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Pranic Energy Embodied in Human Being

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प्राणसत्ता का कलेवर – यह काया पिंजर

Aatmanusandhan –  Online Global Class –  15 जनवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी

विषय: प्राणसत्ता का कलेवर – यह काया पिंजर

कुण्डलिनी साइंस की स्थूल, सुक्ष्म व कारण शरीर के एकीकरण (साम्यता/ तादात्म्यता (resonance) / सायुज्यता/ विलयन विसर्जन/ एकत्व/ अद्वैत) में important role है । इनमें सक्रियता,  विचारणा व भावना, निष्ठा – प्रज्ञा व श्रद्धा जैसी विभूतियां विद्यमान हैं । जिन्हें उभार व निखार कर हम क्षुद्र से महान एवं नर से नारायण बन सकते हैं । जीवन के 2 महान उद्देश्य:-
1. स्वयं को जानना पहचानना अनुभव करना
2. धरा को स्वर्ग बनाना (ज्ञानार्थ आएं सेवार्थ जाएं @ सेवा अस्माकं धर्मः @ service towards family,  society,  nation and the universe @ वसुधैव कुटुम्बकम)

तत्सवितुर्वरेण्यं – सत्यं शिवं सुन्दरं (श्रेष्ठता) का धारण (चिंतन चरित्र व व्यवहार में अवतरण) @ योग

भर्ग अर्थात् (परमात्म) शक्ति – दुष्प्रवृत्ति उन्मूलनाय @ तप । नवग्रह की भर्ग शक्तियां .. देव शक्तियों का समूह @ दिव्यता ।

पंचतत्त्वों से बनी यह काया विश्व ब्रह्माण्ड का सबसे विलक्षण शक्तिशाली पावरहाउस है ।

संसार में दुःख के तीन कारण:-
1. अज्ञान  (समाधान – ह्रीं @ सत् शक्ति)
2. अभाव (समाधान – श्रीं @ रज शक्ति)
3. अशक्ति (समाधान – क्लीं @ तम शक्ति)
गायत्री – त्रिपदा, आत्मिक मानसिक व सांसारिक तीनों प्रकार के सुख की साम्यता  अनासक्त (निष्काम/ unconditional/ infinite) ज्ञानयोग/ कर्मयोग/ भक्तियोग

जिज्ञासा समाधान

ध्यान (Meditation) – गहराई में जाने की विधा (depth mode)
धारणा (concentration), चित्त की स्थिति है । हमने कैसी विचारणा, भावना, आकांक्षा पाल रखी है । लक्ष्य – साक्षी भाव (विशुद्ध चित्)
समाधि – एकत्व/ अद्वैत
संयमध्यानधारणासमाधि ।”

अज्ञान रूपी अंधकार (पाप) का नाशक करने वाली शक्ति भर्ग शक्ति है ।

मुक्ति अर्थात् आत्मसत्ता का पदार्थ जगत पर नियंत्रण । पदार्थ जगत के toxins वासना, तृष्णा व अहंता (मोह, लोभ व अहंकार) मुक्त  सत्ता पर निष्प्रभावी @ free traveller pass for भुः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्यम् ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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