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Trishikhibrahman Upanishad – 3

Trishikhibrahman Upanishad – 3

त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 3

PANCHKOSH SADHNA (Gupt Navratri Sadhna Satra) – Online Global Class – 04 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 3 (मन्त्र संख्या 41-61)

Broadcasting: आ॰ नितिन जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकूर जी

भावार्थ वाचन: योग शिक्षिका आ॰ शिखा नन्दिनी जी (बिहार)

Asanas’ Demonstration: आ॰ शिखा नन्दिनी जी व आ॰ अश्विनी कुमार जी

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

कुक्कुट आसन – पद्मासन पर ठीक तरह से स्थित होकर दोनों हाथों को जानुओं एवं जंघाओं के मध्य से निकाल कर भूमि पर लगाकर शरीर को आकाश में अधर पर प्रतिष्ठित रखना ‘कुक्कुट आसन’ कहलाता है ।

कूर्मासन – कुक्कुट आसन लगाने के बाद दोनों भुजाओं से दोनों कन्धों को आबद्ध कर कच्छप के सदृश एक सीध में हो जाना ही ‘उत्तान कूर्मासन’ कहलाता है ।

धनुरासन – दोनों पैरों के अँगूठों को हाथ से पकड़ कर श्रवण रंध्रों (कानों) तक धनुष के आकार में कर्ण तक आकृष्ट करना ही ‘धनुरासन’ कहलाता है ।

सिंहासन – दोनों एड़ियों से सीवन प्रदेश को विपरीत विधि से दबाकर दोनों घुटनों एवं हाथों को विस्तीर्ण कर स्थिर होना ‘सिंहासन’ कहलाता है ।

भद्रासन – वृषण के नीचे सीवन के दोनों ओर दोनों गुल्फों को स्थिर करके पादों को हाथों से बाँधकर बैठना ही ‘भद्रासन’ कहलाता है ।

मुक्तासन – सीवनी के दोनों पार्श्वों को दोनों एड़ियों के द्वारा विपरीत विधि से दबाकर प्रतिष्ठित होना ही ‘मुक्तासन’ कहलाता है ।

मयूरासन – दोनों हथेलियों को पृथ्वी पर स्थित करके दोनों कोहनियों को नाभि के पार्श्व में दोनों तरफ लगाए, तदन्तर मयूर की भांति संपूर्ण शरीर को अधर करके सिर और पैरों को ऊपर की ओर उठाये रहना ही ‘मयूरासन’ कहलाता है ।
बायीं जाँघ के मूल में दाहिने पैर के अँगूठे को पकड़ने से वह ‘मत्स्येन्द्र आसन‘ कहलाता है ।
बायें पैर की एड़ी को सीवन पर स्थिर करे और दाहिने पैर को उपस्थ के ऊर्ध्व भाग में रखे । इस तरह शरीर को सीधा करके बैठना ही ‘सिद्धासन‘ कहलाता है ।
दोनों पैरों को जमीन में फैलाकर दोनों हाथों के द्वारा पैर के अँगूठों पकड़ लें और पुनः सिर को घूटनों पर स्थित करना ‘पश्चिमोत्तानासन‘ कहलाता है ।

सुखासन – जिस किसी प्रकार से बैठने पर सुख एवं स्थिरता मिले, वैसे ही बैठना सुखासन कहलाता है । जो असमर्थता के कारण अन्य आसनों को न लगा सके वह इस आसन को लगाये ।

युगऋषि पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य जी @ गुरूदेव ने सर्वसाधारण हेतु सरल सहज ‘प्रज्ञा योगासन’ (set of 16 Asanas) के क्रम को रखा । http://literature.awgp.org/book/Pragya_yog_for_Happy_Healthy_Life/v2.13

यम – नियम व आसन आदि के द्वारा सुसंयत होकर सम्यक् रूप से सर्वप्रथम नाड़ी शोधन करके तदुपरांत प्राणायाम करना चाहिए ।
http://literature.awgp.org/book/vyaktitva_parishkar_ki_sadhana_adbhut_aur_anupam_suyog/v1.7

शरीर में स्थित वायु को (प्राणायाम द्वारा) शरीर में समुद्भूत अग्नि से योग (प्रक्रिया) द्वारा न्यून एवं सम करके ‘ब्रह्मज्ञान’ प्राप्त किया जा सकता है ।

जिज्ञासा समाधान

योगश्चित्त वृत्ति निरोधः ।” चित्त वृत्ति के निरोध से ही योग की उत्पत्ति होती है । “जीवात्म परमात्म संयोगो योगः ।”

हम पृथ्वी पर रहते हैं और पंचमहाभूतों में ठोस – पृथ्वी है । यह स्थूल स्वरूप में भौतिक जगत का दृश्यमान आधार है । जीवनी तत्त्वों का धारक है । इसके गुरूत्वाकर्षण से वायुमंडल है । ऋषि वाणी में हमारे ग्रह जैसे अनेक पृथ्वी हैं जिसकी खोज में अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन लगे हुए हैं ।
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे, सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ।। सकल सृष्टि की प्राण विधाता … ।
ग्रह नक्षत्र में जीवन का अस्तित्व – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1969/March/v1.21

शरीर में injury के healing में प्राणाकर्षण प्राणायाम प्रभावी हैं ।‌ क्रियायोग के अभ्यास में श्रद्धा, निष्ठा, सहजता व सजगता (प्रज्ञा बुद्धि) का समावेश लक्ष्यभेद में महाप्रभावी हैं ।

मन एवं मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्त मुक्तयै निर्विषयं स्मृतमिति ।। भावार्थ: ‘मन’ ही मनुष्यों के बन्धन और मोक्ष का कारण है। विषयों में आसक्त हुआ मन ही बन्धन का कारण है तथा विषयों से रहित अर्थात् विषयों में आसक्त न रहने वाला ‘मन’ ही मुक्ति का कारण है॥

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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