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Tapascharya

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तपश्चर्या (युगानुकुल 12 तप)

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 13 Nov 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: तपश्चर्या (युगानुकुल 12 तप)

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

आ॰ उमा सिंह जी (बैंगलोर, कर्नाटक)

अन्नमयकोश की शुद्धि हेतु 4 उपाय:-
1. आसन
2. उपवास
3. तत्त्व शुद्धि
4. तपश्चर्या

साधना से सिद्धि” – सफलता हेतु तपश्चर्या की अनिवार्यता है । पुरूषार्थ की सार्थकता सदुपयोग (good use) में निहित है ।

तपस्या से उत्पन्न अग्नि से सारे पाप समूह (कषाय कल्मष @ क्रियमाण, संचित व प्रारब्ध कर्म) गलकर नष्ट हो जाते हैं अथवा उसके side affects को सहने की शक्ति प्राप्त होती है । तप से गलाई होती है व योग से ढलाई होती है ।

तप के तीन स्तर में क्रमशः स्थूलता से सुक्ष्मता में प्रवेश करते हैं:-

1. कायिक तप – शारीरिक तप (स्थूल जगत)
2. वाचिक तप – वाणी संयम । मनसा वाचेण कर्मणा शुद्धता (परिपक्वता) ।

3. मानसिक तप – निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥

तप की गर्मी (उष्णता) से स्वयं को इस अनुकूल बनाया जाता है; वो पात्रता अर्जित की जाती है कि ईश्वर से योग (सायुज्यता) बनायी जा सके ।
भौतिक जीवन में भी शक्ति व सामर्थ्य अर्जित करने हेतु ‘तप’ की भूमिका अप्रतिम है ।
तपश्चर्या से शक्ति प्राप्त होती है । वीर भोग्या वसुंधरा ।

12 युगानुकुल तप. गुरूदेव ने युगानुकुल 12 तप की विधा को सर्वसमक्ष रखा है । निज अनुकूलता (सहजता) व श्रद्धा (विश्वास) को ध्यान में रखते हुए तप के प्रकारों में चुनाव किया जा सकता है । तपश्चर्या संग योग के सुलभ अभ्यास हेतु तप के अभ्यास के साथ नित्य ‘स्वाध्याय – सत्संग’ को जीवन क्रम में शामिल किया जा सकता है ।

1. अस्वाद तप – बिना नमक व मीठे का भोजन ग्रहण करना । इन्द्रिय निग्रह ।

2. तितीक्षा तप – ठंडी, गर्मी सहने हेतु शरीर को अभ्यस्त बनाना ।

3. कर्षण तप – अनुशासन । औसत भारतीय जीवनशैली । कर्मठता । अपने दैनिक कार्यों को यथासंभव स्वयं करना । आलस्य का परित्याग । विलासिता से  परहेज़ आदि ।

4. उपवास तप – बीमारी को भूखा मारना । 5 प्रकार के उपवास हैं – पाचक, शोधक, शामक, आनस व पावक । अपनी अपनी faculties, शारीरिक व मानसिक पृष्ठभूमि अनुरूप उपवास का चुनाव किया जा सकता है । उपवास से उपत्यकाओं की शुद्धि होती है ।

5. गव्यकल्प तप – आहार में गौ उत्पादों को प्राथमिकता प्रदान करना ।

6. प्रदातव्य तप – स्वयं हेतु कठोरता व अन्यों के प्रति उदारता । सादा जीवन उच्च विचार । औसत भारतीय जीवन शैली जीते हुए न्यायपूर्वक अर्जित धन को जनहित में लगाना ।

7. निष्कासन तप – अपनी गलतियों को स्वीकार करना व सुधार/ परिमार्जन हेतु सतत प्रयत्नशील रहना । आत्मबोध व तत्त्वबोध की दैनंदिन साधना ।

8. साधना तप – दैनिक गायत्री सावित्री साधना @ पंचकोश साधना @ कुण्डलिनी जागरण @ आत्मसाधना, गायत्री यज्ञ, पुरश्चरण आदि ।

9. ब्रह्मचर्य तप – वीर्य रक्षण, शक्ति संसाधन का सदुपयोग, आत्मस्थित – ब्रह्मलीन ।

10. चान्द्रायण तप – पूर्णमासी से प्रारंभ । जितनी मात्रा में औसतन आहार हम लेते हैं, उसका सोलहवां भाग प्रतिदिन कम करते जाना चाहिए । कृष्ण पक्ष का चन्द्रमा  जैसे जैसे 1-1 कला नित्य घटता जाता है वैसे वैसे सोलहवां भाग कम करते जाएं ।
अमावस्या व पड़वा को चन्द्रमा नहीं दिखता । इन दो दिनों में स्थूल आहार से  परहेज़ का निर्देश है ।
शुक्ल पक्ष की दौज से चन्द्रमा नित्य 1-1 कला बढ़ते जाते हैं वैसे ही आहार के सोलहवें भाग को नित्य बढ़ाते हुए पूर्णमासी तक पूर्ण आहार पर पहुंचा जाता है ।
अर्ध चन्द्रायण 15 दिन का होता है । इसमें नित्य भोजन के आठवें भाग को क्रमशः 8 दिन घटाना फिर अगले 8 दिन बढ़ाना होता है ।
आरंभ में अर्ध चांद्रायण, फिर परिपक्वता आने पर पूर्ण चांद्रायण का अभ्यास करना चाहिए ।
प्रज्ञाकुंज सासाराम में 7 दिन के चांद्रायण तप:-
1. सब्जी पर
2. फलाहार
3. रसाहार
4. जलाहार
5. रसाहार
6. फलाहार
7. सब्जी पर

11. मौन तप – आवश्यकतानुसार बैखरी वाणी (शब्द शक्ति) का प्रयोग । वाणी का संयम । बैखरी (शब्द), मध्यमा (भाव), पश्यन्ती (विचार) व परा (संकल्प) आत्मीयतापूर्ण (बहुजन हिताय सर्वजन सुखाय) हों ।

12. अर्जन तप – Skills development, स्वावलंबन ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में 2 घण्टे मौन रखा जा सकता है । नित्य ऊषापान alongwith स्वाध्याय से ‘मौन तप’ को नित नए आयाम दिया जा सकता है ।
“सत्यं ब्रुयात् – प्रियं ब्रुयात्” से शब्द ब्रह्म को पाया जा सकता है @ “सत्यं शिवं सुन्दरं” ।

दैनंदिन जीवन में 4 संयम से तपश्चर्या की सार्थकता का समावेश किया जा सकता है :-
1. इन्द्रिय संयम (उपवास, अस्वाद, तितीक्षा, कर्षण, ब्रह्मचर्य, मौन तप आदि)
2. समय संयम (संयमित आहार-विहार @ ईशानुशासन)
3. विचार संयम (निष्कासन तप, स्वाध्याय – सत्संग आदि)
4. अर्थ संयम (प्रदातव्य, अर्जन तप आदि) ‌।
योग: कर्मषु कौशलम् ।” सिद्धांत व प्रयोग (theory & practical) सार्वभौमिकता को ध्यान रखते हुए बनाए जाते हैं । How to apply अर्थात् ‘शैली’ का चुनाव अपनी विशिष्टता को ध्यान में रखकर किया जा सकता है । Copy & Paste की जगह Creativity शानदार होती है ।

लोक-शिक्षा क्रम में संतुलन (आत्मीयता) का ध्यान रखा जाए तो हम लोकमान्य बन सकते हैं । शब्दों के चुनाव में विशेष सतर्कता की आवश्यकता होती है so that वो किसी के मन को पीड़ा ना दे । सार्वभौम भाषा निःस्वार्थ प्रेम की भाषा – आत्मीयता है । विवाद से दूर रहा जा सकता है । 

आसक्ति से ग्रन्थि निर्मित होती है । अतः ग्रन्थि केवल तामसिक व राजसिक ही नहीं प्रत्युत् सात्विक भी होती है । “समत्वं योग उच्यते ‌।” – संतुलन (साम्यावस्था – अनासक्त प्रेम) से बात बनती है ।

शक्ति सामर्थ्य संसाधन – ईश्वर प्रदत्त हैं अतः इनके सदुपयोग (good use) का माध्यम बना जाए व दुरूपयोग (misuse) व अति उपयोग (over use) से बचा जाए ।
तप से कषाय कल्मष की गलाई की जा सकती है व योग (आदर्शों) से स्वयं की ढलाई की जाती है ।

तप से गतिशीलता उत्पन्न होती है और मंजिल (जीवन लक्ष्य) की प्राप्ति हेतु साधना पथ पर गतिशीलता बनाए रखनी है @ चरैवेति चरैवेति मूल मंत्र है अपना ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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