Turiya Sadhna
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 28 Nov 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: तुरीय साधना (परिप्रेक्ष्य – तुरीयातीतोपनिषद्)
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
भावार्थ वाचन: आ॰ किरण चावला जी (USA)
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)
गयान् प्राणान् त्रायते सा गायत्री । जो गय (प्राण) की रक्षा करती है, वह गायत्री है । (ऐतरेय ब्राह्मण)
ब्रह्मगायत्रीति-ब्रह्म वै गायत्री । ब्रह्म गायत्री है, गायत्री ही ब्रह्म है । (शतपथ ब्राह्मण 8. 5.3.7)
गायत्री तु परं तत्त्वं गायत्री परमागति:। गायत्री परम तत्त्व है, गायत्री परम गति है । (बृहत् पाराशर स्मृ० 4.4.)
गायत्री वा इदं सर्वं भूतं यदिदं किं च । यह विश्व जो कुछ भी है, वह समस्त गायत्रीमय ही है । (छांदोग्य उप० 3.12.1)
आत्मा (गायत्री @ ईश्वरांश) के 5 आवरण (परकोटे – सांसारिक परिवर्तनशीलता को झेलने में सक्षम रक्षात्मक कवच) @ पंचकोश में अनंत ऋद्धियां सिद्धियां भरी पूरी हैं । पंचकोश अनावरण (परिष्कृत @ उज्जवल) के द्वारा आत्मप्रकाश में आत्मा का अनावरण (बोधत्व) होता है ।
षट् चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि व ज्ञान चक्र) व सहस्रार चक्र का आध्यात्मिक वैज्ञानिक विश्लेषण ।
तुरीयातीत अवधूत का मार्ग कौन सा है और उसकी स्थिति कैसी होती है ?
अवधूत पथ पर चलने वाले इस लोक में दुर्लभ हैं ।
ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् | एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि |
वह हंसत्व (सोऽहं) का अवलंबन कर परमहंस (निरालम्ब) बनता है ।
आत्मस्थित आत्मसाधक (न हो हर्ष से, शोक में क्षुब्ध यह मन । सतावे न सुख दुःख कटे मोह बन्धन ।। सभी यह तुम्हारा, तुम्हारे सभी हैं – तुम्हीं सर्वमय हो यही भावना दो ।।) निरंतर लक्ष्य की ओर अग्रसर रहते हैं (चरैवेति चरैवेति – मिले मान अपमान पथ में तुम्हारे – लगे सब परमप्रिय यही धारणा दो ।। ) ।
आत्मसाधक, आत्मानुसंधान में सदैव निरत रहते हैं । वह दिन रात एक समान, कभी सोते नहीं अर्थात् सदैव जाग्रत (आत्मभाव) में रहते हैं । रात्रि कि निद्रा (शारीरिक विश्राम) भी योगनिद्रा होती हैं । (तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्) वह संसार के परिवर्तनशीलता @ प्रपंच के रहस्य को जानते समझते (तत्त्वबोध) होते हुए अनासक्त/ निष्काम भाव से (प्रलय) ‘आत्मबोध‘ करते हैं ।
परावलंबन का परित्याग @ आत्मावलंबन – सन्यास है । आत्मसाधक, सन्यासी होते हैं ।
तुरीयातीत अवधूत (आत्मसाधक) अद्वैत निष्ठा परायण (एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति) होकर ‘प्रणव’ (शिव) भाव में निमग्न होकर शरीर (जीव भाव) का परित्याग करता है, वह कृतकृत्य (धन्य धन्य – अखंडानंद) हो जाता है, यही इस उपनिषद् का प्रतिपादन है ।।
जिज्ञासा समाधान
जीवन मंत्र – जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवः । तुषेण बद्धो व्रीहिः स्यात् तुषाभावेन तण्डुलः ।। भावार्थ: जीव ही शिव है । और शिव ही जीव है । वह जीव विशुद्ध शिव ही है। जीव-शिव उसी प्रकार है। जैसे धान का छिलका लगे रहने पर व्रीहि और छिलका दूर हो जाने पर उसे चावल कहा जाता है।
आत्मविस्मृति (भुलक्कड़ी @ जीव भाव) – बंधन तो आत्मभाव (शिव भाव) – मुक्ति @ आत्मसत्ता का पदार्थ जगत पर नियंत्रण हो ।
हम बदलेंगे – युग बदलेगा, हम सुधरेंगे – युग सुधरेगा । आत्मसुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है । आत्मनिर्माणी ही विश्व निर्माण में प्रतिभागी होते हैं ।
आत्मस्थिति, तुरीयातीत अवस्था है ।
‘गुरू‘ (अखण्ड ज्योति @ सविता) हैं जो ‘अज्ञान, अशक्ति व अभाव’ रूपी अन्धकार से बाहर निकलने के पथ प्रदर्शक होते हैं @ तत्सवितुर्वरेण्यं । अन्तः ज्योति (आत्मप्रकाश) जागरण उपरांत बाह्य ज्ञान की भूमिका अत्यल्प/ समाप्त हो जाती हैं ।
साधो सहज समाधि भली – तुरीयातीत अवस्था है । गुरूदेव कहते हैं कि कर्म से वैराग्य लेना भारी भूल है; वैराग्य रागों (प्रपंचों – शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श से आसक्ति) से लिया जाता है ।
कर्तव्य निर्वहन क्रम में खिलाड़ी भाव (Sportsman spirit) से खेलें । नित्य मैदान (संसार) में अपनी भूमिका शानदार (अच्युतावस्था) रखने हेतु daily practice (उपासना – साधना – अराधना @ जगत वन्द्य मां, शक्ति दो साधना दो ।।।) जारी रखें ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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