Skandopnishad – 1
PANCHKOSH SADHNA – Navratri Sadhna Special Online Global Class – 13 Oct 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: स्कन्दोपनिषद्-1
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
टीका वाचन: आ॰ किरण चावला जी (USA)
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह (बाबूजी)
परमपूज्य गुरुदेव वेदमूर्ति तपोनिष्ठ महाप्राज्ञ पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी ने 108 उपनिषद् के भाष्य क्रम में 3 खण्डों – ब्रह्म विद्या खण्ड, ज्ञान खण्ड व साधना खण्ड को रखा है।
‘मन‘ विषयों में गमन हेतु पंच ज्ञानेन्द्रियों (five senses) को माध्यम बनाता है।
गायत्री मंजरी – यस्तु योगीश्वरो ह्योतान् पंच कोशान्नु वेधते । स भवसागरं तीर्त्वा बन्धनेभ्यो विमुच्यते ।।15।। अर्थात् जो योगी इन पांच कोशों को बेधता है, वह भवसागर को पार कर बन्धनों से छूट जाता है ।।
कुण्डलिनी जागरण (अध्यात्मिक काम विज्ञान) में शिव व शक्ति (सहस्रार व मूलाधार) के मिलन को संभोग/ मैथुन की संज्ञा दी गई हैं । इस मिलन से 6 चक्र जागरण (कार्तिकेय जी का जन्म) एवं विवेक जागरण (गणेश जी का जन्म) होता है ।
उपनिषद् पाठ का अर्थ इसे केवल पढ़ने (होंठों के व्यायाम) तक सीमित नहीं है प्रत्युत् ‘अध्ययन + चिंतन मनन + निदिध्यासन’ तदनुरूप आचरण (व्यक्तित्व = गुण + कर्म + स्वभाव) अर्थात् पीने – जीने (approached – digested – realised) का क्रम है।
108 उपनिषद् में 108 तरीके से आत्म – परमात्म साक्षात्कार की विधा को समक्ष रखा गया है ।
शिव जी अपने पुत्र कार्तिकेय जी का शिक्षण कर रहे हैं:-
हे महादेव! आपकी लेश मात्र कृपा प्राप्त होने से मैं अच्युत (पतित या विचलित न होने वाला) विशिष्ट ज्ञान-पुञ्ज एवं शिव (कल्याणकारी) स्वरूप बन गया हूँ, इससे अधिक और क्या चाहिए? ॥1॥
जब साधक अपने पार्थिव स्वरूप को भूलकर अपने अन्त:करण का विकास करते हुए सबको अपने समान प्रकाशमान मानता है, तब उसका अपना अन्त:करण (मन,बुद्धि, चित्त, अहंकार) समाप्त होकर वहाँ एक मात्र परमेश्वर का अस्तित्व रहता है ॥2॥
मैं कौन हूं ? – मैं शरीर नहीं आत्मा हूं (अहं ब्रह्मांशोस्मि) । सोऽहम । यह संभव बन पड़ता है सुक्ष्मीकरण साधना (प्रतिप्रसवन) से ।
इससे अधिक क्या होगा कि मैं आत्मरूप में स्थित हूं और अजन्मा अनुभव करता हूं । इसके अतिरिक्त यह सम्पूर्ण जड़-जगत् स्वप्नवत् नाशवान् है ॥3॥
“ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या।”
जो जड़-चेतन सबका द्रष्टारूप है, वही अच्युत (अटल) और ज्ञान स्वरूप है, वही महादेव और वही महाहरि (महान् पापहारक) है ॥4॥
साक्षी चैतन्य । विष्णु एवं शिव भिन्न भिन्न नहीं प्रत्युत् एक ही हैं । स्वयं में साक्षी चैतन्य भाव के विकसन के लिए ‘आत्मानुभूति योग’ का अभ्यास प्रभावी है ।
वही सभी ज्योतियों की मूल ज्योति है, वही परमेश्वर है, परब्रह्म है, मैं भी वही हूं, इसमें संशय नहीं है ॥5॥
सोऽहम ।
जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवः । तुषेण बद्धो व्रीहिः स्यात्तुषाभावेन तण्डुलः॥६॥ अर्थात् जीव ही शिव है और शिव ही जीव है। वह जीव विशुद्ध शिव ही है। (जीव-शिव) उसी प्रकार है, जैसे धान का छिलका लगे रहने पर व्रीहि और छिलका दूर हो जाने पर उसे चावल कहा जाता है ॥6॥
शिव एवं जीव में अभेदता (no difference) । जीव – जीवत्व छोड़ने (छिलका / पंचकोश अनावरण) उपरांत शिव है। हम मिथ्याभिमान (मैं/ अहंकार/ स्थूलता) को छोड़ने का क्रम अपनाकर शिवत्व प्राप्त कर सकते हैं ।
इस प्रकार बन्धन में बँधा हुआ (चैतन्य तत्त्व) जीव होता है और वही (प्रारब्ध) कर्मों के नष्ट होने पर सदाशिव हो जाता है अथवा दूसरे शब्दों में पाश में बँधा जीव ‘जीव’ कहलाता है और पाशमुक्त हो जाने पर सदाशिव हो जाता है ॥7॥
मान्यताओं / मिथ्याभिमान / अविद्या आदि (40 चोर = 10 शूल + 6 विकार + 6 उर्मि + 6 भाव + 6 भ्रम + 5 कोश + द्वैत) से पाशमुक्त होने पर सदाशिव (अद्वैत) हो जाते हैं ।
जिज्ञासा समाधान
निरालंब का अर्थ एक ही आलंब परम तत्त्व परब्रह्म परमात्मा । उपासना, साधना व अराधना (समर्पण – विलय – विसर्जन) से पात्रता/ सहधर्मिता विकसित होती है । सुपात्र पर उनकी कृपा बनती है @ पाछे पाछे हरी फिरे ।
आसक्ति से कर्म बंधनकारी (संचित व प्रारब्ध) बनता है। अनासक्त कर्मयोग से कर्मफल से मुक्त रहा जा सकता है ।
अच्युत अर्थात् ना गिरने वाला (अविचलित) @ निश्चलज्ञानमासनम् ।
परमेश्वरस्तुतिर्मौनम् ।
12 Oct 2021 को प्रज्ञाकुंज सासाराम में लोकसेवी पंचकोशी शोधार्थी साधकों का इन्टर्नशिप कार्यक्रम। जिसमें सामुहिक स्वच्छता अभियान व जनजागृति का क्रम चलाया गया ।
आत्मनिर्माणी ही विश्वनिर्माणी होते हैं । हम सुधरेंगे युग सुधरेगा । हम बदलेंगे युग बदलेगा । इस पथ पर आगे बढ़ते हुए हम आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय वातावरण परिष्कराये को शिरोधार्य करेंगे ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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