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The Scientific Aspects of Spiritual Sex Element – 1

The Scientific Aspects of Spiritual Sex Element – 1

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 06 Dec 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: आध्यात्मिक काम विज्ञान -1

Broadcasting. आ॰ अंकुर जी

श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

ईश्वर‘ एक ऐसे वृत हैं जिनका केन्द्र सर्वत्र है पर परिधि कहीं नहीं। मानव लिये वेदों में 4 पुरुषार्थों ‘धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष’ का वर्णन है। ‘पुरूषार्थचतुष्टय’ ही ‘आध्यात्मिकता’ व ‘भौतिकता’ के बीच समन्वय स्थापित करते हैं। ‘धर्म’ @ ‘धारणे इति धर्म:’ – आदर्शों को धारण करना धर्म है, कर्म (Dutifulness) ही धर्म है।

अध्यात्मिक काम विज्ञान‘ में Sex energy/ मूलाधार में दबी पड़ी कुण्डलिनी शक्ति @ बिजली @ ‘काम’ शक्ति का रूपांतरण (transmutation) ‘ओजस’, ‘तेजस’ व ‘वर्चस’ में किया जाता है।
गायत्री‘ की उच्च स्तरीय साधना ‘कुण्डलिनी जागरण’ व ‘पंचकोश अनावरण’ हैं। ‘कुण्डलिनी’ का आधार ‘काम-शक्ति’ है। सृष्टि का मूल एक चेतना है जिसे ‘पदार्थ’ व ‘विचार’ की द्विधा से संपन्न कहा जा सकता है।
नर-नारी‘ के मिलन पर आधारित संयोग मूलतः दोनों की प्रसुप्त चेतनाओं को जगाने के लिए होता है। ‘नर’ व ‘नारी’ के बीच पाए जाने वाले ‘प्राण व रयि’, ‘अग्नि व सोम’, ‘स्वाहा व स्वधा’ तत्त्वों का महत्व सामान्य नहीं वरन् असमान्य है।
‘नर’ को पुरूष, शिव, सहस्रार, उत्तरी ध्रुव, रेटीकुलर एक्टीवेटिंग सिस्टम, positive pole etc एवं ‘नारी’ को प्रकृति, शक्ति, मूलाधार, दक्षिणी ध्रुव, negative pole etc शब्दावली में परिभाषित किया गया है।
नर-नारी‘ की पवित्रता व निर्मल सामीप्य को हम ‘अर्द्धनारीश्वर’ के रूपक में समझ सकते हैं। अध्यात्मिक काम विज्ञान नर-नारी के निर्मल सामीप्य का समर्थन करता है। ‘दांपत्य जीवन’ (married life) में इसे इंद्रियतृप्ति व काम-क्रीड़ा से उत्पन्न होने वाले हर्षोल्लास की परिधि तक बढ़ाया जा सकता है।
‘मातृविहीन’ लड़के व ‘पितृविहीन’ लड़कियां मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत हद तक अविकसित रह जाते हैं। जब समाज कुंठित हो ‘लिंग’ (male or female) के आधार पर बचपन से ही ‘सहचरत्व’ पर प्रतिबंध लगाया; तब ‘श्रीकृष्ण’ ने इस कुंठा को दूर करने का बीड़ा ‘रासलीला’ के रूप में उठाया। ‘दृष्टिकोण’ पवित्र हो तो सहचरत्व कभी भी बाधा उत्पन्न नहीं करती हैं। प्रजनन अवयवों की बनावट में प्रकृति प्रदत्त अंतर सृष्टि की शोभा विशेषता है।

मानवीय चरित्र’ – निष्ठा, श्रद्धा, विवेकशीलता, दूरदर्शिता व आदर्शवादिता से परिपक्व होती है ना की प्रतिबंधित जीवनशैली से। ‘पर्दा प्रथा’ उन विदेशी आक्रमणकारियों की देन‌ है जो नारी को केवल उपभोग की वस्तु मात्र समझते थे।

अध्यात्मिक काम विज्ञान‘ की जानकारी जन-जन‌ तक पहुंचनी चाहिए। घृणा – काम-प्रवृत्ति से नहीं वरन् उसके दुरूपयोग से करनी चाहिए। ‘सदुपयोग’ सर्वथा ‘सार्थक’ है तो ‘दुरूपयोग’ सर्वथा ‘निरर्थक’। ‘जीभ’ के taste व speech का good use से हमारा जीवन क्रम सतत विकसित होता है तो ‘जननेन्द्रियों’ के good use (संयम व ब्रह्मचर्य) से तेजस्वी संतानोत्पत्ति व मर्यादित कामोल्लास का लाभ लिया जा सकता है। ‘अमृत’ के दुरूपयोग से भी हानि और ‘विष’ के सदुपयोग से भी लाभ होता है @ nothing is useless or worthless.

प्रश्नोत्तरी सेशन

बच्चों‘ में बचपन से पवित्रता विकसित करने हेतु, सुसंस्कृत बनाने हेतु भारतीय संस्कृति में गर्भाधान से ही ‘संस्कार’ का क्रम रखा गया है। संस्कारों के वैज्ञानिक व आध्यात्मिक पृष्ठभूमि को समझना व समझाना है।
Note: हम जिस रूप में अपने ‘संतति’ को देखना चाहते हैं सर्वप्रथम हमें स्वयं को उस रूपक में ढलना होगा @ action speaks louder than speech। यकीन मानें जिस दिन यह 100% हो गया उसी दिन युगपरिवर्तन हो जाएगा।

खजुराहों में दीवार पर खुदे चित्र के प्रति पवित्र दृष्टिकोण रखें। यह अश्लील नहीं वरन् आध्यात्मिक काम विज्ञान की शिक्षण शैली का part है।

ब्रह्म‘ अर्थात् ‘बल, विद्या व संस्कार’ @ ‘ओजस्, तेजस् व वर्चस’ में अभिवृद्धि ही ‘ब्रह्मचर्य’ है।

गर्भावस्था’ में गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार आदि की प्रक्रिया का उद्देश्य ‘माता’ के शुद्ध, पवित्र, सात्त्विक, स्वाध्याय शील दैनंदिन जीवन व तेजस्वी संतति के जन्म से पूर्ण होती है। भक्त प्रहलाद, वीर अभिमन्यु जीवन चरित्र से इसे समझा जा सकता है।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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