Shabd Brahm and Naad Brahm – 3
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 12 Sep 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
SUBJECT: शब्द ब्रह्म – नाद ब्रह्म (Practical) – 3
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
Practical स्वयं के उपर application है। Consciousness का कोई fixed or permanent anatomy नहीं होता है। हां! साधना का माध्यम @ साधन @ उपकरण – यह शरीर @ पंचकोश होता है।
पदार्थ जगत, आत्मसत्ता पर हावी हों तो बन्धनकारक। अगर आत्मसत्ता का नियंत्रण पदार्थ जगत पर हो तो ‘जीवन-मुक्त’।
गायत्री मंजरी:
गायत्री वेद मातास्ति साद्या शक्तिर्मता भुवि। जगतां जननी चैव तामुपासेऽहमेव हि ।।5।। गायत्री वेदमाता है, पृथ्वी पर वह आद्य शक्ति कहलाती है और वह ही संसार की माता है। मैं उसी की उपासना करता हूं।
नाद बिन्दु कलानां तु पूर्ण साधनया खलु । नन्वानन्दमयः कोशः साधके हि प्रबुध्यते ।।28।। नाद, बिन्दु और कला की पूर्ण साधना से साधक का आनन्दमय कोश जाग्रत होता है।
कठोपनिषद:
आत्मानँ रथितं विद्धि शरीरँ रथमेव तु । बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ॥1-III-3॥ आत्मा को रथी जानो और शरीर को रथ । बुद्धि को सारथी जानो और इस मन को लगाम ॥
इन्द्रियाणि हयानाहुर्विषयाँ स्तेषु गोचरान् । आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः ॥1-III-4॥ इन्द्रियाँ घोडों के सामान हैं । विषय उन घोड़ों के विचरने के मार्ग हैं । इन्द्रियों और मन के साथ युक्त हुआ वह आत्मा ही भोक्ता है । ऐसा ही मनीषी कहते हैं ॥
इन्द्रियेभ्यः परा ह्यर्था अर्थेभ्यश्च परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिर्बुद्धेरात्मा महान्परः ॥1-III-10॥ इन्द्रियों की अपेक्षा उनके विषय श्रेष्ठ हैं और विषयों से मन श्रेष्ठ है । मन से बुद्धि श्रेष्ठ है और बुद्धि से भी वह महान आत्मा (महत) श्रेष्ठ है ॥
यच्छेद्वाङ्मनसी प्राज्ञस्तद्यच्छेज्ज्ञान आत्मनि । ज्ञानमात्मनि महति नियच्छेत्तद्यच्छेच्छान्त आत्मनि ॥1-III-13॥ बुद्धिमान वाक् को मन में विलीन करे । मन को ज्ञानात्मा अर्थात बुद्धि में लय करे । ज्ञानात्मा बुद्धि को महत् में विलीन करे और महत्तत्व को उस शान्त आत्मा में लीन करे ॥
ब्रह्म को ‘नेति नेति’ कहा गया है। वो हमारे चिंतन से बाहर हैं। अनुभूति को पूर्णतया शब्दों में नहीं ढाला जा सकता है @ अध्यात्म – गूंगे की गुड़ की मिठास। ‘ज्ञान’ की सार्थकता उसकी अनुभूति में सन्निहित है।
सविता सर्वभूतानां सर्व भावश्च सूयते । स्रजनात्प्रेरणाच्चैव सविता तेनचोच्यते ।। समस्त प्राणियों को उत्पन्न करने वाला है और सर्व भावों का उत्पादक है । उत्पन्न करने से तथा प्रेरक होने से सविता नाम कहा गया है।
सर्वप्रथम प्राकृतिक और पुरुष के मिलन में (घड़ियाल पर हथौड़ी के चोट पर उत्पन्न होने वाले झनझनाहट की तरह) ॐकार जैसा ध्वनि प्रवाह (नाद) उत्पन्न हुआ। उसी के कारण ताप, प्रकाश व ध्वनि का आविर्भाव हुआ। तदुपरांत अनेक सुक्ष्म शक्तियां गतिशील हुई और उनकी हलचलों से विभिन्न शब्द होने लगे।
हर एक शब्द (प्रिय – अप्रिय) के मूल में ॐकार नाद की अनुभूति – शब्द ब्रह्म – नाद ब्रह्म साधना के practical में की जा सकती है।
शब्दयोग अर्थात् ज्ञानयोग – वाणी का सदुपयोग। अपने आप में शब्दयोग का अभिवर्धन – ईश्वर प्राणिधान, स्वाध्याय, सत्संग, चिंतन मनन द्वारा संभव बन पड़ती है।
Practical :
सोऽहं साधना @ हंस योग @ अजपा जाप – पंचकोश में प्राणाकर्षण भाव से cleaning and healing.
शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म साधना – ॐकार ध्वनि गुरूदेव की आवाज में।
जिज्ञासा समाधान
जीवन की समस्वरता – प्रकृति के सान्निध्य में, शांत वातावरण में मिलती है।
मानसिक उद्विग्नता – चिंता, भय, आशंका, निराशा, क्रोध, आवेश, ईर्ष्या, ललक, लिप्सा का कोलाहल मन-मस्तिष्क में निरंतर उद्विगनता पैदा करता रहता है। यह एकांत में भी शांति व संतोष को लभ्य नहीं होने देता।
आत्मस्थित साधक – २४ घण्टे (एकांत or भीड़, peace duty or field duty) ‘स्व’ में स्थित होने के कारण शांति व संतोष का अनुभव करते हैं। @ सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥ आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥1॥
सोऽहम साधना – प्राणायाम cum ध्यानात्मक @ भावनात्मक अभ्यास है। इसमें force नहीं लगाया जाता है प्रत्युत् स्वतः चलने वाली प्रक्रिया है। इसमें ध्यान की गहनता की ओर अग्रसर होने हेतु पंचकोश के toxins @ कचड़े को remove कर purify @ उज्जवल बनाना होता है।
जीवित कौन!? गुरूदेव कहते हैं जीवित वही जिनका:-
मस्तिष्क – ठण्डा (cool – शीतलता प्रधान @ चन्द्र नाड़ी)
रक्त – गरम (सक्रिय) (निष्ठा, श्रम शीलता @ उष्णता प्रधान @ सूर्य नाड़ी)
हृदय – भाव संवेदनाओं से ओतप्रोत (सज्जनता, उदारता, आत्मीयता @ श्रद्धा)
प्रतिभा – प्रखर (प्रज्ञावान @ सुषुम्ना स्थित)
आत्मसमीक्षा @ आत्मनिरीक्षण – ऋषि चिंतन के परिप्रेक्ष्य में की जा सकती है।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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