Soham Sadhna
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 26 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: सोऽहं साधना
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
आ॰ अनिरूद्घ चौहान जी (बैंगलोर, कर्नाटक)
सोऽहं साधना – विज्ञानमयकोश की साधना । यह एक उच्चस्तरीय साधना है । पंचकोश अनावरण (परिष्कृत) से हम स्व (आत्मस्वरुप) का बोधत्व कर सकते हैं ।
प्राणायाम अर्थात् प्राणों को आयाम देना । यह हमें लक्ष्य बोध तक ले जा सकती है । प्राणायाम में निम्नांकित 4 चरण समाहित हैं :-
1. पूरक
2. अंतः कुंभक
3. कुंभक
4. बाह्य कुंभक
संकल्प शक्ति से प्राण तत्व का आकर्षण संधारण व विनियोग संभव बन पड़ता है ।
विचार महत्वपूर्ण हैं । जो जैसा सोचता है, वैसा करता है और जैसा करता है, वैसा ही बन जाता है । अतः विचारों के प्रति सचेत रहें ।
संकल्प शक्ति (भाव) जितनी मजबूत होगी, क्रियायोग उतनी ही प्रभावी होगी । ध्यान – हृदय चक्र में स्थित ब्रह्म प्रकाश का । श्वास लेते समय ‘सो’ एवं छोड़ते समय ‘हं’ । मैं वह (परमात्मा) हूं । इसे हंसयोग @ अजपा जाप के नाम से जाना जाता है ।
इसकी परिणति भक्त – भगवान, एकत्व तक ले जाती है ।
आ॰ विष्णु आनन्द जी (कटिहार, बिहार)
पंच तन्त्र – देह देवालय है जिसमें जीव रूप में शिव विराजमान हैं । इसकी पूजा वस्तुओं से नहीं, सोऽहम साधना से करनी चाहिए ।
सोऽहम साधना = ब्रह्म + प्रकृति + जीव का सम्मिलन @ एकत्व @ अद्वैत :-
1. सो – ब्रह्म (परमात्म चेतना)
2. ऽ – प्रकृति का प्रतिनिधि
3. हं – जीव चेतना
सोऽहं साधना @ हंसयोग (अजपा जाप):- ध्यान आत्मा के तेजोमय स्फूल्लिंग का
1. पूरक (inhale) – सो ॊ ॊ ॊ …. अर्थात् परमात्मा के प्रकाश के प्रकाश को धारण करना (तत्सवितुर्वरेण्यं)
2. अंतः कुंभक (hold breath inside) – अ ऽ ऽ ऽ … परिवर्तन (शिवो जीवः)
3. रेचक (exhale) – हं (अहम्) …. “वासना + तृष्णा + अहंता = उद्विग्नता – शांत” @ विसर्जन
4. बाह्यकुंभक – अ ऽ ऽ ऽ … परिवर्तन (जीवः शिवः)
प्रगति पथ पर अग्रसर होते हुए सांस पर ध्यान जमाना छूट जाता है और केवल विशुद्ध ब्रह्म तेज के ही दर्शन होते हैं ।
“जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवः ।” हंसयोग की परिपक्वता से साधक ब्राह्मी स्थिति का अधिकारी हो जाता है ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
सोऽहम प्राणायाम में हम महाप्राण का आकर्षण, संधारण व विनियोग करते हैं ।
सोऽहम साधना हमें ध्यान योग की परिपक्वता, असंप्रज्ञात समाधि तक ले जाती है ।
शब्दों से आसक्ति अर्थात् केवल मनोकूल शब्दों को सुनना पसंद करना एवं प्रतिकूल शब्दों में उद्विग्न हो जाना ।
संकल्प शक्ति को जागृत करने के लिए हमें आदर्शों के प्रति अटूट श्रद्धा विकसित करनी होती है । श्रद्धा को प्रज्ञा (हंसयोग – सोऽहम्) का आधार देकर जीवनशैली में निष्ठा (क्रियान्वयन) का समावेश करें । “आकांक्षा, विचारणा व क्रिया” @ “Theory, Practical & Application” से संकल्प शक्ति विकसित होते हैं ।
आत्मसाधना को प्रखर बनाने के 3 साधन:-
1. अनासक्त ज्ञानयोग
2. अनासक्त कर्मयोग
3. अनासक्त भक्तियोग
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा न सज्जते ॥ 3.28 ॥ भावार्थ: गुणकर्मविभाग के तत्त्व को जानने वाला, “सभी गुण ही गुणों में बरतते है” ऐसा समझकर आसक्त नहीं होता ।
प्रगति का parameter – आत्मस्थिति (सोऽहम् भावेण) @ peace & bliss के स्थायित्व को समझा जा सकता है ।
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा । दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा ॥ आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा ॥1॥
ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा @ समर्पण, साधक को हर हाल मस्त रखता है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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