Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Pre-preparation for High Level Spritual Practice

Pre-preparation for High Level Spritual Practice

उच्चस्तरीय साधना हेतु पूर्व तैयारी

PANCHKOSH SADHNA –  Online Global Class – 17 April 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  आत्मानुसंधान मण्डल उच्चस्तरीय साधना हेतु पूर्व तैयारी

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

ICDES की सर्वोच्च faculty – आत्मानुसंधान मण्डल

आभावर्धक मंत्र – गायत्री महामंत्र । मानवी चुंबकत्व –  http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1982/January/v2.12

सुनसान के सहचर – http://literature.awgp.org/book/Companion_in_Solitude/v4.1

ऋषि – जो तपश्चर्या द्वारा काया का चेतनात्मक अनुसंधान (research) कर जनसमुदाय की प्रगति हेतु निष्कर्ष/ सुत्र देते ।
मुनि – जो ऋषि चिंतन/ निष्कर्ष/ सुत्रों का चिंतन मनन स्वाध्याय द्वारा जनमानस की परिष्कार में अहम भूमिका निभाते ।

मानव जीवन के दो महान उद्देश्य:-
1. मैं कौन हूं? @ बोधत्व (मनुष्य में देवत्व का अवतरण ।)
2. धरा पर स्वर्ग का अवतरण (वसुधैव कुटुंबकम् ।)

आद्य शक्ति के 2 पक्ष :-
1. ज्ञान (गायत्री) – आत्मपरिष्कार/ आत्मशोधन प्रधान @ चेतना, विचारणा, भावना, मान्यता एवं आकांक्षा ।  गायत्री पंचकोशी साधना से इस पक्ष को मजबूत बनाया जा सकता है ।

2. विज्ञान (सावित्री) – शारीरिक क्षमता व प्रकृति संपदा का विस्तार व सदुपयोग । कुण्डलिनी जागरण साधना से इस पक्ष को मजबूत बनाया जा सकता है ।

गुरूदेव कहते हैं “साधना में प्राण आ जाए तो कमाल हो जाए ।” साधना में प्राण हेतु कुण्डलिनी जागरण साधना ।

तंत्र विज्ञान (तंत्र साधना) – http://literature.awgp.org/book/savitri_kundilini_tantra/v1.10

आत्मानुसंधान मण्डल में प्रवेश हेतु पूर्व तैयारी:-
1. संकल्प बल का धनी (strong willpower) ।
2. प्राण बल का संवर्धन @ ब्रह्मवर्चस – प्राणाकर्षण प्राणायाम (प्राण का आकर्षण, संधारण व विनियोग) ।
3. साहस
4. संयम (वासना, तृष्णा व अहंता – शांत @ उद्विग्नता – शांत )
5. धैर्य @ धीर पुरुष
6. तत्परता
7. तन्मयता

प्रज्ञायोग = ज्ञानयोग + कर्मयोग + भक्तियोग । गायत्री त्रिपदा (ज्ञान, कर्म व भक्ति)  हैं । अतः गायत्री साधक में तीनों का समन्वय (उत्कृष्ट चिंतन + आदर्श चरित्र + शालीन व्यवहार) होता है अर्थात् मनसा वाचेण कर्मणा एकरूपता होती है ।

जिज्ञासा समाधान

स्थूल शरीर का सूर्य (हृदय) – नाभि चक्रसुक्ष्म शरीर का सूर्य (हृदय) – अनाहत चक्र (भाव संवेदनाएं) । कारण शरीर का सूर्य (हृदय) – सहस्रार चक्र (वसुधैव कुटुंबकम्) ।

निःस्वार्थ प्रेम (आत्मीयता) उद्विग्नता शांत हेतु सर्वोत्तम औषधि है । गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें ‘संयम, सेवा व सहिष्णुता‘ की साधना करनी होती है ।

जीवन साधना 24 घंटे की होती है । जीवन देवता – आत्मदेवता @ जीवन के देवता को आओ मिलकर संवारें । अन्नमयकोश व प्राणमयकोश अर्थात् matter & energy नियमों से बंधे हैं अतः साधना में नियमितता आवश्यक/ अनिवार्य । जीवन साधना की सर्वोच्च faculty भक्तियोग (सेवा) @ अराधना हेतु ओजस्वी (स्थूल शरीर – स्वस्थ), तेजस्वी (सुक्ष्म शरीर @ मन – स्वस्थ) व वर्चस्वी (कारण शरीर @ भावना – स्वस्थ @ निःस्वार्थ प्रेम @ आत्मीय) बनना होता है

गायत्री पंचकोश साधक (चरित्र, चिंतन व व्यवहार के धनी) हेतु कुण्डलिनी जागरण साधना निरापद (without side-effects) है

आत्मानुभूति, सकारात्मक (आत्मीय) होती है । विषयासक्त (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श के आकर्षण से आबद्ध) अनुभूति शाश्वत नहीं होती है । गुरू शिक्षण प्रशिक्षण से अनुभवों को नित नए आयाम दिए जा सकते हैं । बोधत्व उपरांत गुरू – शिष्य अलग अलग सत्ता (द्वैत) नहीं रहती प्रत्युत एक (अद्वैत) हो जाते हैं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

No Comments

Add your comment