Trishikhibrahman Upanishad – 1
PANCHKOSH SADHNA (Gupt Navratri Sadhna Satra) – Online Global Class – 02 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: त्रिशिखब्राह्मणोपनिषद्-१ (मंत्र संख्या 1-20)
Broadcasting: आ॰ नितिन जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकूर जी
भावार्थ वाचन: आ॰ उमा सिंह जी (बैंगलोर)
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)
भिन्न भिन्न स्वरूपों में आधारभूत स्वरूप एक ही ‘शिवस्वरूप’ है (छान्दोग्योपनिषद् – सर्वं खल्विदं ब्रह्म । मुण्डकोपनिषद् – ब्रह्म वेद ब्रह्मौव भवति ।)
ब्रह्म से अव्यक्त, अव्यक्त से महत्, महत् से अहंकार, अहंकार से 5 तन्मात्राएं, 5 तन्मात्राएं से 5 महाभूत के द्वारा ही यह सम्पूर्ण विश्व प्रादुर्भूत हुआ है ।
पंचभूतों के भेद क्रम एवं कार्य:-
1. पृथ्वी – पंच कर्मेंद्रियां (वाणी, हाथ, पैर, गुदा व उपस्थ) । कार्य – बोलना, दान, गमनागमन, विसर्जन तथा आनंद ।
2. जल – पंच तन्मात्राएं (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श), कार्य – तन्मात्राओं का आश्रय स्थल ।
3. अग्नि – पंच ज्ञानेन्द्रियां (कान, त्वचा, आंख, जीभ व नासिका), कार्य – शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श ।
4. वायु – पंच प्राण (समान, उदान, व्यान, अपान व प्राण), कार्य – संतुलन, उन्नयन, ग्रहण करना, श्रवण प्रवाहित या निष्कासित, श्वास-प्रश्वास ।
5. आकाश – अन्तःकरण, मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार; कार्य – ज्ञान, संकल्प, दृढ़ निश्चय, अनुसंधान व अभिमान ।
कर्मेन्द्रिय व ज्ञानेन्द्रिय के विषयों में प्राण एवं तन्मात्राओं के विषय अन्तर्भूत हैं ।
मन एवं बुद्धि में चित्त और अहंकार अन्तर्भूत हैं ।
अन्नमयकोश के अंदर अन्य 4 कोश स्थित रहते हैं :-
अन्नमयकोश की आत्मा – प्राणमयकोश,
प्राणमयकोश की आत्मा – मनोमयकोश,
मनोमयकोश की आत्मा – विज्ञानमयकोश,
विज्ञानमयकोश की आत्मा – आनंदमयकोश,
आनंदमयकोश की आत्मा – आत्मा,
आत्मा की आत्मा – परमात्मा ।
ज्ञानयोगी, विकारों में स्थित शिव का निरंतर दर्शन करते हैं, किन्तु शिव में विकार का नहीं ।
जिज्ञासा समाधान
Freedom हेतु सुषुम्ना में स्थित (योगस्थः) होकर कर्म करें ।
वशिष्ठ रामायण – हे राम, विकारों में ब्रह्म को देखो । “विकारस्थं शिवं पश्येद्विकारश्च शिवे न तु ।” – विकारों में ब्रह्म को देखें किंतु ब्रह्म में विकार नहीं ।
अन्तःकरण चतुष्टय का परिचय – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1952/October/v2.7
हमारा उच्च चेतन ही अद्भुत क्षमताएं –
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1977/April/v2.26
कठोपनिषद्
इन्द्रियों की अपेक्षा उनके विषय श्रेष्ठ हैं और विषयों से मन श्रेष्ठ है । मन से बुद्धि श्रेष्ठ है और बुद्धि से भी वह महान आत्मा (महत) श्रेष्ठ है ॥ 1-III-10 ॥
महत से परे अव्यक्त (मूलप्रकृति) है और अव्यक्त से भी परे और श्रेष्ठ पुरुष है । पुरुष से परे कुछ नहीं । वह पराकाष्ठा है । वही परम गति है ॥ 1-III-11॥
यह आत्मत्त् सभी भूतों में छिपा हुआ भी प्रत्यक्ष नहीं होता । सूक्ष्मदर्शी पुरुष सूक्ष्म और तीक्ष्ण बुद्धि द्वारा उसे देखते हैं ॥1-III-12 ॥
बुद्धिमान वाक् को मन में विलीन करे । मन को ज्ञानात्मा अर्थात बुद्धि में लय करे । ज्ञानात्मा बुद्धि को महत् में विलीन करे और महत्तत्व को उस शान्त आत्मा में लीन करे ॥ 1-III-13 ॥
निःस्वार्थ प्रेम @ अनासक्त कर्म (योगस्थः कुरू कर्माणि ..) हो तो third eye (विवेक चक्षु) जाग्रत है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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