Pranayam Ka Vagyanik Vivechan Evam Vividh Prakar
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 12 June 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
SUBJECT: प्राणायाम का वैज्ञानिक विवेचन एवं विविध प्रकार
Broadcasting: आ॰ अमन जी
आ॰ सुशील त्यागी जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
‘प्राणायाम‘ से हम सभी परिचित हैं। इसके अंतर्गत हम ‘प्राण’ को आयाम देते हैं। हालांकि यह Etheric Body के क्रियायोग अंतर्गत है, किंतु इसका प्रभाव संपूर्ण पंचकोश अनावरण में महती है। प्राण शक्ति से ऐश्वर्य, पुरूषार्थ, तेज और यश निश्चय ही बढ़ते हैं।
‘प्राण‘ समस्त भौतिक व आत्मिक संपदाओं का उद्गम केन्द्र है। जो जिस स्तर पर धारण करेंगे वो उस स्तर के बनते चले जाते हैं। ‘प्राण’ का पर्यायवाची ‘शक्ति’ है।
‘प्राण वायु‘ का तात्पर्य आक्सीजन, नाइट्रोजन आदि वायु विकारों से नहीं प्रत्युत् उस प्रवाह से है जिसकी गतिशील विद्युत तरंगों के रूप में भौतिक विज्ञानी चर्चा करते हैं। अणु विकिरण, ताप, प्रकाश आदि को शक्ति धाराओं के मूल में संव्याप्त सत्ता कहा जा सकता है।
प्राण तत्व एक है पर क्रियाशीलता के आधार पर यह मानव शरीर में 10 भागों में विभक्त माना गया है। 5 मुख्य प्राण – अपान, व्यान, उदान व समान व 5 लघु प्राण – देवदत्त, कृकल, कूर्म, नाग व धनंजय। Theory पक्ष http://literature.awgp.org/book/panch_pran_panch_dev/v2.5 स्वाध्याय किया जा सकता है।
कोरोना पैनेडेमिक में ‘प्राणायाम’ संजीवनी है। और इसके नियमित अभ्यास से हम अपने शरीर को कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव से बचा सकते हैं।
आ॰ शरद निगम जी (चित्तौड़गढ़, राजस्थान)
‘प्राण‘ के theory पक्ष पर स्वाध्याय किया जा सकता है – http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.69
‘प्राण‘ के नियंत्रण से ‘मन’ पर नियंत्रण संभव बन पड़ता है।
‘प्राणायाम‘ के 3 अंग/भाग हैं – पूरक, कुम्भक व रेचक। श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया में वायु को भीतर भरना – पुरक, वायु का निरोध अंदर व बाहर – कुम्भक व वायु का रेचन् (बाहर निकालने) की प्रक्रिया ‘रेचक’ है।
Demonstration
१. नाड़ी शोधन प्राणायाम।
२. भस्त्रिका युक्त नाड़ी शोधन प्राणायाम।
३. सूर्यभेदन प्राणायाम।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आ॰ सुशील त्यागी जी व आ॰ शरद निगम जी को हार्दिक आभार। दोनों शिक्षक साधकों की प्रगति के हम साक्षी हैं। सुशील भाई साहब ने गठिया जैसे रोग को योग साधना से निष्प्रभावी बनाया और आरोग्य को धारण किया। शरद निगम जी का ‘महामुद्रा + महाबंध + महावेध’ के अभ्यास पर अच्छा command है।
‘प्राणाकर्षण प्राणायाम‘ के अभ्यास से सभी प्रकार के प्राणायाम लाभ लिए जा सकते हैं। सृष्टि रचना में सर्वप्रथम ‘प्राण’ की उत्पत्ति हुई आगे सारे उसके घटक मात्र हैं। अतः प्राणायाम से प्राण के सभी घटकों का आवाहन, धारण व विनियोग किया जा सकता है।
Endocrine system & Autonomous System के healthy होने पर शरीर (स्थूल, सुक्ष्म व कारण) का निरोग होना निर्भर करता है। रोग केवल बाहरी कारकों से ही नहीं प्रत्युत् अंतः विकारों से भी उत्पन्न होते हैं। आत्मपरिष्कार की इस यात्रा में सरल सुलभ सहज पंचकोशी साधना का प्रभाव महती है।
प्राणवान साधक ही प्राणिक हीलर चिकित्सक की भूमिका में आ सकते हैं। जो पास में होगा वही दे पायेंगे।
दसों प्राण का master व्यान हैं। व्यान को श्रीकृष्ण की संज्ञा दी गई है।
पंचकोश के 19 क्रियायोग प्राणायाम हैं। अर्थात् प्राण के सभी घटकों के धारण, संवर्धन व विनियोग के महत्वपूर्ण साधन है। पंचाग्नि विद्या है। प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि, आत्माग्नि व ब्रह्माग्नि को प्रज्वलित दैदीप्यमान रखें। ‘क्रिया + भावना’ के योग से ‘क्रियायोग’ जीवंत होते हैं।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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