Tapascharya
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 28 May 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: तपश्चर्या
तपश्चर्या (गायत्री महाविज्ञान) – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v10.8
तपश्चर्या का तत्त्वज्ञान – http://literature.awgp.org/book/Yog_Sadhana_Aur_Tapashcharya_Ki_Prishthabhumi/v2.2
तपश्चर्या का उद्देश्य – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1952/August/v2.14
तपश्चर्या का एक सरल आरंभ – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1961/October/v2.7
तपश्चर्या समृद्धियों और विभूतियों की जननी – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1973/February/v1.46
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: आ॰ उमा सिंह जी (गृहिणी, बैंगलोर)
‘तप‘ का अर्थ है तपाना (heating) for (दोष दुर्गुणों) गलाई । जिससे ‘योग’ (आत्मा + परमात्मा @ अद्वैत) योग्य मनोभूमि बन सके । तपोयोग (गलाई + ढलाई) साधना को पूर्णता प्रदान की जाती है । (ब्रह्म विद्या) @ अध्यात्म विज्ञान के दो पक्ष:-
1. आस्था पक्ष (योग @ ज्ञान पक्ष @ उत्कृष्ट चिंतन)
2. क्रिया पक्ष (तप @ आदर्श चरित्र + शालीन व्यवहार)
‘तप‘ का उद्देश्य दो चरणों में पूर्ण होती है:-
1. आत्मनिर्माण
2. लोक कल्याण
श्रम पुरूषार्थ को जीवन में आवश्यक/अनिवार्य रूप से स्थान दिया जाए । अन्नमयकोश साधना (अनावरण/परिष्करण / शुद्धि/ जागरण) के अंतर्गत 4 क्रियायोग
1. आसन
2. उपवास
3. तत्त्व शुद्धि
4. तपश्चर्या
12 युगानुकुल पापनाशक शक्तिवर्धक तप: तीन श्रेणियों के (कायिक, वाचिक, मानसिक) तप को परम पूज्य गुरूदेव ने निम्नांकित 12 युगानुकुल तप के अंतर्गत रखा है:-
1. आस्वाद तप – स्वादेन्द्रिय जीभ (रसना) का संयम (ऋतभोक् + मितभोक् + हितभोक्) अर्थात् चटोरेपन की आदत छोड़ने का क्रम ।
2. तितिक्षा तप – ‘संयम + सादगी’ @ आधुनिक सुख सुविधाओं (भोग विलास के साधनों) के लत/ आदत से परहेज़ @ शीत (cold), ऊष्ण (heat), सुख (favourite), दुःख (hated) आदि द्वन्द्वों (द्वैत – duels) को प्रसन्नतापूर्वक सहन करना ।
3. कर्षण तप – छोटे बड़े यथासंभव अपने कार्य स्वयं करना, आलस्य प्रमाद आदि से निवृत्ति ।
4. उपवास – इन्द्रियों को विषयों से दूर रखकर अंतर्मुखी बनाना । उपवास से उपत्यिकाओं का शोधन ।
5. गव्यकल्प तप – गौ उत्पाद का दैनंदिन जीवन में प्रयोग । गुरूदेव ने छांछ और जौ की रोटी पर 24 महापुरश्चरण किये ।
6. प्रदातव्य तप – परमार्थ, सेवा, सहिष्णुता, सहकारिता, उदारता @ वसुधैव कुटुंबकम् ।
7. निष्कासन तप – अपनी कमियों को मानना की बस बहुत हो गया … अब सुधार की ओर बढ़ा जाए । अपनी कमियों के confession के लिए parents, relatives, सद्गुरू, आत्मदेव की शरण स्व विवेक से ली जा सकती है ।
8. साधना तप – योग (आत्मा + परमात्मा) हेतु साधन @ क्रियायोग । क्रमबद्ध चरण :-
(i) बहिर्मुखी इन्द्रियों को अंतर्मुखी बनाना (मन में लीन)
(ii) मन को शुद्ध बनाना (विवेकानुगामी – ज्ञानात्मा बुद्धि में निरूद्ध)
(iii) बुद्धि को विशुद्ध चित्त (महान तत्त्व – आत्मा) में लीन
(iv) ‘आत्मा’ को ‘परमात्मा’ में लीन करना (विलयन विसर्जन)
9. ब्रह्मचर्य तप – काम बीज का उन्नयन ज्ञान बीज में @ प्राण का उर्ध्वगमन । स्मरण रहे विषयासक्ति से प्रवृत्ति तो अनासक्त भावेण निवृत्ति । सावित्री कुण्डलिनी तंत्र chapter – IV का अध्ययन किया जा सकता है ।
10. चान्द्रायण तप – चंद्रमा की कलाओं संग स्थूल भोजन की मात्रा कम करते जाना फिर उसी क्रम में वृद्धि करते हुए सामान्यावस्था में ले आना । शरीर के toxins व जन्म जन्मान्तरों के संचित कुसंस्कारों को भस्मीभूत करने में सक्षम ।
11. मौन तप – सत्यं ब्रूयात् – प्रियं ब्रूयात् ।
‘वाणी‘ – {वैखरी (शब्द), मध्यमा (भाव) पश्यन्ती (विचार) व परा (संकल्प)} अंतः व बाह्य जगत में आत्मबल अभिवृद्धि, सुख समृद्धि, आत्मीयतापूर्ण (निःस्वार्थ प्रेम की अभिव्यक्ति हों) ।
पर निंदा संभाषणों व श्रवण की उपेक्षा से ‘मौन’ सधता है । (हम राग द्वेष पूर्ण संभाषण से बचें प्रत्युत् जब आवश्यक हो तभी बोलें) ।
‘स्वाध्याय‘ (आत्मा वाऽरे ज्ञातव्यः … श्रोतव्यः …. द्रष्टव्यः … निदिध्यास्तव्यः) मौन साधने का अचूक फॉर्मूला है ।
‘मौन’ तप के लाभ:-
१. वाचालता से निवृत्ति
२. प्राण शक्ति संवर्धन
३. अंतर्जगत यात्रा में प्रगति
४. शांति (अंतः + बाह्य) आदि ।
12. अर्जन तप – अध्यात्म की पहली शर्त स्वावलंबन (निरालम्ब) । परावलंबन – परजीवियों का स्वभाव है जो अपने आश्रयदाता को भी नहीं छोड़ते हैं समूल चट कर जाते हैं । Skills development पर ध्यान देवें । स्वावलंबन, स्वाभिमान (आत्मबल) को बरकरार रखता है ।
त्रिपदा (ज्ञान, कर्म व भक्ति) गायत्री साधक आत्मिक रिद्धि व भौतिक सिद्धि समृद्धि का स्वामी होता है ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
हारिए ना हिम्मत – http://literature.awgp.org/book/Lose_Not_Your_Heart/v4.1 । जिसके मन में बसे राम (highly positive thoughts) – उसका तन अयोध्या धाम (अजेय) ।
परमेश्वर स्तुतिर्मौनम् (शान्ताकारम) ।
शब्द ब्रह्म – नाद ब्रह्म । साक्षी भाव से पश्यन्ती भाव सधता है ।
चक्रों उपचक्रों का विवेचन अथवा शारीरिक विज्ञान से जोड़ना ऋषि चिंतन और उनके teaching mode पर निर्भर करता है । अतः गुण परक (adjective) पर focus करें एवं संज्ञा विशेष (noun) से बचा जा सकता है ।
Wishes (अभिवादन) का उद्देश्य आत्मीयता अभिवृद्धि है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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