Tatva Shuddhi
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 06 Nov 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: तत्त्व शुद्धि
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
आ॰ सुशील त्यागी जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.61
अन्नमयकोश के परिष्कार (उज्जवल/ शुद्ध) बनाने के 4 साधन:-
1. आसन
2. उपवास
3. तत्त्व शुद्धि
4. तपश्चर्या
पंचतत्त्व (पृथ्वी, जल, अग्नि वायु व आकाश) – पंचीकरण विद्या से ही यह शरीर और संसार विनिर्मित है ।
पंचतत्त्व के असंतुलन से शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं । तत्त्व शुद्धि के विधा द्वारा हम संतुलन (साम्यावस्था) बना कर जीवन में आरोग्य को धारण कर सकते हैं । असंतुलन (न्युनता व अत्याधिक) से उत्पन्न होने वाले diseases और उनके cure पर विस्तार से brief किया गया है ।
दैनिक जीवन में हम निम्नलिखित साधनों को शामिल कर पंचतत्त्व संतुलन बना सकते हैं:-
1. पृथ्वी तत्त्व – मिट्टी स्नान, गार्डेनिंग, खाली पांव टहलना, पारंपरिक खेल (कुश्ती, कबड्डी आदि) व मूलाधार चक्र का जागरण आदि।
2. जल तत्त्व – ऊषापान, स्नान (कटि स्नान, मेरूदण्ड स्नान, व स्वाधिष्ठान चक्र का जागरण आदि ।
3. अग्नि तत्त्व – प्रातः कालीन सूर्य दर्शन, सूर्य का ध्यान, सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रहना व मणिपुर चक्र का जागरण आदि ।
4. वायु तत्त्व – Morning walk with deep breathing, प्राणायाम, निवास स्थल व उनका आसपास स्वच्छ, हवादार व भरा बनाना व अनाहत चक्र का जागरण आदि ।
5. आकाश तत्त्व – 4 वाणियां – १. बैखरी (शब्द), २. मध्यमा (भाव), पश्यन्ती (विचार) व परा (संकल्प) – आकाश में तरंग के रूप में प्रवाहित होती रहती हैं । व्यक्तित्व जितना प्रभावशाली उतना ही “शब्द, भाव, विचार व संकल्प” प्रबलता से प्रवाहित होते हैं । श्रद्धा (विश्वास), स्वाध्याय – सत्संग व विशुद्धि चक्र जागरण आदि ।
आ॰ अमन जी (गुरूग्राम, हरियाणा)
निज अनुभव: नित्य प्रातः ऊषापान – स्वाध्याय, उपवास – तन्मात्रा साधना (संतुलित आहार – विहार), से लाभ :-
1. पृथ्वी तत्त्व शुद्धि (संतुलन) – constipation से राहत (पेट साफ), फोड़े-फुंसी, कील मुहांसे, त्वचा विकार आदि का निदान ।
2. जल तत्त्व शुद्धि (संतुलन) – बहुमुत्र, स्वप्नदोष, पाचन संबंधी दोषों व कफ संबंधी रोगों का निदान ।
3. अग्नि तत्त्व शुद्धि (संतुलन) – अपच, अकड़न, जुकाम खांसी, पित्त संबंधी रोगों आदि से राहत ।
4. वायु तत्त्व शुद्धि (संतुलन) – गठिया, दर्द, पेट में अत्याधिक गैस का formation व वात संबंधी रोगों का निदान ।
5. आकाश तत्त्व शुद्धि (संतुलन) – स्वाध्याय – सत्संग से प्रभावशाली व्यक्तित्व व जीवन में सकारात्मकता (आत्मीयता) का विकास ।
आ॰ सुशील कुमार त्यागी जी का जीवन क्रम हम सभी के लिए आदर्श । ईशानुशासन (संतुलित आहार विहार), कर्मठता (Dutiful), प्रकृति प्रेमी (इनका आस-पास भरा) व आचरण से उपदेश आदि – हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
उपवास को स्थूल शरीर के संयम अर्थात् पेट को खाली रखने के अर्थों तक सीमित रखा ना जाए प्रत्युत् सुक्ष्म व कारण शरीर – प्रज्ञावान् (स्वाध्याय) व भक्ति (आत्मीयता के विस्तार – आत्मानुभूति योग) तक ले जाएं । उपवास को ईश्वर के सामीप्य के अर्थों में भी लिया जाता है । ईशानुशासन को धारण करें । ईश्वर के सहचर बनें । ईश्वरीय पसारा (संसार) को सुंदर बनाने में सहभागिता सुनिश्चित करें ।
पंचतत्त्व के सुक्ष्म गुण- तन्मात्राएं (पृथ्वी – गंध, जल – रस, अग्नि – रूप, वायु – स्पर्श व आकाश – शब्द) हैं । जिस तत्त्व प्रकृति प्रधान (प्रचुरता) आहार ग्रहण कर रहे हों एवं विहार (विचरण/ आचरण) कर रहे हों उस तत्त्व के सुक्ष्म व कारण गुणों द्वारा APMB, उपवास, तत्त्व शुद्धि, तन्मात्रा साधना व स्वाध्याय आदि में तालबद्धता स्थापित करते हुए साधना को नित्य नए आयाम दे सकते हैं ।
Something is better than nothing. अतः जीवन में अनुव्रत को शामिल करें व यक़ीन मानिए एक दिन महाव्रत में भी सहभागिता सुनिश्चित होगी ।
Excess of everything is bad. पंचतत्त्व की न्यूनता ही नहीं वरन् अत्यधिकता भी रोग कारक होती हैं । संतुलन को प्राथमिकता दी जाए और असंतुलन से बचा जाए @ समत्वं योग उच्यते ।
क्रियायोग के अभ्यास में श्रद्धा संग सहजता, सजगता व नियमितता का समावेश उसकी सफलता को सुनिश्चित करता है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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