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Swar Sanyam and Atmanubhuti Yoga

Swar Sanyam and Atmanubhuti Yoga

स्वर संयम एवं आत्मानुभूति योग

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class –  5 Mar 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: स्वर संयम एवं आत्मानुभूति योग

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

आ॰ सुभाष चन्द्र सिंह जी (गाजियाबाद, NCR)

व्यक्तित्व (= गुण + कर्म + स्वभाव @ चरित्र + चिंतन + व्यवहार) आधार पर मनुष्य – नरपशु, नरपिशाच, देवमानव/ महामानव रूपेण व्यवहार करता है ।

अपना (आत्मबोध) व संसार (तत्त्वबोध) का ठीक ठीक पूर्ण ज्ञान (बोधत्व) होना ‘विज्ञान’ है । विज्ञानमयकोश को उज्जवल बनाने के 4 साधन:-
1. सोऽहं साधना
2. ग्रन्थि भेदन
3. स्वर संयम
4. आत्मानुभूति योग
 
अन्नमयकोश जागरण/ परिष्करण/ उज्जवल बनाने में हम अन्तःस्त्रावी ग्रंथियों (endocrine glands) पर command करते हैं ।
प्राणमयकोश जागरण/ परिष्करण/ उज्जवल बनाने में हम 10 प्राण पर नियंत्रण कर respiratory system (इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना) पर command करते हैं ।
मनोमयकोश जागरण/ परिष्करण/ उज्जवल बनाने में हमारी चेतना की शिखर यात्रा शुरू होती है जिसमें हम मन (अंतःकरण) को शांत – संतुलित व प्रसन्न (तन्मे मनः शिवशंकल्पमस्तु) रखते हैं ।
विज्ञानमयकोश जागरण/ परिष्करण/ उज्जवल बनाने में हम Nervous system के neurohormones secretion  पर command करते हैं जिसमें हम अद्वैत पथ पर आरूढ़ होने हेतु तैयार होते हैं (वासना – शांत + तृष्णा – शांत + अहंता – शांत = उद्विग्नता – शांत @ त्रिगुणातीतं @ एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी साक्षीभूतं …)

स्वर संयम साधना:-
1. इड़ा (चन्द्र स्वर) – होश @ दिमाग ठंडा @ उत्कृष्ट चिंतन (ज्ञानयोग – theory/ उपासना – approached) @ ब्राह्मी गायत्री ।
2. पिंगला (सूर्य स्वर) – जोश @ खून गरम @ आदर्श चरित्र (कर्मयोग – practical/ साधना – digested) @ सावित्री ।
3. सुषुम्ना (साक्षीभूत चैतन्य – द्रष्टा भाव) @ जोश + होश @ परिष्कृत व्यक्तित्व – मानवीय अंतःकरण का धारक @ शालीन व्यवहार (भक्तियोग – application/ अराधना – realised) @ सरस्वती ।

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ।।2.48।।

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा न सज्जते ।।3.28।।

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च । मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ।।8.7।।

आत्मानुभूति योग: आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः ।

श्वेताश्वतर उपनिषद् – अणोरणीयान् महतो महीयान् आत्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः । तमक्रतुं पश्यति वीतशोको धातुः प्रसादान्महिमानमात्मनः ॥3-20।।

अंगुष्ठ मात्रः पुरुषो मध्य आत्मनि तिष्ठति । ईशानो भूतभव्यस्य न ततो विजुगुप्सते॥

जीवात्मा (अवतरण – दृश्य रूप) के दो महान उद्देश्य:-
1. आत्मबोध (मैं कौन हूं ? – आत्मा @ अहं ईश्वरांशोस्मि । @ सोऽहं । @ अयम् आत्मा ब्रह्म । @ अहं ब्रह्मास्मि ।
2. तत्त्वबोध (अयमात्मा ब्रह्म । @ प्रज्ञानं ब्रह्म । @ सर्वं खल्विदं ब्रह्म । @ सियाराम मय सब जग जानी @ हरि व्यापक सर्वत्र समाना @ गायत्री वा इदं सर्वं ।

आत्मानुभूति योग demonstration :
1. शिथिलीकरण = स्थिर शरीर – शांत चित्त (वासना – शांत, तृष्णा – शांत, अहंता – शांत @ उद्विग्नता – शांत)
2. स्व-दर्शन @ आत्मदर्शन – अहं जगद्वा सकलं शुन्यं व्योमं समं सदा । शिवोऽहम …. शिवोऽहम
मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे न च व्योम भूमिर् न तेजो न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश: न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव: न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥

ॐ …ॐ … ॐ … ॐ… ॐ…।

ॐ असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मामृतं गमय  ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ सुभाष चन्द्र सिंह जी को विज्ञानमय कोश की सरल सहज सुबोध अनुभवपरक शिक्षण हेतु सस्नेह साभार धन्यवाद । ईश्वर उन्हें सदैव प्रगति पथ पर बनाए रखें ।

उपनिषद् की संख्या 108 होने की मूल वजह विभिन्न मनोभूमि (बौद्धिक धरातल) का होना है ।
व्यवहारिक रूपेण अध्यात्म – ईश्वरीय अनुशासन में ईश्वर के सहचर बन ईश्वरीय पसारे इस संसार में ईश्वरीय कार्य के माध्यम बनें ।

लोकाचार में ‘मन’ (स्व भावना) को आघात से बचाने अर्थात् मन को शांत व प्रसन्न हेतु ‘मैत्री, करूणा, मुदिता व उपेक्षा’ सुत्र प्रभावी हैं ।
चेतना की शिखर यात्रा में unconditional love (अहैतुक प्रेम) @ आत्मीयता हमें पूर्णता की ओर बढ़ाते हैं ।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

विज्ञानमयकोश की परिपक्वता – भाव संवेदना के जागरण @ उदार आत्मीयता है ।

वैज्ञानिक अध्यात्मवाद :-
1. आत्मा अमर है । आत्मा वाऽरे ज्ञातव्यः … श्रोतव्यः … द्रष्टव्यः ।
2. संसार परिवर्तनशील है । अतः इसमें आसक्त ना हों अनासक्त रहें ।
3. पदार्थ जगत (मनो वै संसारः) हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है । अतः हम संसार में सदुपयोग का माध्यम बनें ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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