Rishis Tapaswi Devata and Shrines existing in the Body
Aatmanusandhan – Online Global Class – 11 दिसंबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
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विषय: काय कलेवर में विद्यमान ऋषि, तपस्वी, देवता और तीर्थ
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे । जो कुछ इस विराट विश्व में है उसका छोटा रूप अपने भीतर बहुत ही सुव्यवस्थित रीति से सँजोया हुआ है ।
अपने भीतर सभी देवता, सभी दिव्य लोक, सभी सिद्ध पुरूष, सभी ऋषि , सभी तीर्थ, सभी सिद्धियां, तथा जो कुछ श्रेष्ठ उत्कृष्ट है उसके अंकूर यथा स्थान बोये , उगाए हुए मौजूद हैं ।
साधनाका प्रयोजन अपने भीतर की महानता को विकसित करना ही है ।
कुण्डलिनी जागरण की साधना पद्धति का प्रयोजन अपने भीतर के देव अंशोंको विकसित और परिपुष्ट बनाना है ।
Time management (समय संयम) – गुरूदेव कहते हैं कि ईश्वर प्रदत्त समय (धन) का दसवां हिस्सा भी आत्मसाधना में लगाए जाए तो अखंडानंद/ जीवनमुक्त हस्तगत किया जा सकता है ।
भक्तियोग = ज्ञानयोग + कर्मयोग ।
@ Application = Theory + Practical.
@ अराधना = उपासना + साधना ।
@ Realised = Approached + Digested.
@ सद्भावना = सद्ज्ञान + सत्कर्म ।
@ शालीन व्यवहार = उत्कृष्ट चिंतन + आदर्श चरित्र ।
@ सरस्वती = गायत्री + सावित्री ।
@ समग्र साधना = पंचकोश अनावरण + कुण्डलिनी जागरण ।
भावोहिविद्यते देव । श्रद्धा (प्राण/ शक्ति/ बल) से ही दिव्य ईश्वरीय अनुदानों का आकर्षण, आंतरिक शक्तियों का जागरण प्रस्फुटन व सदुपयोग संभव है ।
काय कलेवर में विद्यमान ऋषि तपस्वी देवता और तीर्थ – http://literature.awgp.org/book/kundlini_mahashakti_aur_uski_sansiddhi/v1.17
(ब्रह्मविद्योपनिषद्) ब्रह्मणो हृदयस्थानं कण्ठे विष्णुः समाश्रितः । तालुमध्ये स्थितो रुद्रो ललाटस्थो महेश्वरः ।। ब्रह्म का स्थान हृदय में है, विष्णु कण्ठ में निवास करते हैं, तालु में भगवान् रुद्र तथा ललाट (मस्तक) में महेश्वर स्थित हैं ॥
सप्त लोक – ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यं । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । ॐ आपोज्योतिर्सोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ ।
गायत्री महामंत्र (महामंत्र जितने जग माहीं कोऊ गायत्री सम नाहीं) के
theory को जाना समझा जाए (approached @ स्वाध्याय = अध्ययन + मनन चिंतन + निदिध्यासन @ उत्कृष्ट चिंतन),
practical – व्यक्तित्व में समाया (digested @ रचाना पचाना बसाना @ पंचकोश अनावरण + कुण्डलिनी जागरण @ आदर्श चरित्र),
applications @ वसुधैव कुटुम्बकम । @ सेवा अस्माकं धर्मः । (realised @ शालीन व्यवहार @ भक्तियोग @ अराधना @ अद्वैत) ।
जिज्ञासा समाधान
साधना में (श्रद्धा ) रूचि/ सहजता (intrest/ simplicity), (निष्ठा) नियमितता (regularity), (प्रज्ञा बुद्धि) सजगता (knowledge/ awareness) का समावेश हो । copy & paste @ नकल से ज्यादा प्रभावी research रहता है ।
शीर्षासन/ विपरीतकरणी मुद्रा के सहज सजग व नियमित अभ्यास से प्रगति बनती हैं ।
त्रिपदा गायत्री:-
1. ज्ञान @ उपासना (theory – approached),
2. कर्म @ साधना (practical – digested),
3. भक्ति @ अराधना (applications – realised) ।
शब्द तन्मात्रा साधना – अक्षमालिका उपनिषद् का स्वाध्याय । हर एक शब्द में उस अक्षर/ अविनाशी/ अपरिवर्तनशील सत्ता का बोधत्व/ बंधुत्व (वसुधैवकुटुम्बकम) @ सकारात्मकता/ सदुपयोग । आसक्ति (मान्यताएं) बाधक बनती हैं । आत्मीयता @ unconditional love सहयोगी हैं ।
औषधि अर्थात् निदान/ समाधान । आसन – वह स्थिति जिसमें शुद्धता/ जागरण/ संयम/ एकत्व/ सायुज्यता बनती है अर्थात् यह भी सहयोगी साधन/ समाधान है । पंचकोशी क्रियायोग/ साधन/ समाधान को पंच-औषधि व पंच-आसन समतुल्य समझा जा सकता है ।
(त्रिगुणात्मक) प्रकृति संसार के सभी जीवों का पोषण करती हैं । अपनी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक जीवनशैली को अपनाएं । (गायत्री स्मृति) गायत्री महामंत्र के ‘णि‘ अक्षर के संदेश को आत्मसात किया जा सकता है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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