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Tratak and Tanmatra-Sadhna

Tratak and Tanmatra-Sadhna

त्राटक व तन्मात्रा साधना

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class –  12 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: त्राटक व तन्मात्रा साधना

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

आ॰ अमन जी (गुरूग्राम, हरियाणा)

अहंकार योग – “मैं क्या हूं ?”  अहंकार योग का उद्देश्य है मनुष्य अपने को भौतिक शरीर से भिन्न समझे और आत्मा के अजर, अमर, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिशाली आदि गुणों का ध्यान कर उन्हें ग्रहण करें ।
आकांक्षा – विचारणा – क्रिया” @ जो व्यक्ति जैसा सोचता है – वैसा करता है और जैसा करता है – वैसा बन जाता है ।
अतः हमारा स्वयं के प्रति ‘धारणा’ बनानी होती है इसमें ‘जप’ (बारंबार स्मरण) तदनरूप ‘ध्यान’ संभव बनता है । ध्यान की गहराई ‘त्राटक’ और तदनुरूप व्यवहार ‘तन्मात्रा साधना’ (अनासक्त) @ तेन त्यक्तेन भुंजीथा ।
मनोमयकोश की साधना – गायत्री महाविज्ञान – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v9.44

योगाचार्य लोकेश जी (चित्तौड़, राजस्थान)

चेतनाया हि केन्द्रन्तु मनुष्याणां मनोमतम् । जायते महतीत्वन्तः शक्तिस्तस्मिन वशंगते ।। – मनुष्यों में चेतना का केन्द्र मन माना गया है । उसके वश में होने से महान अन्तः शक्ति पैदा होती है ।
मन (अंतःकरण) की उद्विग्नता के मूल कारण – वासना, तृष्णा व अहंता @ लोभ, मोह व अहंकार । इनके शांत (संतुलित) होने से मन शांत होता है ।

मन की गति अनंत है । उसकी एक इच्छा पूर्ण होते ही वह उससे आगे की इच्छा करने लगता है । तृष्णा को सुरसा की भी संज्ञा दी जाती है ।

ध्यान – त्राटक – तन्मात्रजपानां साधनैर्नु । भवत्युज्जवलः कोशः पार्वत्येष मनोमयः ।। ध्यान, त्राटक, तन्मात्रा व जप इनकी साधना करने से हे पार्वती ! मनोमय कोश अत्यंत ही उज्जवल हो जाता है ।

त्राटक – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v10.16

साधना जगत में लकीर का फ़कीर बनने से बात नहीं बनती अर्थात् copy and paste से बचा जाए, creativity विकसित की जाए, research and development चलता रहे @ नेति नेति ।
जानकारी (theory/ अध्ययन/  approached/ उपासना), कर्म की प्रयोगशाला (practical/ साधना/ digested) में पककर (परिपक्वता) अनुभव में परिणत (realised/ भक्ति/ अराधना/ application) होती है । अन्यथा अनुभवहीन जानकारी भारवाही गधे के समान है ।
अतः साधना में सहजता, सजगता व मौलिकता को ध्यान में रखते हुए प्रगति पथ पर अग्रसर हों ।

आ॰ संजय शर्मा जी (दिल्ली)

तन्मात्रा साधना – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v9.48

जीवन लक्ष्य @ बोधत्व के 4 स्तर :- 1. सालोक्य (ईश्वर के लोक में रहना) – अध्ययन
2. सामीप्य (उसके समीप रहना) – चिंतन मनन मंथन
3. सारूप्य (उसके जैसा हो जाना) – आदर्श चरित्र
4. सायुज्य (विलयन विसर्जन एकत्व) – शालीन व्यवहार ।
जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना में हम क्रमशः हम ईश्वरांश, ईश्वरीय लोक में रहते हुए, ईश्वर से सामीप्य बनाकर (उपासना), ईश्वरीय सहचर बन (साधना – ईश्वरीय अनुशासनं स्वीकरोमि @ ईश्वर के जैसा) ईश्वरीय कार्य के माध्यम (अराधना – सायुज्यता) बन सकते हैं ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

युवा योगाचार्य लोकेश जी का आत्मिकी में रिसर्च स्कॉलर होना हम सभी के लिए आदर्श व प्रसन्नता का विषय ।

प्रश्न पूछने वाले जिज्ञासु साधक मेधावी होते हैं । अर्जुन के प्रश्नों के समाधान रूपेण विश्व वसुधा को भगवद्गीता का अनुदान मिला ।
संसार रूपी क्रीड़ांगन में expertise की साधना तन्मात्रा साधना है । जिसकी प्रवीणता से खिलाड़ी (साधक) को क्रीड़ांगन में injury (उद्विग्न) नहीं होता है । सही समय पर सही दांव जीत दिलाती है । सही समय के धैर्य (श्रद्धा व निष्ठा) एवं सही दांव के लिए शिक्षण प्रशिक्षण (प्रज्ञा) की आवश्यकता होती है ।

जैसा अन्न वैसा मन –  प्रत्येक खाद्य पदार्थ अपने में सात्विक, राजसिक व तामसिक गुण धारण किये हुए है और उनके खाने से मनोभूमि का निर्माण भी वैसा ही होता है। http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/May/v2.17
त्रिगुणात्मक संतुलन (साम्यावस्था) हेतु अपनी प्रकृति व प्रवृत्ति अनुरूप आहार विहार का संयम साधना जगत में प्रगति का आधार बनते हैं @ सादा भोजन उच्च विचार ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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