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Trishikhibrahman Upanishad – 4

Trishikhibrahman Upanishad – 4

त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 4

PANCHKOSH SADHNA (Gupt Navratri Sadhna Satra) – Online Global Class – 05 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 4 (मंत्र संख्या 62-82)

Broadcasting: आ॰ नितिन जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकूर जी

भावार्थ वाचन: आ॰ शैली अग्रवाल जी (पंचकूला, हरियाणा)

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

बसंत पंचमी – गुरूदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन ।
http://literature.awgp.org/book/Tyohar_Aur_Vrat/v1.61

व्रत त्योहार के उद्देश्य:-

  1. श्रद्धा समर्पण – धर्म और आध्यात्मिकता के भावों की वृद्धि @ उपासना (approached) – ज्ञानयोग (theory)
  2. मिलन/ विलय – लोग परस्पर, प्रेमपूर्वक मिलें और सामूहिकता की भावना को सुदृढ़ बनावें @ साधना (digested) – कर्मयोग (practical)
  3. (विसर्जन) प्रशिक्षण – व्रत/ त्योहार के देवता (हीरो) के शक्ति (गुणों) को धारण करना @ अराधना (realised) – भक्तियोग (application) ।

जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवः । तुषेण बद्धो व्रीहिः स्या त्तुषाभावेन तण्डुलः॥ भावार्थ: जीव ही शिव है और शिव ही जीव है। वह जीव विशुद्ध शिव ही है। (जीव-शिव) उसी प्रकार है, जैसे धान का छिलका लगे रहने पर व्रीहि और छिलका दूर हो जाने पर उसे चावल कहा जाता है॥

जीव प्राण तत्त्व में आरूढ़ होकर विचरण करता है ।
कठोपनिषद् – आत्मानँ रथितं विद्धि शरीरँ रथमेव तु । बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ॥1-III-3॥ भावार्थ: आत्मा को रथी जानो और शरीर को रथ । बुद्धि को सारथी जानो और इस मन को लगाम ॥
इन्द्रियाँ, घोड़ों के सामान हैं । विषय, उन घोड़ों के विचरने के मार्ग हैं । इन्द्रियों और मन के साथ युक्त हुआ वह आत्मा ही भोक्ता है । ऐसा ही मनीषी कहते हैं ॥1-III-4॥

सावित्री कुण्डलिनी एवं तंत्र – http://literature.awgp.org/book/savitri_kundilini_tantra/v1.1

हमारे चक्र संस्थान और उसकी सिद्धि सामर्थ्य – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1976/December/v2.18

महासर्पिणी कुण्डलिनी और उसका महासर्प – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1969/March/v2.24

योग ग्रन्थों में 72000 नाड़ियों का उल्लेख किया जाता है, पर उनमें से प्रमुख 14 ही मानी गयी हैं – (1) सुषुम्ना (2) इड़ा (3) पिंगला (4) गान्धारी (5) हस्त जिह्य (6) कुहू (7) सरस्वती (8) पूषा (9) शंखिनी (10) यशस्विनी (11) वारुणी (12) अलम्बुसा (13) विश्वोधरा (14) पयस्विनी (योग चूड़ामणिउपनिषद्)।
शरीर का परिशोधन परिमार्जन – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1982/April/v2.14

‘पांच प्राण + पांच उपप्राण = दस प्राण’ – http://literature.awgp.org/book/panch_pran_panch_dev/v2.5

पांच प्राण व उपप्राण की वस्तु स्थिति:-
सहस्रार चक्र – व्यान व धनंजय
विशुद्धि चक्र – उदान व देवदत्त
अनाहत चक्र – प्राण व नाग
मणिपुर चक्र – समान व कृकल
मूलाधार चक्र – अपान व कूर्म

PPT presentation – मनोविकार के उपचार हेतु विशेष प्राणायाम ।

जिज्ञासा समाधान

सरस्वती = गायत्री + सावित्री । ज्ञान की वृद्धावस्था (परिपक्वता) – ज्ञान जब अनुभव में परिणत होती है तो सरस (रसो वै सः) हो जाती है । “आकांक्षा – विचारणा – क्रिया” @ “theory – practical – application” @ “approached – digested- realised”.

व्यान प्राण का कार्य – रक्त संचार व स्थानांतरण आदि । स्थान संपूर्ण शरीर । रंग गुलाबी चक्र स्वाधिष्ठान है । नर्वस सिस्टम पर कमांड एंड कंट्रोल होने की वजह से इसका मुख्यालय ब्रेन (सहस्रार चक्र) भी है । अतः व्यान को श्रीकृष्ण व धनंजय को अर्जून की उपमा दी जाती है; जिज्ञासा व समाधान से गीता की ज्ञान गंगा प्रवाहित होती है ।

बंध युक्त प्राणायाम में ध्यानात्मक योगाभ्यास द्वारा प्राणन अपानन की क्रिया कर कुण्डलिनी शक्ति केन्द्रों (सप्त चक्र उपचक्र) को जाग्रत किया जा सकता है ।

पंचीकरण – पांचों मूलभूतों (पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि व आकाश) के संयोग से व्यवहारिक पंचभूतों की विकास की प्रक्रिया ।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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