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Trishikhibrahman Upanishad – 6

Trishikhibrahman Upanishad – 6

त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 6

PANCHKOSH SADHNA (Gupt Navratri Sadhna Satra) –  Online Global Class – 07 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 6 (मंत्र संख्या 106-128)

Broadcasting: आ॰ नितिन जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकूर जी

भावार्थ वाचन: आ॰ पद्मा हिरास्कर जी (पुणे, महाराष्ट्र)

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

प्रत्याहार धारणा ध्यान व समाधि – अध्यात्म की उच्चस्तरीय साधनाएं । क्रिया के साथ भावना जोड़ने से ‘क्रियायोग’ ।

प्राणायाम की प्रारंभिक अवस्था (अधम कोटि का प्राणायाम) की पहूंच स्थूल शरीर तक होती है । लाभ – आधि व्याधि एवं संपूर्ण पापों का विनाश ।
(प्रगति पथ पर अग्रसर होते हूए) मध्यम कोटि के प्राणायाम की पहूंच सुक्ष्म शरीर तक होती है। लाभ – महाव्याधियां, पाप एवं समस्त रोग समाप्त हो जाते हैं ।
(सिद्धावस्था/ अभ्यास की परिपक्वता में) उत्तम प्राणायाम की पहूंच कारण शरीर तक होती है । लाभ – अल्पनिद्रा‌ (योगनिद्रा) वाला, अल्प मल मूत्र वाला, लघु शरीर वाला एवं अल्पाहार वाला, इन्द्रियां एवं बुद्धि तीव्र, त्रिकालदर्शी ।
प्राणायाम की प्रारंभिक अवस्था से सिद्धावस्था के तीन चरणों में क्रमशः वासना, तृष्णा व अहंता – शांत अर्थात् सम्यक् रूपेण उद्विगन्ता – शांत ।
आसन प्राणायाम से आधि व्याधि निवारण – http://literature.awgp.org/book/pragya_abhiyan_ka_darshan_swaroop_aur_karyakram/v1.31

रेचक एवं पूरक से मुक्त होकर एकमात्र कुंभक करने में तत्पर अर्थात् योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। @ शांत चित्त @ आत्मस्थित ।

ओजस्, तेजस् एवं वर्चस् के जागरण हेतु उच्चस्तरीय साधनाएँ – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1987/May/v2.50

प्राणाकर्षण प्राणायाम की सुगम क्रियायोग से cleaning and healing – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1947/April/v2.13

साधो सहज समाधि भली । @ योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

प्राण के शरीर छोड़ने (देहान्त) के लक्षण
Internal organs की कार्यक्षमता क्षीण होती जाती है ।
नस नाड़ियों में प्राण संचरण क्षीण होने से ज्ञानेन्द्रियां व कर्मेंद्रियां की कार्यक्षमता क्षीण होती जाती है ।
विवेक बुद्धि का नियंत्रण, स्थूल शरीर से हटता चला जाता है ।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।2.23।।
योगीजन शरीर के साथ भी और शरीर के बाद भी ईश्वरीय कार्य के माध्यम बनते रहते हैं ।
समयही जीवन है । बीता हुआ समय कभी नहीं लौटता । गुरूदेव कहते हैं कि हमने जीवन का एक भी नन्हा क्षण व्यर्थ नहीं किया है । http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.4

जिज्ञासा समाधान

बंध (मूल, उड्डियान, जालंधर व महाबंध) कुंभक (अंतः कुंभक/ बाह्य-कुंभक) के समय लगाये जाते हैं ।

सोऽहम भाव में कुंभक (शांत चित्त – आत्मस्थित) सहजता से सिद्ध हो सकता है ।

समाधि को दैनंदिन जीवन में ‘आत्मबोध व तत्त्वबोध’ रूपेण जिया जा सकता है । संत कबीरदास जी की वाणी में साधो सहज समाधि भली ।
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1977/June/v2.8

सार्वभौम साधनात्मक उद्देश्य – Peace and bliss है । अतः हमने इसे कितने अंशों में आकर्षण, ग्रहण/ संधारण व विनियोग (application) किया के आधार पर हम साधनात्मक प्रगति का आत्मनिरीक्षण कर सकते हैं ।

मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1977/July/v2.17

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ।।3.28।। भावार्थ:  हे महाबाहो ! गुण और कर्म के विभाग के सत्य (तत्त्व) को जानने वाला ज्ञानी पुरुष यह जानकर कि “गुण गुणों में बर्तते हैं” (कर्म में) आसक्त नहीं होता ।।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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