तपश्चर्या (Tapashcharya)
तपश्चर्या Online Global Class – 30 May 2020
🌞 आ० शैली अग्रवाल (पंचकूला). गुरूदेव ने वेद वेदांग सद् साहित्य आदि के भाष्य के सरलीकरण द्वारा इसे सर्वसाधारण हेतु व्यवहारिक व सर्वसुलभ बनाया है| गीता में ३ प्रकार के तप वर्णित हैं – तामसिक, राजसी व सात्विक तप| १२ प्रकार के तपश्चर्याएं हैं:-
👉 १. कर्षण तप. जहाँ तक संभव बन पड़े अपना काम स्वयं करना|स्वावलंबन को शिरोधार्य करना|
ब्रह्ममुहुर्त में साधना योगाभ्यास स्वाध्याय आदि|
👉 २. प्रदातव्य तप. स्वयं की आवश्यकता को कम करना व अर्जित धन संपदा का सदुपयोग आत्म कल्याण व लोक कल्याण में करना|सादा जीवन – उच्च विचार|
👉 ३. मौन तप. मौन से शक्तियों का क्षरण रुकता है, आत्मबल, दैवी तत्वों, चित्त की एकाग्रता, शान्ति में अभिवृद्धि होती है तथा बहिर्मुखी वृत्तियां अन्तर्मुखी होने से आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
अपनी स्थिति, रुचि और सुविधा के अनुसार मौन की अवधि हम निर्धारित कर सकते हैं तथा इस अवधि को स्वाध्याय अथवा परमात्म चिन्तन में लगायें|
👉 ४. निष्कासन तप. बुराइयों और पापों को गुप्त रखने से मन भारी रहता है| जिसके प्रकटीकरण से मनोभूमि निर्मल होती है।
गुरू, संत व्यक्तित्व, गंभीर विश्वस्त नाते रिश्तेदार मित्रों से अपने पापों को कह देना चाहिए| इससे ग्रंथि निर्मित नहीं होती व मन हल्का होता है|
🌞 आ० पद्मा हिरास्कर (पुणे). तप का उद्देश्य शरीर विष तत्वों का निष्कासन व पोषक तत्वों का अभिवर्धन है|
👉 ५. अस्वाद तप. तप उन कष्टों को कहते हैं, जो अभ्यस्त वस्तुओं के अभाव में सहने पड़ते हैं।
भोजन में स्वाद मुख्यतः नमक और मीठा से होता है। अतः इनको छोड़ना अस्वाद के अंतर्गत आता है|
प्रारम्भ में १ दिन, १ सप्ताह, १ मास या १ ऋतु के लिये सुविधानुसार अभ्यास कर सकते हैं|
👉 ६. उपवास तप. गीता में उपवास को विषय-विकारों से निवृत्त करने वाला बताया गया है।
५ प्रकार के उपवास – “पाचक, शोधक, शामक, आनस व पावक” हैं इनके महती लाभ हैं सुविधानुसार इनका चुनाव किया जा सकता है|
उपवास में जल का सेवन, स्वाध्याय, उपासना आदि का समन्वय अनिवार्य तत्व है|
👉 ७. गव्यकल्प तप. गाय के दूध के products जैसे दूध, दही, छांछ, घी आदि के सेवन से सात्विकता में अभिवृद्धि होती है|
गाय के शरीर से निकलने वाला तेज बड़ा सात्विक एवं बल पूर्वक होता है, अतः गौ पालन के महती लाभ हैं|
👉 ८. ब्रह्मचर्य तप. काम विकार पर काबू रखने से वीर्य रक्षण होता है| मानसिक काम सेवन शारीरिक काम सेवन से ज्यादा हानि पहूँचाती है|
वीर्य को हम एक body product के form में केवल ना लेवें वरन् शक्ति के रूप में लें जो उर्ध्वगमन कर उत्तरोत्तर रूपांतरित होती जाती हैं|
स्वाध्याय – सत्संग व योग साधना आदि अभ्यास द्वारा काम शक्ति (वीर्य) का ओजस् तेजस् वर्चस रूपांतरण में मदद मिलती है|
रतिक्रिया (संभोग) का उद्देश्य तेजस्वी संतततियों की उत्पत्ति व पति – पत्नि के संबंध के माधुर्य को बनाये रखना है|
🌞 आ० उमा सिंह (बैंग्लोर). तपश्चर्या का आधार “प्रयास, विश्वास और सत्” हैं|तप से ही आत्मबल में अभिवृद्धि होती है|
👉 ९. साधना तप. दैनिक साधना, अनुष्ठान, महापशुचरण, गायत्री यज्ञ, गायत्री योग जप तप ध्यान आदि साधनाओं से तपोबल में अभिवृद्धि होती है|
पंचकोश साधना के १९ क्रियायोग को एक complete साधना पैकेज के रूप में लिया जा सकता है|
👉 १०. चांद्रायण तप. १ महीने में चंद्रकलाओं के साथ आहार की मात्रा को कम करते हुये “जप, तप, ध्यान – स्वाध्याय” @ उत्साहपूर्वक गायत्री साधना में संलग्न रहना|
👉 ११. तितीक्षा तप. शरीर को हर एक environment में active रखना निरोग रखना तितीक्षा तप का उद्देश्य है|
इस हेतु गर्मी में गर्मी तथा सर्दी में सर्दी सहने का नियमानुसार अभ्यास किया जाता है अर्थात् आरामपरस्ती/प्रमाद का त्याग कर शरीर को तपाकर कुंदन बनाया जाता है|
👉 १२. अर्जन तप. नित्य प्रगतिशील रहें अर्थात learning सतत् चलता रहे जिससे कला कौशल में नित्य अभिवृद्धि होती रहे| फलस्वरूप हम स्वावलंबी हों और सत् प्रयोजनों में नियोजित हो सकें|
🌞 प्रश्नोत्तरी with @LBSingh
🙏 तपोनिष्ठ गुरूदेव के बच्चे तपस्वी तो होने ही चाहिए|
🙏 आत्मशक्ति के अभिवर्धन का आधार ही तप है| देता वही है जिसने अर्जित किया है|
🙏 आज के teachers cell से तीनों साधिका दीदी अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुये तपश्चर्या का अवलंबन किया| अपने आत्मशक्ति का अभिवर्धन कर अपने अनुभवों से हमे लाभान्वित किया|
🙏 तपश्चर्या की सफलता के ३ आधार हैं:-
👉 १. उपासना @ दृष्टिकोण उत्कृष्ट हों – आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय वातावरण परिष्कराय …@ एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति|
👉 २. साधना @ चारित्रक प्रखरता @ संयम
👉 ३. आराधना @ शालीन व्यवहार (manners/applications) – good use of resources.
🙏 आत्म साक्षात्कार/ परमात्म साक्षात्कार हेतु आयामों का विस्तार @ अतीन्द्रिय क्षमता विकसित करें|
🙏 आकाश अनंत हैं ज्यों ज्यों हमारा चेतनात्मक विस्तार होता है वैसे वैसे हमारा आयाम बढ़ता है और अंततः ईश्वर की सर्वव्यापकता का बोधत्व कराता है|
🙏 बल/शक्ति का संवर्धन और सदुपयोग (उचित नियोजन) ब्रह्मचर्य का उद्देश्य है| इसके अभ्यास में शक्ति के misuse अर्थात् अनावश्यक क्षरण को रोकना होता है|
सृष्टि संचालन मे सहभागिता सुनिश्चित करने हेतु तेजस्वी संतति को जन्म देना तथा दांपत्य जीवन के माधुर्य को बढ़ाने हेतु संयमित रतिक्रिया ब्रह्मचर्य व्रत का part हैं|
🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः – अखंडानंदबोधाय @ जय युगॠषि श्रीराम 🕉
🙏 संकलक: विष्णु आनन्द
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