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Purpose of Kundalini Awakening

Purpose of Kundalini Awakening

कुण्डलिनी साधना क्यों, किस प्रयोजन के लिए

Aatmanusandhan –  Online Global Class – 29 May 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  कुण्डलिनी साधना क्यों, किस प्रयोजन के लिए

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

अध्यात्म‘ का मुख्य उद्देश्य – आत्मसाक्षात्कार – ईश्वर साक्षात्कार @ अखंडानंद की प्राप्ति ।

बन्धन भाव (ससीम) – जीव; मुक्ति भाव (असीम) – शिव

मुख्यालय (Headquarter) – ईश्वर/ परब्रह्म/ परमात्मा । एकोऽहम बहुस्याम से all branches.

जीव चेतना (जीवात्मा) को बांधने वाली प्रवृत्ति ‘पाश्विक’ कहा जाता है । सर्पिणी कुण्डलिनी प्रसुप्तावस्था (जीव भाव – ससीम) में पड़ी है; इसे जगाने की प्रक्रिया कुण्डलिनी जागरण (शिव भाव – असीम) है ।

तन्मात्रा साधना के अभाव से मनोमय कोश जागृति में परेशानी होती है । ‘मन’ अशांत व्यथित (अशुद्ध) रहता है; अन्तर्द्वन्द में फंसा रहता है । 2 वर्ष ईमानदारी से साधना की जाए तो मनोमयकोश परिष्कृत/ जाग्रत/ अनावरण किया जा सकता है । 

अपनी जानकारी को लेकर किसी तरह का ‘अहंकार’ ना करें । अपने विचारों में बांधना ही mean mindedness कहलाती हैं । हम शिकायतें इसलिए करते हैं – “नाच ना जाने आंगन टेढ़ा” ।

अपने भीतर के ‘पंचकोश’ – 5 कुण्ड हैं जिसमें ‘पंचाग्नि’ (प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि, आत्माग्नि, ब्रह्माग्नि) प्रज्वलित कर नित्य पंच कुण्डीय यज्ञ किया जा सकता है ।

ऋषियों ने देखा कि स्वाध्याय, क्रियायोग, ईश्वर प्राणिधान आदि करने के बाद भी बात नहीं बन पा रही है । इसका क्या कारण है ? उन्होंने पाया की रीढ़ की हड्डी (देवयान मार्ग) में चक्रों में कचड़ा फंसा हुआ है उन्हें साफ कर दिया तो बात बन गई ।

संसार की परिवर्तनशीलता के झंझावातों को स्वयं पर प्रभावहीन बनाने हेतु अपनी immunity बढ़ानी होती है ।
‘साधक’ का सौभाग्य है कि वे अपनी विपरीत प्रकृति के लोगों के सान्निध्य में रहें ।  Doctor की सार्थकता patients के बीच रहने में हैं । During treatment, Doctors स्वयं को infections से बचने हेतु gloves, masks, gowns etc से cover लेते हैं । ठीक वैसे ही साधक अगर विधेयात्मक चिंतन से स्वयं को cover कर लें तो adversities से प्रभावित नहीं होंगे ।
‘साधना’ में theory पक्ष 10 नंबर का है और practical पक्ष 90 नंबर का है । इसलिए केवल जानकारी बघारने से उत्तीर्ण नहीं होंगे प्रत्युत् प्रायोगिक पक्ष में अच्छा प्रदर्शन करना होगा (तत्सवितुर्वरेण्यं) ।
कान व मूंह को बंद करना ‘मौन’ नहीं है प्रत्युत् साक्षी भाव में रहना (आत्मस्थित) ‘मौन’ है ।

गुरूदेव कहते हैं कि उन्हें गायत्री साधना के अतिरिक्त सावित्री साधना (पंचकोश जागरण + कुण्डलिनी जागरण) की आवश्यकता – लंबे समय तक ढूँढ तलाश करने पर भी चन्द्रगुप्त, शिवाजी, विवेकानन्द जैसे व्यक्तित्व नहीं मिलने के उपरांत पड़ी । प्रत्यक्ष कामों के लिए प्रत्यक्ष शरीर चाहिए । हालांकि उन्हें बीजरूप में शक्ति संजोए ऋषि सत्ताएं प्रज्ञा परिवार के रूप में हाथ लगीं हैं । पर वे भी एकाकी निस्सार ही थीं । यदि उन्हें दिशा ना दी गई होती तो वही शक्ति कहीं ध्वंसपरक गतिविधियों में लगी होती ‌।

‘कुण्डलिनी’ के 5 नाम:-
1. अन्नमयकोश में प्राणाग्नि
2. प्राणमयकोश में जीवाग्नि
3. मनोमयकोश में योगाग्नि
4. विज्ञानमयकोश में आत्माग्नि
5. आनंदमयकोश में ब्रह्माग्नि

कुण्डलिनी जागरण शरीरगत प्राणाग्नि का प्रज्वलन है । जननेन्द्रिय मूल की काम ऊर्जा को ब्रह्मरन्ध्र की ब्रह्म ऊर्जा में मेरूदण्ड मार्ग में अवस्थित छः चक्रों का वेधन करते हुए मिलाया जाता जाता है (शिव शक्ति का संयोग सम्मिलन) ।

शिव और शक्ति दोनों के गले सर्प लिपटे रहने का दार्शनिक पक्ष सर्पिणी कुण्डलिनी जागरण के रूप में समझा जा सकता है ।

षट्चक्र बेधन (कुण्डलिनी जागरण) के साथ जब पंच कोशों के जागरण की प्रक्रिया भी संपन्न होती है तो अनेक प्रकार के सृजन प्रयोजनों में उनका उपयोग होता है ।
प्राणाग्नि का उत्तेजन, कुण्डलिनी जागरण जब पंचकोशी साधना  – सावित्री साधना के समन्वित रूप में होता है तो उसका प्रभाव क्षेत्र अति विस्तृत हो जाता है ।

विधि विधान की जटिलता में जाने की जगह यह स्मरण रखें कि व्यक्ति का आन्तरिक विकास उसे इस स्थिति तक पहूंचा सकता  है कि वह अपना (आत्मनिर्माणी) ही नहीं अन्य असंख्यों का भी भला कर सके (विश्वनिर्माणी) ।

जिज्ञासा समाधान

विज्ञानमयकोश के साधक अर्थात् मनोमयकोश परिष्कृत साधक हेतु कुण्डलिनी जागरण सर्वथा निरापद है । छोटे छोटे गोल को achieve करते हुए आगे बढ़ा जा सकता है ।

परमेश्वर स्तुतिर्मौनम् । ईशानुशासन (आत्मानुशासन) में रहना ‘मौन’ है । परिवर्तनशील जगत में अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता से सायुज्यता स्थापित करना ‘मौन’ है ।

युग परिवर्तन का मूल मंत्र – “हम बदलेंगे – युग बदलेगा; हम सुधरेंगे – युग सुधरेगा ।”

हमारी इच्छाएं अगर आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय वातावरण परिष्काराये (आत्मनिर्माण + लोककल्याण) हों तो शुभेच्छा कहीं जाती है ।

साधक स्वयं के व्यक्तित्व (नरपशु, नरपिशाच, देवमानव/ महामानव) का आकलन कर पता कर सकते हैं कि – व्यष्टि कुण्डलिनी, प्रसुप्तावस्था (जीव भाव) में है अथवा जाग्रत (शिव भाव) । 

सोऽहं भाव से प्राणाकर्षण प्राणायाम, आत्मानुभूति योग, उपनिषद् स्वाध्याय – सत्संग आदि द्वारा old aged people भी साधना पथ के प्रायोगिक पक्ष को नित नए आयाम दे सकते हैं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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