Tantra Mahavigyan – 2 (Vaishnavachar)
PANCHKOSH SADHNA (Gupt Navratri Session) – Online Global Class – 16 Feb 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
Please refer to the video uploaded on youtube. https://youtu.be/CuvueY_EMSo
Broadcasting: आ॰ नितिन आहूजा जी
SUBJECT: वैष्णवाचार
आ॰ श्रद्धेय श्री लाल बिहारी बाबूजी
तन्त्र महाविज्ञान, भक्ति प्रधान है। यह ज्ञान व कर्म की विशुद्ध तम अवस्था सरसता @ ‘भक्ति’ है। यह सभी साधकों को पढ़ना समझना चाहिए।
गायत्री पंचकोशी साधना के विज्ञानमयकोश साधना में कुण्डलिनी जागरण साधना व ग्रंथि भेदन की साधना रखी गई हैं। गुरुदेव कहते हैं कि हमारे हृदय में कुछ अदृश्य कांटे होते हैं। गायत्री मंजरी में आदियोगी महादेव आदिशक्ति माता पार्वती से कहते हैं – १. दोषयुक्त दृष्टि, २. परावलम्बन, ३. भय, ४. क्षुद्रता, ५. असावधानी, ६. स्वार्थपरता, ७. अविवेक ८. आवेश, ९. तृष्णा व १०. आलस्य दस शूल (कांटे) हैं। संसार का कल्याण करने वाली गायत्री अपनी १० भुजाओं से इन दस शुलों का संहार करती हैं।
‘ब्रह्म‘ से ‘प्रकृति’ व ‘जीव’ का आविर्भाव हुआ है। आदर्शों के समुच्चय को ईश्वर कहते हैं। अतः किसी भी व्यक्ति अथवा वस्तु आदर्शहीन (useless or worthless) हों ऐसा हो नहीं सकता। हमारी पहुंच उन आदर्शों तक हो जाए तो ‘ईशावास्यं इदं सर्वं’।
गुरुदेव कहते हैं की हम सबका सम्मान करने लगे अर्थात् सब के प्रति प्रशंसनीय दृष्टिकोण रखने लगे तो आत्मीय हो जाते हैं अर्थात् अध्यात्मिकी में प्रवेश पा गए। इस हेतु ‘गायत्री पंचकोशी साधक’ पंचकोश का अनावरण कर आत्मा के प्रकाश आत्मीयता से ओत-प्रोत होकर वह आत्मा को सब भूतों में व सब भूतों की आत्मा को देखता है।
किसी भी वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र) व आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व सन्यास) @ गुण, कर्म व स्वभाव @ व्यक्तित्व हेतु ‘अध्यात्म’ निषेध नहीं है वरन् सर्वसाधारण हेतु संपूर्ण चराचर जगत में आधारभूत अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता ‘ब्रह्म’ प्रदत्त सर्वसमर्थ, सर्वसुलभ व सर्वमान्य जन्मसिद्ध अधिकार है।
वेदाचरण युक्त साधक वैष्णवाचार में प्रवेश पाता है। विष्णु सर्वव्यापक शक्ति हैं जो भू, भुवः, स्वः, महः, तपः, जनः व सत्यम् लोक तक फैली हुई है।
वामनावतार
‘विष्णु‘ तीन पगों में सारी सृष्टि को नाप लेते हैं – यह चलना उनकी गति, क्रियाशीलता व सतर्कता को इंगित करता है। वह सदा जागरूक रहते हैं।
विष्णु, वामन (छोटे/बौने) थे। सारी सृष्टि में फ़ैल गये अर्थात् अणु महान हो गया। यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे – अर्थात् हमारे इस छोटे वामन शरीर में सारा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है। इसी में वो विराट निहित है। इस पिंड व ब्रह्माण्ड और वामन व विष्णु में कोई अंतर नहीं है।
वैष्णवाचार साधक सर्वत्र विराट दर्शन करता है। वह आत्मा को सब भूतों में व सब भूतों की आत्मा को देखता है। वासुदेव इदं सर्वं – वह सर्वत्र विष्णु के दर्शन करता है।
विष्णु, शेष-शैय्या पर शयन करते हैं। इस रूपक में सहस्र फनों वाले शेषनाग ‘अनन्त’ के प्रतीक हैं। विष्णु का आधार, अनन्त (infinite) है।
विष्णु जी के नाभि से कमल व कमल से ब्रह्मा जी आविर्भुत हुए। ब्रह्मा जी ने सृष्टि सृजन में असमर्थता व्यक्त की तो उन्हें तप करने को बताया गया और वे तपोबल से समर्थ हुए। तप से सृजन होता है, शक्ति का विकास होता है।
यज्ञो वै विष्णुः – यज्ञ को विष्णु की संज्ञा दी जाती है और वेद में यज्ञ को विश्व ब्रह्माण्ड को नियंत्रित में रखने वाला के कहा गया है। ऐतरेय ब्रहाण में यज्ञाग्नि को ही विष्णु कहा गया है।
विष्णु की चार भुजाएं – चारों वेद का प्रतीक हैं। भगवान के चार हाथ जीवन के चार चरणों को दर्शाते हैं। पहला हाथ- ज्ञान की खोज (ब्रह्मचर्य), दूसरा – पारिवारिक जीवन (गृहस्थ), तीसरा – वनवास (वानप्रस्थ) और चौथा संन्यास। 4 हाथ में 4 वस्तुएं – १. कमल अर्थात् संसार में रहते हुए निर्लिप्त रहें। २. पांचजन्य शंख अर्थात् ज्ञान प्रसार का प्रतीक। ३. सुदर्शन चक्र – ऐसा दर्शन (ज्ञान) जो सभी भव-बन्धन को काट दे। व ४. गदा – विनाशाय च दुष्कृताम्, पदार्थ सत्ता पर आत्मसत्ता का नियंत्रण हो।
विष्णु के वाहन गरुड़ हैं अर्थात् वेदात्मा गरूड़ है जिस पर भगवान विराजते हैं।
विष्णु का वर्ण रंग ‘श्याम’ है। काले रंग पर कोई अन्य रंग नहीं चढ़ता किंतु काला रंग जिस पर चढ़ा वो उतरता नहीं। भगवान के गुण अर्थात् प्राकृतिक नियम काले रंग की तरह हैं बदल नहीं सकते।
वैजयंती माला का अभिप्राय – पंच महाभूत से है। 5 ज्ञानेनद्रियां बाण के रूप में भगवान विष्णु के आयुधों में विराजती हैं। खडग, अविद्यामय कोश से आच्छादित विद्यामय कोश ज्ञान है। विष्णु त्याग और बलिदान पवित्र भावनाओं से ओत-प्रोत है।
‘वैष्णवाचार‘ के साधकों को विष्णु के उपरोक्त गुणों का चिंतन, चरित्र में अवतरण और व्यवहार में जीना होता है। अश्लील वार्ता, चुगली निंदा, मांसाहार आदि से दूर रहें।
‘तन्त्र‘ का संबंध सीधे चेतना शक्ति से है। यह साधना पंचकोश अनावरण व षट्चक्र जागरण – कुण्डलिनी उन्नयन का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
प्रश्नोत्तरी सेशन
‘ग्रंथि भेदन‘ की साधना – गायत्री, त्रिपदा हैं। ‘ज्ञान, कर्म व भक्ति’, ‘ह्रीं, श्रीं व क्लीं, ‘ब्रह्मा, विष्णु व महेश’ की उपासना, साधना व अराधना से त्रिविध बंधन ‘अज्ञान, अभाव व अशक्ति’ से मुक्त हुआ जाता है अर्थात् उत्कृष्ट चिंतन, आदर्शवादी चरित्र व शालीन व्यवहार के धारक बनते हैं। एक पक्षीय होना असंतुलन का कारण बनती है। त्रिगुणात्मक (सत्व, तम व रज) संतुलन से बात बनती है।
सत्य ही नारायण हैं। ईश्वर निर्विकार निर्लिप्त हैं। हम प्रकृति के नियमों में बंधे हैं। जैसा बोयेंगे वैसा काटेंगे। जो बटोरेंगे वही बांटेंगे, जो बांटेंगे वही ब्याज के साथ लौट कर आयेगा। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता, नियंत्रण कर्ता व स्वामी है।
व्यक्ति अपने व्यक्तित्व (गुण, कर्म व स्वभाव) के अनुसार अर्थ ग्रहण करता है। वह शब्दों के अर्थ मनःस्थिति व परिस्थिति वश बदल लिया करता है। शब्द ब्रह्म – ॐ॥
तन्त्र महाविज्ञान में 5 मकार- १. म – मद्य (सहस्रार चक्र से टपकता रस), २. म – मांस (दोष – दुर्गुण का भक्षण), ३. म – मत्स्य (इड़ा – गंगा व पिंगला – यमुना, प्राणायाम), ४. म – मुद्रा (देवताओं को प्रसन्न करे वो मुद्रा) व ५. म – मैथुन (सहस्रार व मूलाधार का मिलन/ शिव शक्ति का मिलन)।
‘लक्ष्य‘ को जीने का क्रम अर्थात् क्रमशः चिंतन, चरित्र व व्यवहार में अवतरित कर लिया जाए तो सफलता निश्चित है। ऋद्धि – सिद्धि (सफलता) के ४ आधार – १. आस्था (श्रद्धा – विश्वास), २. प्रज्ञा (योग्यता), ३. श्रमशीलता व ४. निष्ठा (तन्मयता/ मनोयोग)।
जीवन के ४ अनिवार्य स्तंभ – १. बहादुरी, २. समझदारी, ३. ईमानदारी व ४ जिम्मेदारी।
४ अनिवार्य संयम – १. इन्द्रिय संयम, २. विचार संयम २. समय संयम व ४. अर्थ संयम।
ईश्वर प्रदत्त समय रूपी संपदा – २४ घंटे सभी को समान रूप से मिले हैं। नियोजन अपने हाथ में है।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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