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Tatva Shuddhi

Tatva Shuddhi

तत्त्व शुद्धि (अन्नमयकोश)

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class –  5 नवंबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

विषय: तत्त्व शुद्धि (अन्नमयकोश)

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच:-
1. डॉ॰ प्रगति सक्सेना जी
2. आ॰ अंकुर सक्सेना जी

तत्व शुद्धि– 
http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.61
http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v9.41

पंच तत्त्व (मिट्टी, जल, वायु, अग्नि व आकाश) से यह सृष्टि व हमारा शरीर (पंचकोश) विनिर्मित है । इनके संतुलन से आरोग्यअसंतुलन से विविध रोग उत्पन्न होते हैं ।
अन्नमयकोश के परिमार्जन हेतु तीसरा उपाय तत्त्व शुद्धि है ।

जल तत्त्व शुद्धि हेतु उपाय
1. ऊषापान
2. स्नान
3. एनिमा
4. कटि स्नान
5. हिप बाथ व स्पाइनल बाथ
6. गीली चादर लपेटना व कपड़े का पलस्तर आदि ।

मिट्टी तत्त्व शुद्धि हेतु उपाय
1. नंगे पांव टहलना
2. मिट्टी स्नान
3. Gardening
4. Sports etc.

अग्नि तत्त्व शुद्धि हेतु उपाय
1. सूर्य को अर्घ्य व ध्यान
2. सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रहना
3. कलर थेरेपी
4. सूर्य चिकित्सा विज्ञान आदि ।

वायु तत्त्व शुद्धि हेतु उपाय
1. वृक्ष व पौधों का सान्निध्य
2. प्राणायाम
3. यज्ञ हवन आदि

आकाश तत्त्व शुद्धि हेतु उपाय
1. स्वाध्याय
2. आत्मसुधार
3. उपवास आदि

Simple living & High thinking @  संयमित जीवन शैली @ प्राकृतिक आहार विहार से हम पंचतत्त्व संतुलन बनाए रखते हुए जीवन का आनंद (आत्मबोध + तत्त्वबोध) ले सकते हैं ।

जिज्ञासा समाधान

मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी एनिमा चिकित्सा व हिप बाथ ले सकते हैं ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

यंगस्टर्स का कक्षा लेना हमारे लिए अपार हर्ष का विषय है । डॉ॰ प्रगति सक्सेना जी का प्रांजल भाषा में शानदार कक्षा लेने हेतु आभार ।

आकाश तत्त्व शुद्धि हेतु नित्य उपनिषद् स्वाध्याय सत्संग ईश्वर प्राणिधान आदि प्रभावी हैं ।

Colour Therepy (सूर्य चिकित्सा विज्ञान) में कांच का बोतल प्रयोग में लाना लाभप्रद है ।

अन्नमयकोश अंतर्गत Endocrine Glands आते हैं । पैंक्रियाज के इन्सुलिन जेनरेशन में अनियमितता होने से डायबिटीज से पीड़ित हो जाते हैं । संयमित आहार विहार व‌ पंचकोशी क्रियायोग से इस रोग का निवारण (cure) एवं दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है ।

पेट की गर्मी व विकार को शांत करने हेतु मुलेठी चूर्ण संग ऊषापान, घूंट घूंट पानी, (पाचक) उपवास व‌ सकारात्मक दृष्टिकोण प्रभावी हैं ।

सोऽहं भाव में अनात्म तत्त्वों से अनासक्ति/ निष्काम भाव व आत्मभाव में स्थित होना होता है ।

वात रोग निवारण हेतु वायु तत्त्व शुद्धि के उपाय, सूर्यभेदी प्राणायाम, अपान वायु मुद्रा आदि प्रभावी हैं ।

Elergy cure में गिलोय सेवन प्रभावी हैं ।

बवासीर निवारण हेतु शीर्षासन/ सर्वांगासन का नित्य अभ्यास एवं ओल व आंवला को उबाल करने के उपरांत पीस कर उसकी चटनी (sauce) का सेवन किया जा सकता है ।

आनंद के स्थायित्व हेतु पंचकोश अनावरण/ जागरण/ शुद्धि आवश्यक है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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