Tatva shuddhi
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 07 May 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: तत्त्व शुद्धि (अन्नमयकोश)
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
तत्त्व शुद्धि – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v10.7
शिक्षक गण :-
1. आ॰ डॉ॰ अर्चना राठौर जी (ग्रेटर नोएडा, उ॰ प्र॰)
2. आ॰ डॉ॰ ऊषा शुक्ला जी (वृंदावन, उ॰ प्र॰)
3. आ॰ मोहन कुमार जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
यह सृष्टि पंच तत्त्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि व आकाश) से निर्मित है । वस्तुओं का परिवर्तन उत्पत्ति, विकास तथा विनाश पंच तत्त्वों की मात्रा में परिवर्तन आने से होता है ।
आयुर्वेद शास्त्र – वात, पित्त व कफ का असुन्तलन रोग का कारण :-
वात का अर्थ है वायु । वायु के असंतुलन से गठिया, लकवा, दर्द, कम्प, अकड़न, गुल्म, हड़फूटन, नाड़ी, विक्षेप आदि रोग उत्पन्न होते हैं ।
वायु तत्त्व संतुलन हेतु – मॉर्निंग वॉक, प्राणायाम व प्रकृति के सान्निध्य में रहें । वृक्षारोपण में यथासंभव सभी भाग लें । अग्निहोत्र (हवन यज्ञ) की वायु शुद्धि में भूमिका महत्वपूर्ण है । Air polloution को minimize करने हेतु हम सभी सक्रिय भूमिका निभाएं ।
षट्चक्र बेधन में अनाहत चक्र वायु तत्त्व प्रधान है ।
पित्त का अर्थ है गर्मी (अग्नि) । इसके विकार से फोड़े फुन्सी, चेचक, ज्वर, रक्त – पित्त, हैजा, दस्त, क्षय, श्वास, उपदंश, दाह, रक्त – विकार आदि बढ़ते हैं ।
अग्नि तत्त्व संतुलन हेतु – सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रहना (धूप सेवन), रविवार को उपवास, सूर्य की तेजस्विता व बलदायिनी शक्ति का आवाहन शरीर की कान्ति व आत्मिक शक्ति में अभिवृद्धि करते हैं ।
षट्चक्र बेधन में मणिपुर चक्र – अग्नि तत्त्व प्रधान हैं ।
कफ का अर्थ है जल । जल तत्त्व के असंतुलन से जलोदर, पेचिस, संग्रहणी, बहु – मुत्र, प्रमेह, स्वप्नदोष, सोम, प्रदर, जुकाम, अकड़न, अपच, शिथिलता आदि रोग उत्पन्न होते हैं ।
स्नान करने का उद्देश्य केवल मैल छुड़ाना नहीं वरन् पानी में रहने वाली ‘विशिवा’ नामक विद्युत से देह को सतेज करना एवं आक्सीजन, नाइट्रोजन आदि बहुमूल्य तत्त्वों से शरीर को सींचना भी है ।
नित्य ऊषापान, शुद्ध जल को सदा घूंट घूंट कर धीरे धीरे दूध की तरह पीनी चाहिए । भावना – जल की शीतलता, मधुरता व शक्ति को धारण करना ।
कटि स्नान, मेहन स्नान, मेरूदण्ड स्नान, गीली चादर लपेटना, कपड़े की पट्टी, गीली मिट्टी का पलस्तर आदि से रोग निवारण में बड़ी सहायता मिलती है । Water polloution को minimize करने हेतु हम सभी सक्रिय भूमिका निभाएं ।
षट्चक्र बेधन में स्वाधिष्ठान चक्र – जल तत्त्व प्रधान है ।
फिर भी शेष दो तत्त्व पृथ्वी व आकाश शरीर पर काफी प्रभाव डालते हैं :-
पृथ्वी तत्त्व शरीर का स्थिर आधार । मोटा/ पतला होना, लम्बा/ ठिगना होना, रूपवान/ कुरूप होना, गोरा/ काला होना , कोमल/ सुदृढ़ होना – शरीर में पृथ्वी तत्त्व की स्थिति से संबंधित है ।
पृथ्वी तत्त्व संतुलन हेतु भूमि शयन, नंगे पांव टहलना, मिट्टी स्नान, तीर्थ प्रवास आदि प्रभावी हैं । Land polloution को minimize करने हेतु हम सभी सक्रिय भूमिका निभाएं ।
षट्चक्र बेधन में मूलाधार चक्र – पृथ्वी तत्त्व प्रधान है ।
आकाश का संबंध मन से, बुद्धि एवं इन्द्रियों की सूक्ष्म तन्मात्राओं से है । चतुरता – मूर्खता, सदाचार – दुराचार, नीचता – महानता, तीव्र बुद्धि – मन्द बुद्धि, सनक – दूरदर्शिता, खिन्नता – प्रसन्नता एवं गुण, कर्म, स्वभाव, इच्छा, आकांक्षा, भावना, आदर्श, लक्ष्य आदि – शरीर में आकाश तत्त्व की स्थिति पर निर्भर करतीं हैं । उन्माद, सनक, दिल की धड़कन, अनिद्रा, पागलपन – बुरे सपने, मिर्गी, मूर्च्छा, घबराहट, निराशा आदि रोगों में भी आकाश ही प्रधान कारण होता है ।
आकाश तत्त्व के संतुलन में स्वाध्याय की भूमिका महत्वपूर्ण है । ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए । औरों को शीतल करे आपहु शीतल होय ।।
शरीर में मन या मस्तिष्क (अंतःकरण) आकाश का प्रतिनिधि है । उसी में आकाशगामी, परम कल्याणकारक तत्त्वों का अवतरण होता है । “मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥” अतः अपना मनःक्षेत्र ऐसा शुद्ध, परिमार्जित, स्वस्थ एवं सतेज रखना चाहिए, जिससे गायत्री का अवतरण बिना किसी कठिनाई के हो सके ।
षट्चक्र बेधन में विशुद्धि चक्र, आकाश तत्त्व प्रधान है ।
गायत्री के 5 मुख (पंचकोश) शरीर में 5 तत्त्व बनकर निवास करते हैं । यही 5 ज्ञानेन्द्रियों व 5 कर्मेन्द्रियों को क्रियाशील रखते हैं ।
वेदान्त शास्त्र में इन 5 तत्त्वों को आत्मा का आवरण एवं बन्धन माना गया है । संसार पंचभूतों की क्रीड़ा स्थली मात्र है ।
Admin/ Host : आ॰ अमन जी (गुरूग्राम, हरियाणा)
कक्षा के शिक्षक वरीयता के चुनाव क्रम में अनुभवी शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाती है ।
दैनंदिन जीवन में तत्त्व शुद्धि के सहज व सजग अभ्यास से भैया ने जीवन में आरोग्य को धारण किया । प्राकृतिक जीवनशैली, ऊषापान, घूंट घूंट पानी पीना, मार्निंग वाक, APMB, स्वाध्याय एवं सादा भोजन – उच्च विचार आदि को जीवन क्रम में स्थान दें ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आ॰ अर्चना जी, आ॰ ऊषा जी व आ॰ मोहन जी को आभार ।
वाणी के 4 प्रकार :-
1. बैखरी (शब्द) – मुँह से बोली और कानों से सुनी जाती हैं ।
2. मध्यमा (भाव) – जो संकेतों से, मुखाकृति से, भावभंगिमा से नेत्रों से कही जाती हैं ।
3. पश्यन्ती (विचार) – मन से निकलता है और मन ही उसे सुन सकता है ।
4. परा (संकल्प) – यह आकांक्षा, इच्छा, निश्चय, प्रेरणा, शाप, वरदान आदि के रूप में अंतःकरण से निकालती हैं ।
Anxiety के निदान में ‘इड़ा चालन’ (प्राणायाम), स्वाध्याय {अध्ययन + मनन चिंतन + निदिध्यासन (समर्पण + विलयन – विसर्जन) प्रभावी हैं ।
स्त्रियों में माहवारी ईश्वर प्रदत्त अनुदान वरदान है । जो उन्हें जननी (प्रकृति) की वरीयता क्रम में स्थान देता है । इसे पवित्र भाव से लें । वैज्ञानिक अध्यात्मिक प्रतिपादन (आत्मबोध + तत्त्वबोध) को जीवन में स्थान दें ।
According to age and profession हमें आहार (diet) व विहार (lifestyle) रखनी चाहिए । शारीरिक मोटापा (fatty body) व दिमागी मोटापा (संकीर्णता) दोनों से निजात पाने हेतु जीवन में पंचकोशी क्रियायोग का सरल, सहज व सजग अभ्यास किया जा सकता है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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