ग – ‘विचार, संकल्प व भावना’
👉 वर्ण – ‘सत, तम व रज’
👉 संवर्धन के उपाय – प्राणायाम, बंध व मुद्रा
🌸 साधना के प्रभाव से प्राण तत्व:-
👉 ‘ओजस्’ (शारीरिक स्वस्थता)
👉 मनस्तत्व ‘तेजस्’ (मानसिक तेजस्विता) और
👉 आत्म-तत्व वर्चस् (आत्मिक पवित्रता) के रूप में प्रकट होता है।
🌸 प्राणायाम के दौरान ध्यान रखने वाले तथ्य :-
१. हमें पूरी और गहरी सांस लेनी चाहिए। छाती को फुलाना चाहिए इससे फेफड़े और अवयवों को विकास के लिए काफी सहायता मिल जाती है।
२. नाक से सांस लेवें – नाक से सांस लेने से वायु में मिले स्थूल गन्दगी के कण नाक के छोटे-छोटे बालों में रुक जाते हैं। चेचक की बीमारी व जुकाम आदि से पीड़ित रहने वाले अधिकांश मुंह से सांस लेने वाले लोग होते हैं।
🌸 प्राणाकर्षण प्राणायाम. सर्वप्रथम फेफड़ों में भरी हुई सारी हवा बाहर निकालें| क्रिया व भावना:-
👉 अब धीरे-धीरे नाक द्वारा साँस लें व जितना हो सके सहजता से फेफड़ों में भर लीजिए @ पूरक
पूरक करते समय यह भावना करनी चाहिए कि ~ मैं जनशून्य लोक में अकेला बैठा हूँ मेरे चारों ओर चैतन्य विद्युत प्रवाह जैसी जीवनी शक्ति का समुद्र लहरें ले रहा है। साँस द्वारा वायु के साथ साथ उस प्राण शक्ति को मैं अपने अन्दर खींच रहा हूँ।
👉 अब कुछ देर उसे भीतर ही रोके रहिए @ अंतःकुंभक
अंतःकुंभक करते समय यह भावना करनी चाहिए कि उस चैतन्य प्राण शक्ति को मैं अपने भीतर भरे हूँ। समस्त नस नाड़ियों में, अंग प्रत्यंगों में वह शक्ति जज्ब हो रही है। उसे सोख कर देह का रोम रोम चैतन्य प्रफुल्ल, सतेज एवं परिपुष्ट हो रहा है।
👉 इसके पश्चात साँस को धीरे- धीरे नाक से बाहर छोड़ें; हवा को जितना अधिक खाली कर सकें कीजिए @ रेचक
रेचक करते समय यह भावना करनी चाहिए कि शरीर में संचित मल, रक्त में मिले हुए विष, मन में घुसे हुए विकार, साँस छोड़ने पर वायु के साथ साथ बाहर निकले जा रहे हैं।
👉 अब कुछ देर साँस को बाहर ही रोक दीजिए @ बाह्य कुंभक
बाह्य कुँभक करते समय यह भावना करनी चाहिए कि अन्दर के दोष साँस द्वारा बाहर निकाल कर भीतर का दरवाजा बन्द कर दिया गया है ताकि वे विकार वापिस लौटने न पावें।
👉 रेचक और पूरक में समय बराबर लगाना चाहिए पर कुँभक में उसका आधा समय ही पर्याप्त है।
इन भावनाओं के साथ प्राणाकर्षण प्राणायाम करने चाहिए। आरम्भ में 5 प्राणायाम करें फिर क्रमशः सुविधानुसार बढ़ाते जावें।
🌸 नाड़ीशोधन प्राणायाम.
👉 दायें नाक के छिद्र को बन्द रखें। बांए से साँस खींचे और धीरे−धीरे नाभि चक्र तक ले जायें।
ध्यान – नाभि स्थान में पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्रमा के समान पीतवर्ण शीतल प्रकाश विद्यमान है। खींचा हुआ साँस उसे स्पर्श कर रहा है।
जितने समय में साँस खींचा गया था उतने ही समय तक भीतर रोकें और ध्यान करते रहें कि नाभि चक्र में स्थित पूर्णचन्द्र के प्रकाश को खींचा हुआ श्वास स्पर्श करके उसे शीतल और प्रकाशवान बना रहा है।
जिस नाक से खींचा था, उसी बाँए छिद्र से ही बाहर निकाले और ध्यान करें कि नाभि चक्र के चन्द्रमा को छूकर वापिस लौटने वाली प्रकाशवान एवं शीतल वायु इड़ा नाड़ी की छिद्र नलियों को शीतल एवं प्रकाशवान बनाती हुई वापिस लौट रही है। साँस छोड़ने की गति अत्यन्त धीमी हो। कुछ देर साँस बाहर रोकिए बिना श्वास के रहें।
💡 बांए से ही इस क्रिया को तीन बार दुहराएँ।
👉 जिस प्रकार बायीं नाक से पूरक, अंत: कुम्भ व रेचक एवं बाह्य कुम्भक किया था ठीक उसी प्रकार दाहिने नाक से भी करें।
नाभि चक्र में चन्द्रमा के स्थान पर सूर्य का ध्यान कीजिए तथा साँस छोड़ते समय भावना कीजिए कि नाभि स्थित सूर्य को छूकर वापिस लौटने वाली वायु श्वास नली के भीतर ऊष्णता और प्रकाश उत्पन्न करती हुई लौट रही है। बायीं नाक के छिद्र को बन्द रखकर दाहिने से भी क्रिया को तीन बार करें।
👉 अब नाक के दोनों छिद्र खोल दीजिए। दोनों से सहज क्रम में लम्बा श्वास खींचिए और थोड़ी देर भीतर रोक कर तथा मुँह खोलकर साँस बाहर निकाल दीजिए। यह क्रिया मात्र एक बार ही करनी चाहिए।
👉 इस तरह तीन बार बाँये नाक से साँस लेते और छोड़ते हुए नाभि चक्र में चन्द्रमा का शीतल ध्यान, तीन बार दायें नाक से साँस खींचते−छोड़ते हुए सूर्य का उष्ण प्रकाश का ध्यान, एक बार दोनों नासिका छिद्रों से साँस खींचते हुए मुख से साँस निकालने की क्रिया, इन सबसे मिलकर एक पूर्ण नाड़ी शोधन प्राणायाम बनता है। आरम्भ ३ प्राणायाम से करना चाहिए, फिर धीरे धीरे १० तक इसकी संख्या पहुँचायी जा सकती है।
प्राणाकर्षण भाव से नाड़ीशोधन की प्रक्रिया आ० भैया जी ने समझायी है|
🌸 सोऽहम् प्राणायाम. ‘सोऽहम् साधना’ को ‘अजपा जाप’ अथवा प्राण गायत्री भी कहा गया है|
👉 श्वांस के शरीर में प्रवेश करते समय ‘स’ जैसी,
👉 सांस रुकने के तनिक से विराम समय में ‘ो’ जैसी और
👉 बाहर निकलते समय ‘‘हं’’ जैसी अत्यन्त सूक्ष्म ध्वनि होती रहती है।
🙏 जीव भाव का शिव भाव में रूपांतरण की विधा आ० भैया जी ने समझाया है|
🌸 सूर्यभेदन प्राणायाम. कुण्डलिनी जागरण में सूर्यभेदन प्राणायाम की प्रमुखता है।
💐 अनुभव शेयरिंग
🌞 आ० रूपा दीदी ने पंचकोश साधना व क्रियायोग के नियमित अभ्यास से समग्र स्वास्थ्य को पाया है एवं जीवन में चहुमुखी विकास का क्रम जारी है|
🌞 𝗤 & 𝗔 𝘄𝗶𝘁𝗵 𝗦𝗵𝗿𝗶 𝗟𝗕 𝗦𝗶𝗻𝗴𝗵
🙏 कुंभक के अभ्यास में अपनी सहजता का ध्यान रखें| योग चूड़ामणि उपनिषद् में:-
युक्तं युक्तं त्यजेद्वायुं युक्तं युक्तं प्रपूरयेत्| युक्तं युक्तं प्रबध्नीयादेवं सिद्धिमवाप्नुयात् ||११९ ||
🙏 कपाल भाति प्राणायाम की जगह हम भस्रिका युक्त नाड़ीशोधन प्राणायाम का चुनाव कर सकते हैं|
🙏 प्राण को willpower (संकल्प) से समझें यह जितना मजबूत होगा उतना ही प्राण हम खींच सकते हैं, धारण कर सकते हैं व विनियोग कर सकते हैं|
🙏 प्राणायाम क्रियायोग में संकल्प के साथ विचार व भावना की भूमिका महत्वपूर्ण है|
🙏 युगानुकूल साधनाक्रम में सहजता का ध्यान रखें| उलझें मत वरन् सुलझें अर्थात् योग हमारी सहजता में क्रमशः अभिवृद्धि करता है और अंततः साधक स्थितप्रज्ञ @ जीवनमुक्त हो जाता है|
🙏 क्रियायोग का अभ्यास धीरे धीरे बढ़ायें – सहजता से आगे बढ़ें|
🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||
🙏𝗪𝗿𝗶𝘁𝗲𝗿: 𝗩𝗶𝘀𝗵𝗻𝘂 𝗔𝗻𝗮𝗻𝗱 🕉
No Comments