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Sarswati Rahashyopnishad – 1

Sarswati Rahashyopnishad – 1

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Gupt Navratri Sadhna Satra (22 to 30 Jan 2023) –  Online Global Class –  29 जनवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी

विषय: सरस्वतीरहस्योपनिषद् – 1 (मंत्र सं॰ 1 -35)

सभी नवरात्रि (चैत्र नवरात्रि + अश्विन नवरात्री + माघ गुप्त नवरात्रि + अषाढ़ गुप्त नवरात्रि) दिव्य शक्ति धाराओं के साधना के अनुकूल होती हैं ।
माघ गुप्त नवरात्रि में सरस्वती साधना की जाती है ।

सार्वभौम धर्म के 10 लक्षण:-
1. सत्यविवेक
2. संयमकर्तव्य-पालन
3. अनुशासनअनुबंध
4. स्नेह सौजन्यपराक्रम
5. सहकारपरमार्थ

सत्सरस्वती बोधक है।
सद्भावना (वसुधैवकुटुम्बकम – सर्वखल्विदं ब्रह्म) रूपी सरसतासरस्वती
आत्म-परमात्म तत्त्व का सम्यक रूप से साक्षात्कार कराने वाली ज्ञान की देवी/ शक्ति – सरस्वती

आश्वलायन ऋषि  ने 10 ऋचाओं के साथ बीजमंत्र मिश्रित माँ सरस्वती के 10 श्लोकों के द्वारा नियमित उपासना, साधना व अराधना से प्राप्त की ।

दान से शोभायमान,  अन्न से पूर्ण संपन्न एवं स्तोताओं,  उपासना करने वालों को संरक्षण देने वाली माता सरस्वती देवी हम उपासकों को अन्नादि से संरक्षित करें ।।8।।

हम सभी के द्वारा यजनयोग्य माता सरस्वती देवी प्रकाशरूपी द्युलोक से नीचे आकर विशाल पर्वत के आकार सदृश मेघों के मध्य होती हुई हमारे यज्ञस्थल में पधारें । हमारे स्तुति गान से आनंदित होकर वे देवी इच्छानुसार हमारे समस्त आनंदप्रद स्तोत्रों का श्रवण करें ।।11।।
ज्ञानवान ही जीवित,  बलवान व धनवान हैं।

जो समस्त साधकों को पवित्र व परिष्कृत बनाने वाली हैं, जो अन्नादि से समर्थ एवं कर्मादि के द्वारा मिलने वाली धन के प्राप्ति में कारणस्वरूपा हैं, वे माता सरस्वती देवी हमारे यज्ञ में उपस्थित रहकर यज्ञकार्य को पूर्णता तक पहूँचानें में सहयोगी बनें ।।14।।

विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।  पात्रत्वाध्दनमाप्नोति धनाध्दर्मं ततः सुखम् ।।

जो सत्य व प्रिय वचन बोलने की प्रेरणा प्रदान करती हैं और उत्तम बुद्धि संपन्न क्रियाशील पुरूषों को उनका कर्तव्य-बोध कराती हुई सचेष्टकरती हैं, ऐसी उन माता सरस्वती देवी ने हम साधकों के इस यज्ञ को धारण किया है ।।17।।

(ज्ञान गंगा) नदी के रूप में प्रादुर्भूत हुई माता सरस्वती अपने प्रवाह रूपी कार्य के द्वारा अपने मे प्रवाहित जल राशि का परिचय कराती हैं, वे ही माता सरस्वती देवी अपने देवस्वरूप से सभी तरह के कर्तव्यपरक प्रज्ञा बुद्धि को जाग्रत करती हैं ।

वाणी:-
1. परा – आकांक्षा, इच्छा, निश्चय, प्रेरणा … अंतःकरण से निकलती है।
2. पश्यन्ती – मन से निकलती है मन से सुनता है ।
3. मध्यमा – भाव भंगिमा से कही जाती है ।
4. बैखरी – मुख से निकलती है कान से सुनी जाती है ।

हितकारी ज्ञान (सरस्वती) को केंद्र मानकर स्वतंत्रता पूर्वक विचार करें । कोई भी किसी का अंधानुकरण ना करें

ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचंड । शांति कांति जाग्रति प्रगति रचना शक्ति अखंड ।।

जिज्ञासा समाधान

ज्ञान (प्रकाश) का अभाव – अज्ञान (अंधकार । परिष्कृत दृष्टिकोण के धारक प्रज्ञावान व्यक्तित्व के लिए संसार में सबकुछ प्रिय/ आत्मीय है (वसुधैवकुटुम्बकम) वो आत्मस्थित होकर सभी तत्त्वों को due respect देते हैं ।

उपनिषद् में वर्णित बीज मंत्रों के स्तुति (चिंतन – मनन – मंथन – निदिध्यासन) हेतु अक्षमालिकोपनिषद् के स्वाध्याय को प्रथमिकता दी जा सकती है ।

(गायत्री हृदयम्) गायत्री को 3 नामों से पुकारा जाता है अर्थात् एक ही शक्ति के 3 नाम:-
1. आरंभिक अवस्था में ब्राह्मी गायत्री
2. मध्य अवस्था में सावित्री
3. अन्त अवस्था में सरस्वती (स + रस् + वती)

कल्याण हेतु किये गये हर एक कार्य यज्ञस्वरूप हैं । उद्देश्य महत्वपूर्ण है । प्रज्ञा का जागरण महान जागरण है आइए हम माता सरस्वती की स्तुति (उपासना + साधना + अराधना) करें … ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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