Tulasupanishad
PANCHKOSH SADHNA – (Gupt Navratri Sadhna) – Online Global Class – 11 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: तुलस्युपनिषद्
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी/ आ॰ अंकूर जी
भावार्थ वाचन: आ॰ निशी शर्मा जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)
तुलस्युपनिषद् – http://literature.awgp.org/book/upanishad_saadhana_khand/v1.59
ऋषि – नारद
छन्द – अथर्वाङ्गिरस
अमृतरूपा तुलसी देवता, अमृत बीज, वसुधा शक्ति एवं नारायण कीलक हैं …. ।
मृत्यु नाशक अर्थात् बोधत्व/ अमरत्व में सहयोगी । @ नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।2.23।।
परिक्रमा अर्थात् शक्ति का आकर्षण व धारण @ सायुज्यता/ तादात्म्य ।
समुद्र मंथन के 14 रत्न:-
1. कालकूट विष
2. कामधेनु (पंचाग्नि विद्या)
3. उच्चैश्रवा घोड़ा (मन की गति)
4. ऐरावत हाथी
5. कौस्तुभ मणि
6. कल्पवृक्ष (मन)
7. रंभा अप्सरा (कलात्मकता)
8. लक्ष्मी (ऐश्वर्य)
9. वारूणी देवी (रसो वै सः। )
10. चन्द्रमा (शीतलता)
11. पारिजात वृक्ष (आत्मीयता)
12. पांचजन्य शंख (नाद)
13. धन्वंतरि अर्थात् आरोग्य (निरोगी तन व निर्मल मन ।
14. अमृत (बोधत्व)
कुण्डलिनी जागरण की विधा को समुद्र मंथन कहा जाता है । “यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे ।” समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले @ 5 कर्मेंद्रियां + 5 ज्ञानेन्द्रियां + अंतःकरण चतुष्टय (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार); इन सभी पर नियंत्रण करने के बाद में परमात्मा प्राप्त होते हैं । @ यच्छेद्वाङ्मनसी प्राज्ञस्तद्यच्छेज्ज्ञान आत्मनि । ज्ञानमात्मनि महति नियच्छेत्तद्यच्छेच्छान्त आत्मनि ॥1-III-13॥
आज के युग का समुद्र मंथन – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1983/November/v2.11
समस्त रोगों की एक औषधि – तुलसी – http://literature.awgp.org/book/samast_vishva_ko_bharat_ke_ajashra_anudan/v1.11
जिज्ञासा समाधान
रात्रि को शयन (विश्राम) का समय है अतः तुलसी पत्र तोड़ने की मनाही है ।
पर्वों के दिन तुलसी पत्र मंत्र शक्ति से अपनी औरा बढ़ा रहे होते हैं अतः पर्वों के दिन तुलसी पत्र को नहीं तोड़ना चाहिए । उसके next day इसका सेवन कर लाभ लिया जा सकता है ।
आपातकाल (emergency) में कभी भी तुलसी माता से प्रार्थना कर तुलसी पत्र लिया जा सकता है ।
Excess of everything is bad. @ अति हर्यत् वर्ज्यते । सदुपयोग (good use) का माध्यम बनें; दुरूपयोग (misuse) व अति उपयोग (overuse) से बचें ।
वैदिक वांग्मय में दश महाविद्या (ऋषियों की संपत्ति) का विस्तार पूर्वक वर्णन :-
१. उद्गीथ विद्या
२. संवर्ण विद्या
३. मधु विद्या
४. पंचाग्नि विद्या
५. उपकोशल विद्या
६. शांडिल्य विद्या
७. दहर विद्या
८. भूमा विद्या
९. मन्ध विद्या
१०. दीर्घायुष्य विद्या
तंत्र मार्ग में दश महाविद्या :-
१. इन्द्राणी
२. वैष्णवी
३. ब्राह्मणी
४. कौमारी
५. नारसिंही
६. वाराही
७. माहेश्वरी
८. भैरवी
९. चण्डी
१०. आग्नेयी
सावित्री कुण्डलिनी एवं तंत्र – http://literature.awgp.org/book/savitri_kundilini_tantra/v1.2
जठराग्नि हमेशा प्रबल रहती हो तो दो भोजन के बीच जल सेवन को प्राथमिकता दी जा सकती है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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